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Jharkhand High Court fine : झारखंड हाईकोर्ट ने याचिका किया खारिज, प्रार्थी पर लगाया 25 लाख का जुर्माना, जानें-क्या है पूरा मामला

सक्षम अदालत के आदेश पर उस स्थल पर धारा 144 लागू की गई थी। सक्षम अदालत ने रांची नगर निगम को उस स्थल का निरीक्षण करने का भी आदेश दिया था।

by Reeta Rai Sagar
jharkhand High Court
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Ranchi (Jharkhand) : झारखंड हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग और सक्षम अदालतों के दायरे का उल्लंघन करने पर कड़ा रुख अख्तियार किया है। गुरुवार को हाईकोर्ट ने एक याचिका को खारिज करते हुए प्रार्थी पर ₹25 लाख का भारी-भरकम हर्जाना लगाया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब मामले की सुनवाई सक्षम प्राधिकार में चल रही हो, तो सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि इसके लिए हाईकोर्ट सक्षम न्यायालय नहीं है।

सेफ्टी टैंक विवाद: एसडीम से नगर निगम तक, फिर हाईकोर्ट

यह पूरा मामला हिनू निवासी लीलावती देवी (Lilawati Devi) द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है। जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई। लीलावती देवी ने अपनी याचिका में बताया था कि उन्होंने एसडीएम (सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट) के पास एक आवेदन देकर शिकायत की थी कि कुछ लोगों ने उनके घर के सामने की सड़क पर अवैध रूप से सेफ्टी टैंक बना लिया है, जिसे हटाया जाना चाहिए।

इसके बाद, सक्षम अदालत के आदेश पर उस स्थल पर धारा 144 लागू की गई थी। सक्षम अदालत ने रांची नगर निगम को उस स्थल का निरीक्षण करने का भी आदेश दिया था। रांची नगर निगम ने निरीक्षण के बाद अपनी रिपोर्ट में बताया था कि वहां वास्तव में एक सेफ्टी टैंक बना हुआ है और इसे तोड़ा जाना चाहिए। इसके उपरांत, उस सेफ्टी टैंक को तोड़ने का आदेश भी जारी किया गया था।

लीलावती देवी ने बाद में रांची नगर निगम में सेफ्टी टैंक तुड़वाने से संबंधित आवेदन भी दिया, लेकिन किसी कारणवश सेफ्टी टैंक को हटाया नहीं जा सका। इसी बिंदु पर प्रार्थी ने सीधे झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी।

हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: सक्षम न्यायालय में सुनवाई का निर्देश

हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि यह प्रकरण पहले से ही सक्षम अदालतों और प्राधिकारों के समक्ष विचाराधीन था और उन निकायों द्वारा कार्रवाई भी की जा रही थी। ऐसे में, सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर करना न्यायिक प्रक्रिया का उचित तरीका नहीं था। कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि न्यायिक प्रणाली में एक स्थापित पदानुक्रम है, और मामलों को उनके उचित फोरम पर ही उठाया जाना चाहिए।

₹25 लाख का यह जुर्माना एक नजीर बन सकता है, जो अनावश्यक मुकदमों और न्यायिक व्यवस्था के दुरुपयोग को हतोत्साहित करेगा। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो सक्षम अदालतों की अनदेखी कर सीधे उच्च न्यायालयों का रुख करते हैं।

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