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नए भारत में देव भाषा की बढ़ी प्रासंगिकता

by Rakesh Pandey
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गोड्डा : वर्ष 1969 से प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन विश्व संस्कृत दिवस मनाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिवस में यज्ञोपवीत के साथ गुरुकुल में विद्यार्थियों को वेदों की शिक्षा प्रारंभ कराई जाती थी और नया शिक्षण सत्र भी इसी दिन प्रारंभ होता था। संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषा है जिसकी वैज्ञानिकता और महत्व के कारण इसे देव भाषा भी कहा जाता है।

गोड्डा के पोड़ैयाहाट प्रखंड के डांडे गांव की रहने वाली माधवी मधुकर ने संस्कृत गायन में अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई हैं। बीते तीन वर्ष में इनके यू ट्यूब चैनल को देश विदेश के 20 करोड़ लोग देख व सुन चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी में इनका स्तोत्र नियमित प्रसारित होता है। भारत सरकार के कला व संस्कृति मंत्रालय की पैनल गायिकाओं में माधवी मधुकर भी शामिल हैं। आगामी जन्माष्टमी पर मध्य प्रदेश सरकार के आमंत्रण पर पन्ना स्थित युगल किशोर मंदिर में इनका कार्यक्रम होगा। वहीं 20 नवंबर को काशी विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में छह दिवसीय आयोजन में माधवी मधुकर शिव स्तुति पाठ करेंगी। उक्त कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित कई पीठों के शंकराचार्य शामिल होंगे।

माधवी मधुकर ने बताया कि मध्यकाल में विदेशी आक्रमणों के कारण संस्कृत भाषा के विकास में बाधा पहुंची और आधुनिक काल में अंग्रेजों ने स्वयं को श्रेष्ठ स्थापित करने के लिए अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया।आज भारतीय समाज पुनर्जागरण के युग में है, हाल के वर्षों में भारतीय समाज अपनी प्राचीन भाषा और संस्कृति के प्रति आसक्त हुआ है। आज संस्कृत भाषा केवल भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। संस्कृत गायन समाज के प्रत्येक वर्ग में तेजी से लोकप्रिय हुआ है।

बताया कि प्राचीन काल में व्याकरण और भाषा विज्ञान का उद्भव इसलिए हुआ क्योंकि पुरोहित वेद की ऋचाओं और मंत्रों के उच्चारण की शुद्धता को बहुत महत्व देते थे, भाषा के संबंध में भारतीयों की वैज्ञानिक दृष्टि का प्रथम परिणाम संस्कृत व्याकरण की रचना में पाया जाता है। 450 ईसा पूर्व में संस्कृत भाषा के लिए पाणिनि ने व्याकरण लिखा जो अष्टाध्यायी के नाम से विख्यात है। वैदिक काल के अंत में शास्त्रीय संस्कृत में वेदों के अर्थ के प्रतिपादन के लिए वेदांगों का प्रणयन किया गया। वैदिक स्वरों के शुद्ध उच्चारण के लिए शिक्षा शास्त्र की रचना की गई, जो स्वर, वर्ण आदि उच्चारण के प्रकार का उपदेश दे। उच्चारण में स्वरों की साधारण त्रुटि से भी अनर्थ हो जाता था।

माधवी मधुकर बताती हैं कि उन्होंने स्वाध्याय और नियमित अभ्यास से संस्कृत स्तोत्र गायन को सरल और सुमधुर तरीके से करोड़ों श्रोताओं को संस्कृत से जोड़ने में सफल रही हैं। कोरोना काल में रोग नाशक मंत्र की वैज्ञानिक क्षमता विदेशों में भी लोकप्रिय हुई।

युवा पीढ़ी भी अनुरक्त हो रही है। आज देश में धार्मिक पर्यटन तेजी से बढ़ा है और धार्मिक साहित्य की बिक्री बढ़ी है। आधुनिक संचार माध्यमों ने कथा वाचकों को बेहतर प्लेटफार्म मिला है। इससे संस्कृत भाषा को आम लोगों तक पहुंचने में मदद मिली है।

उत्तराखंड राज्य ने संस्कृत भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया है और अधिकांश विश्वविद्यालय संस्कृत में शोध और पठन-पाठन को बढ़ावा दे रहे हैं। चतुर्थ औद्योगिक क्रांति आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है और इसके लिए संस्कृत को सबसे उपयुक्त भाषा माना जा रहा है। आधुनिक विज्ञानी कंप्यूटर के लिए संस्कृत को सबसे वैज्ञानिक भाषा मानते हैं।

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इतिहासकार व लेखक डा सुशील पांडेय कहते हैं कि आज संस्कृत भाषा की अत्यधिक प्रासंगिकता है और इसके उपयोग से समाज की अनेक विकृतियां दूर हो रही है। अपनी वैज्ञानिकता और उपादेयता के कारण संस्कृत समाज में अब प्रासंगिक हो गई है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हिब्रू भाषा को मृतप्राय भाषा माना जाता था, लेकिन यहूदियों ने अपनी अदम्य इच्छा शक्ति से अपनी भाषा को पुनर्जीवित कर दिया। आज संस्कृत भी अपनी वैज्ञानिकता और आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप स्वीकार की जा रही है।

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