हेल्थ डेस्क, रांची : 25 जुलाई को पूरे विश्व में आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) दिवस मनाया जाता है। कहा जाता है कि अगर यह तकनीक नहीं आती तो लाखों-करोड़ों महिलाएं मां बनने से वंचित रह जातीं। विगत कुछ वर्षों में बांझपन की समस्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में आईवीएफ तकनीक उन करोड़ों महिलाओं के लिए क्रांति की तरह है, जो अलग-अलग कारणों से मां नहीं बन पाती थीं।
आज यह तकनीक काफी लोकप्रिय हो चुकी है। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई। हम इस रिपोर्ट में आपको विस्तार से इस तकनीक के बारे में बताते हैं।
इस दौरान हम एक ऐसे शहर की भी बात करेंगे, जहां इस विधि से लगभग एक हजार बच्चों का जन्म हुआ हैं।
इस तरह शुरू हुई आईवीएफ तकनीक :
जमशेदपुर आब्सट्रेटिक एंड गायनिक सोसाइटी के अध्यक्ष सह आईवीएफ विशेषज्ञ डा. विनोद अग्रवाल कहते हैं कि इस तकनीक की शुरुआत होने की कहानी काफी दिलचस्प है। महिला वैज्ञानिकों ने इस तकनीक की शुरुआत की थी। 10 नवंबर 1977 को लेस्ली ब्राउन नाम की महिला ने डॉक्टर पैट्रिक स्टेप्टो और एडवर्ड्स की मदद से आईवीएफ प्रक्रिया शुरू की।
25 जुलाई 1978 को एक बच्चे को जन्म दिया गया। इसके बाद इस दिन को विश्व आईवीएफ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। वहीं, भारत में 6 अगस्त 1986 को आईवीएफ तकनीक से हर्षा चावड़ा नामक युवती का जन्म हुआ था।
झारखंड में कब हुई शुरुआत:
झारखंड के जमशेदपुर शहर में अभी तक लगभग एक हजार ऐसे बच्चे हैं जिनका जन्म आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) विधि से हुआ हैं। यह जानकारी शहर के कुछ आइवीएफ विशेषज्ञों से बातचीत से सामने आई है। चूंकि, शहर में इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन चिकित्सकों का कहना है कि लगभग एक हजार लोग वैसे हैं, जिनका आईवीएफ विधि से जन्म हुआ है। इसमें से कई बच्चे आज अच्छे-अच्छे संस्थान व जगहों पर नौकरी भी कर रहे हैं। कोई डाक्टर बनकर मरीजों की सेवा कर रहा है तो कोई इंजीनियर बनकर देश के निर्माण में योगदान दे रहा है।
जमशेदपुर शहर में आईवीएफ की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई लेकिन दूसरे शहरों में चिकित्सा विधि का लाभ लेकर जमशेदपुर के लोग पूर्व से अपने परिवार में खुशियां ला रहे हैं। जब शहर में इसकी शुरुआत नहीं हुई थी। तब लोग देश के अलग-अलग राज्यों में जाते थे। अब शहर में सुविधा की शुरुआत होने के बाद आसपास के राज्यों से लोग जमशेदपुर आ रहे हैं।
बंगाल, ओडिशा व बिहार से भी आ रहे दंपति :
जमशेदपुर में अब आईवीएफ के चार सेंटर खुल चुके हैं, जहां पर न सिर्फ झारखंड के विभिन्न जिलों से दंपति आते हैं बल्कि यहां बंगाल, ओडिशा, बिहार से भी दंपित पहुंच रहे हैं। इन सेंटरों का आंकड़ा देखा जाए तो हर माह 100 से 120 दंपति बच्चा नहीं होने की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। स्पर्श आइवीएफ सेंटर के क्लीनिकल डायरेक्टर डा. विनोद अग्रवाल ने कहा कि जमशेदपुर में आइवीएफ का 50 से 55 प्रतिशत सक्सेस रेट है। कई लोगों को दो से तीन बार भी आईवीएफ का सहारा लेना पड़ता है।
तेजी से बढ़ रही बांझपन की समस्या :
बांझपन की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इसकी चपेट में न सिर्फ महिला बल्कि पुरुष भी बांझपन के शिकार हो रहे हैं। 20 से 25 प्रतिशत दंपतियों में बांझपन की समस्या देखी जा रही है। इसमें 50 प्रतिशत महिलाएं तो लगभग 30 प्रतिशत पुरुष शामिल होते हैं।
बांझपन क्या है :
डा. विनोद अग्रवाल कहते हैं कि जब दंपति बच्चा चाहते हैं और उसके एक साल तक प्रयास के बावजूद भी गर्भधारण नहीं हो रहा है तो वैसे स्थिति को बांझपन कहते हैं। इस दौरान आप किसी महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ या फिर आईवीएफ विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं।