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Dr. Bhimrao Ambedkar : डॉ. भीमराव अंबेडकर का प्रेरणादायक नारा : ‘शिक्षा, विरोध और संगठन’ के माध्यम से समाज में परिवर्तन

by Rakesh Pandey
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फीचर डेस्क : डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय समाज के सबसे महान नेताओं में से एक थे। उनका योगदान भारतीय समाज की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने दलितों, पिछड़े वर्गों और अन्य समाजों को सामाजिक न्याय, समानता और अधिकारों की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। उनका सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली नारा था ‘Educate, Agitate, Organize’ (शिक्षा प्राप्त करो, विरोध करो और संगठित हो जाओ)। इस नारे के माध्यम से उन्होंने समाज के सबसे दबे-कुचले वर्ग को जागरूक किया और उन्हें सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित किया। आइए, इस नारे के महत्व और इससे जुड़े बाबासाहेब अंबेडकर के दृष्टिकोण पर चर्चा करें।

शिक्षा प्राप्त करो (Educate)

डॉ. अंबेडकर ने हमेशा शिक्षा को एक ताकत के रूप में देखा, जो किसी भी व्यक्ति या समाज के उद्धार का सबसे प्रभावी साधन है। उनका मानना था कि शिक्षा से ही व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकता है और समाज में अपने लिए बेहतर स्थान बना सकता है। उन्होंने यह महसूस किया कि भारतीय समाज में दलितों और पिछड़े वर्गों को शिक्षा से वंचित रखा गया था, जिससे उन्हें सामाजिक और आर्थिक स्तर पर दबाव का सामना करना पड़ा।

बाबा साहेब ने यह भी कहा था कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसे आप दुनिया को बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने न केवल दलितों के लिए शिक्षा का रास्ता खोला, बल्कि उन्होंने समाज के हर वर्ग से आग्रह किया कि वे शिक्षा प्राप्त करें, ताकि वे अपने अधिकारों का पूरा उपयोग कर सकें और एक समान समाज की स्थापना में योगदान दे सकें।

विरोध करो (Agitate)

विरोध करो का अर्थ केवल किसी चीज़ का विरोध करना नहीं था, बल्कि यह एक आंदोलन की ओर संकेत करता था। डॉ. अंबेडकर ने समाज के विभिन्न शोषण और भेदभाव के खिलाफ खुलकर विरोध किया। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता और शोषण को चुनौती दी और इसके खिलाफ आवाज उठाई।

उनके आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक असमानता के खिलाफ था। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से दलितों को यह सिखाया कि अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना जरूरी है। उनका मानना था कि जब तक समाज में भेदभाव रहेगा, तब तक शोषण और अत्याचार का शिकार होना आम बात होगी। इसलिए, वे हमेशा अपने अनुयायियों से यह कहते थे कि अगर समाज में बदलाव लाना है, तो इसके लिए हमें विरोध करना होगा और समाज को यह समझाना होगा कि हमें बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए।

संगठित हो जाओ (Organize)

डॉ. अंबेडकर का तीसरा नारा था संगठित हो जाओ। उनका मानना था कि एकजुटता में शक्ति है। उन्होंने हमेशा समाज के उत्पीड़ित वर्गों से यह अपील की कि वे संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें। अकेले संघर्ष करना मुश्किल था, लेकिन यदि लोग एकजुट होते हैं, तो वे किसी भी प्रकार के शोषण और असमानता का मुकाबला कर सकते हैं।

डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों से यह कहा कि हमें जातिवाद, सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई करनी चाहिए। उन्होंने यह महसूस किया कि यदि लोग एकजुट होते हैं, तो वे न केवल अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि समाज में बदलाव भी ला सकते हैं।

डॉ. भीमराव अंबेडकर का नारा Educate, Agitate, Organize केवल एक नारा नहीं था, बल्कि यह एक आंदोलन था, एक दिशा थी, जो भारतीय समाज के हर वर्ग को प्रेरित करती थी। यह नारा आज भी हमारे समाज में उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। उन्होंने हमें यह सिखाया कि शिक्षा के माध्यम से हम अपने अधिकारों को पहचान सकते हैं, विरोध करके हम समाज में बदलाव ला सकते हैं और संगठित होकर हम एक समान और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना कर सकते हैं।

डॉ. अंबेडकर का यह संदेश हमें यह याद दिलाता है कि अगर हमें एक समान, न्यायपूर्ण और सशक्त समाज की दिशा में कदम बढ़ाना है, तो हमें इन तीन मूल मंत्रों को अपने जीवन में उतारना होगा। बाबा साहेब का यह नारा आज भी प्रेरणा का स्रोत है और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है।

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