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Jamshedpur Women’s University: एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर के अंदर शोधार्थियों के नामांकन का कोटा बढ़ाया

छात्र नेता हेमंत पाठक ने आरोप लगाया कि निश्चित तौर पर ऐसा निर्णय किसी न किसी पदाधिकारी के कैंडिडेट को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया होगा।

by Anand Mishra
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  • यूजीसी की नियमवाली पर भारी जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी की वीसी की मर्जी
  • विवि का फरमान : एसोसिएट प्रोफेसर को प्रोफेसर की तरह 8 शोधार्थियों का पंजीकरण कराने की दी अनुमति
  • शिक्षाविदों ने कहा- अवैध हो जाएगी डिग्री, यूजीसी ने सिर्फ 6 शोधार्थियों के रजिस्ट्रेशन की दी है अनुमति
  • राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव ने कहा- हमने किसी विवि को ऐसा करने का अधिकार नहीं दिया

जमशेदपुर : जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी का संचालन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों से अलग हो रहा है। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा ) के तहत महाविद्यालय को अपग्रेड कर स्थापित किये गये राज्य के पहले महिला विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध निर्णय का एक बड़ा मामला सामने आया है। दरअसल, यूजीसी की नियमावली के तहत एक समय पर प्रोफेसर के निर्देशन में अधिकतम 8, एसोसिएट प्रोफेसर के निर्देशन में अधिकतम 6 और असिस्टेंट प्रोफेसर के निर्देशन में अधिकतम 4 शोधार्थी ही पंजीकृत हो सकते हैं। जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी ने गत 18 अक्टूबर को जारी अधिसूचना के जरिए नई व्यवस्था जारी कर दी है।

आदेश निकाला गया है कि झारखंड सरकार द्वारा अनुमोदित यूजीसी की 2010 और 2018 नियमावली के तहत प्रोफेसर की योग्यता रखने वाले ऐसे एसोसिएट प्रोफेसर, जो भले ही प्रोफेसर के रूप में प्रोन्नत और पदस्थापित नहीं हुए हैं, वे प्रोफेसर के कोटे यानी 8 और इसी तरह असिस्टेंट प्रोफेसर, जो भले ही एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में प्रोन्नत और पदस्थापित नहीं हुए हैं, वे 6 शोधार्थियों को अपने अंदर पंजीकृत करा सकते हैं।

हैरान करने वाली बात यह है कि इसे लेकर झारखंड उच्च शिक्षा विभाग की ओर से से राज्य के विश्वविद्यालयों को कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। यही वजह है कि राज्य के किसी विश्वविद्यालय में ऐसा नियम नहीं बनाया गया है। लेकिन वीमेंस यूनिवर्सिटी ने अपने स्तर से इसे लागू कर दिया है। विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि इस नियमावली के जरिये यूजीसी की गाइडलाइन की खुली अवहेलना की जा रही है।

विवि के सिंडिकेट ने लगाई मुहर


हैरान करने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय ने यह बदलाव से संबंधित प्रस्ताव अपने ही सिंडिकेट में अनुमोदित इसे लागू कर दिया। हकीकत यह है कि किसी भी विश्वविद्यालय की सिंडिकेट विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नियमावली के विरूद्ध जाकर कोई नियम नहीं बना सकती। विश्वविद्यालय स्तर पर किसी नियम को अगर लागू किया जाना है तो सिंडिकेट से प्रस्ताव अनुमोदन के बाद उसे उच्च शिक्षा विभाग को भेजना चाहिए और उसकी स्वीकृति मिलने के बाद ही इसे लागू किया जाना चाहिए। इस मामले में कुलपति की मर्जी ही विश्वविद्यालय का कानून बन गया है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ


सेवानिवृत्ति प्रोफेसर डॉ. एमके प्रसाद की मानें तो विवि का यह फैसला यूजीसी के गाइडलाइन के खिलाफ है। यूजीसी की गाइडलाइन में स्पष्टत: पद के अनुसार शोधार्थियों की संख्या निर्धारित की गई है। न कि योग्यता के अनुसार, अगर योग्यता रखने की बात है तो झारखंड के सभी विश्वविद्यालयों में सैकड़ों एसोसिएट प्रोफेसर वर्षों से प्रोफेसर बनने की योग्यता रखते हैं। प्रोन्नति नहीं मिलने की वजह से वह प्रोफेसर नहीं बन पाए। इस लिए उन्हें प्रोफेसर के रूप में मिलने वाला लाभ नहीं मिल रहा। डॉ. प्रसाद ने दावा किया कि इस गलत फैसले से शोधार्थी छात्राओं को दी जाने वाली डिग्री भी अवैध हो जाएगी।

चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए नियम में किया गया बदलाव


छात्र नेता हेमंत पाठक ने आरोप लगाया कि निश्चित तौर पर ऐसा निर्णय किसी न किसी पदाधिकारी के कैंडिडेट को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया होगा। पैरवी वालों के लिए यूजीसी की नियमावली का सीधे तौर पर उल्लंघन किया गया है। ऐसी व्यवस्था से अराजकता आएगी। इस गलत फैसले से शोध छात्राओं को दी जाने वाली डिग्री भी अवैध हो जाएगी। यह छात्रहित का मामला है। हम जल्द ही बड़ा आंदोलन करेंगे। बिना प्रमोशन हुए अगर प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के कोटे की सीट दी जा सकती है तो वेतन और दूसरे लाभ भी दे देने चाहिए।

विवि ने कहा-सभी पक्षों से परामर्श के बाद लिया फैसला


इस फैसले को लेकर मीडिया की ओर से पूछे गए सवाल के जवाब में महिला विवि जमशेदपुर के प्रवक्ता डॉ. सुधीर साहू ने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग की ओर से कोई लिखित आदेश नहीं मिला है, लेकिन हमने जो निर्णय लिया है, वह राजभवन व उच्च शिक्षा विभाग के परामर्श के बाद ही लिया है। इसके साथ ही यह अभी सिंडिकेट का निर्णय है कि इसे कैसे और कब लागू करना है इस पर फैसला नहीं हुआ है। विवि में शिक्षकों की भारी कमी है और शोध के लिए छात्राओं की बड़ी संख्या को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। “द फोटोन न्यूज” की ओर से इस संबंध में कुलसचिव का बयान लेने के लिए फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

द फोटोन पड़ताल : एक अधिकारी की गिरफ्त में पूरा विश्वविद्यालय


दरअसल, विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पूरा विश्वविद्यालय एक अधिकारी की गिरफ्त में है। न जाने विश्वविद्यालय की कुलपति से लेकर रजिस्ट्रार व अन्य अधिकारियों को यहां के फाइनांस ऑफिसर से क्या लगाव है कि उनके फायदे के लिए यथासंभव प्रयास करते हैं। बताया जा रहा है कि यह उसी का परिणाम है। पीएचडी में फाइनांस ऑफिसर डॉ. जावेद अहमद की बेटी का एडमिशन नहीं हो पाया, क्योंकि प्रावधान के मुताबिक एक असिस्टेंट प्रोफेसर के सुपरविजन में चार शोधार्थी ही पीएचडी कर सकते हैं। ऐसे में फाइनांस ऑफिसर में रजिस्ट्रार व प्रॉक्टर से लेकर कुलपति के कार्यालय तक हो-हल्ला मचाया। दरसअल एक सीट पर दो छात्राएं दावेदार हो गईं। वित्त पदाधिकारी की बेटी और दूसरी छात्रा को पंजीकृत करने के लिए सिंडिकेट की बैठक कर असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के लिए निर्धारित शोध की सीट को बढ़ाने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा कंप्यूटर ऑपरेटरों की बहाली में भी विश्वविद्यालय के फाइनांस ऑफिसर को लाभ पहुंचाया गया।

नीचे से लेकर ऊपर तक सब मैनेज?


जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी को लेकर जो मौजूदा स्थिति है, उसे देखते हुए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां नीचे से लेकर ऊपर तक सबकुछ मैनेज है। किसी सवाल पर विश्वविद्यालय के अधिकारी तो कुछ बोलना चाहते ही नहीं, राज्य के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के अधिकारी तक किसी सवाल का जवाब देने से कतराते हैं। कुछ पूछने पर उनकी ओर से “देखते हैं”, “जानकारी नहीं है”, “यह तो विश्वविद्यालय का काम है” वगैरह-वगैरह जवाब दे कर टाल दिया जाता है। विश्वविद्यालय में लगातार अनियमितता के मामले सामने आ रहे हैं।

“उच्च शिक्षा विभाग की ओर से ऐसा कोई आदेश नहीं जारी किया गया है कि विवि खुद से यह तय करें कि एसोसिएट प्रोफेसर को प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर को एसोसिएट की तरह शोधार्थियों का रजिस्ट्रेशन अपने अंतर्गत कराएं।”
राहुल पुरवार, उच्च शिक्षा सचिव

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