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सेहत व अन्य फायदों से जुड़ा है जमीन पर बैठकर भोजन करना, जानिए कैसे

by The Photon News Desk
Meal Posture
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स्पेशल डेस्क/Meal Posture :  भोजन का समय हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जब हम सभी एक साथ भोजन करते हैं तो आनंद ही कुछ और होता है। क्या आप जानते हैं कि अगर हम जमीन पर बैठकर भोजन करें, तो सामाजिक, सांस्कृतिक, और स्वास्थ्य से जुड़े कई फायदे होते हैं।

यह एक अनूठा अनुभव होता है। इस महत्वपूर्ण पल में हम सभी मिलकर एक समृद्धि भरे तात्कालिक जीवन का आनंद लेते हैं। जब हम सभी एक ही स्थान पर बैठकर भोजन करते हैं, तो यह सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देता है।

Meal Posture  : समृद्ध व संतुलित जीवनशैली का हिस्सा

हम सभी एक ही स्थान पर भोजन करते हैं, जिससे समुदाय में एक सामंजस्य भरा माहौल बनता है। जमीन पर बैठकर (Meal Posture)  भोजन करना, एक स्वास्थ्यप्रद और संतुलित जीवनशैली का हिस्सा बन गया है, जिसमें समृद्धि और संतुलन की भावना छिपी होती है। यह आचार्य आदि महान प्रमुखों के द्वारा सिद्ध किया गया है कि जमीन पर बैठकर भोजन करना सिर्फ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, बल्कि इसमें आत्मा और मन के संतुलन को बनाए रखने का भी महत्वपूर्ण स्थान है।

Meal Posture  : पैरों को क्रास कर बैठने की रही है भारतीय परंपरा

अक्सर हम देखते हैं कि घरों में नीचे जमीन पर बैठकर लोग एक साथ भोजन करते हैं। इस दौरान उनके पैर एक-दूसरे के क्रास रहते हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि फर्श पर बैठकर खाना खाते समय पैरों को क्रॉस करके बैठना एक पुरानी भारतीय परंपरा है। आज भी बहुत सारे घरों में भोजन करते समय लोग इसी प्रकार एक पंक्ति में बैठते हैं। यानी यह परंपरा खत्म नहीं हुई है। कुछ लोगों द्वारा आज भी इसका पालन किया जाता है।

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शारीरिक फायदे

अधिक चबाकर खाना: जब हम जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं, तो हम अपने भोजन को ध्यान से चबा सकते हैं, जिससे आहार सही ढंग से पच सकता है।

अच्छा डाइजेस्टिव सिस्टम: जब हम जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं, तो हमारे पाचन प्रक्रिया को सही ढंग से काम करने में मदद होती है, जिससे हमारा पाचन सिस्टम ठीक रहता है।

सही पोस्चर: जब हम जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं, तो हमारी पीठ का सीधा और सही पोस्चर बना रहता है, जिससे हमें कमर दर्द और रीढ़ की हड्डी की समस्याएं नहीं होतीं।

मानवीय और सांस्कृतिक महत्व

आत्मीयता और सबसे मिलनसर भागीदारी: जब हम सभी जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं, तो यह सभी को एक समान और एकसाथी महसूस कराता है, जिससे परिवार और समुदाय के बीच आत्मीयता बनी रहती है।

खाने की जगह: शास्त्रों की माने तो खाने की जगह को लेकर बताया जाता है कि भोजन का सबसे अच्छा स्थान किचन है। इसी मान्यता की वजह से पहले के समय में लोग घर की रसोई में जमीन में बैठकर भोजन करते थे।

संस्कृति का आदान-प्रदान: भारतीय संस्कृति में जमीन पर बैठकर भोजन (Meal Posture) करना एक श्रेष्ठता का परिचय है, जिसमें सामाजिक समरसता और परंपरागत मूल्यों का आदान-प्रदान होता है। जब हम सभी मिलकर जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं, तो यह हमें आपसी सम्बंधों को मजबूती से जोड़ने का अवसर प्रदान करता है और हमारे समुदाय में सामूहिक एकता का आभास होता है।

परिप्रेक्ष्य: भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के नाते, जमीन पर बैठकर भोजन करना व्यक्ति को अधिक सच्चा, संवेदनशील (Sensitive) और समर्थनशील (Supportive) बनाता है। यह संबंधों को वृद्धि देने के साथ-साथ अपने आत्मा को भी महसूस कराता है जो अंदर से सुदृढ़ होता है। इस अनुष्ठान में छिपे सांस्कृतिक और मानवीय महत्व को समझने के लिए हमें इसकी अंदरूनी गहराईयों में प्रवेश करना होगा।

सामाजिक समरसता : हम सभी एक साथ बैठकर भोजन (Meal Posture) करते हैं, तो यह एक सामाजिक समरसता (Societal Harmony) की भावना को बढ़ावा देता है। हम सभी एक ही स्थान पर बैठकर खाते हैं, जिससे समुदाय में सभी का बराबरी का भाव होता है। यह अनुष्ठान हमें सिखाता है कि समुदाय में हर व्यक्ति का महत्व है और सभी को समर्थन की आवश्यकता है। यह समरसता हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर रहने की महत्वपूर्णता को समझाता है, जिससे हमारे समुदाय में आपसी सामंजस्य बनी रहती है।

Meal Posture

बढ़ता है आत्मिक जुड़ाव

जमीन पर बैठकर (Meal Posture) भोजन करना एक आत्मिक संबंधों की अनुभूति को बढ़ावा देता है। हम अपनी परंपरागत जीवनशैली को अपनाकर एक अंतर्निहित सम्बंध बनाए रखते हैं, जिससे हमारी आत्मा अपने आत्मा के साथ सहज और पूर्ण रूप से जुड़ी रहती है।

इस प्रयास के पीछे एक और विचारशील महत्व है जिसे हम सांस्कृतिक संप्रेषण कह सकते हैं। जब हम जमीन पर बैठकर भोजन(Meal Posture)  करते हैं, तो हम अपने सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने में सक्षम होते हैं।

यह एक समृद्धि भरे और परंपरागत तरीके से भोजन करने का एक तरीका है, जो हमारी सांस्कृतिक दृष्टिकोण को बनाए रखने में मदद करता है। इससे हम अपनी भूमि से जुड़े रहते हैं और हमारी भूमि के साथ एक सजीव संबंध बनता है, जिससे हमारी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा जा सकता है।

इस तरह से, जमीन पर बैठकर भोजन करना हमारे लिए सिर्फ एक आदत नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक जीवनशैली का हिस्सा भी है जो हमें सांस्कृतिक रूप से भी संपूर्णता देता है।

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