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झारखंड की राजनीति में ‘रामायण’-‘महाभारत’ की कहानी

by Rakesh Pandey
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एक्सक्लूसिव स्टोरी

जमशेदपुर :  Jharkhand Politics : झारखंड की राजनीति में मौजूदा घटनाक्रम के बीच ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ की कहानी एक बार फिर चर्चा में आ गई है। कांग्रेस पार्टी के विधायक और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने पहले किरदार का जिक्र कर कहानी को नया मोड़ दे दिया है।

सोमवार को दिए गए अपने बयान में बन्ना ने झामुमो के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन को विभीषण बता दिया। जाहिर है विभीषण का नाम आते ही सबके मानस पटल पर रामायण की कहानी उभर गई। अब चर्चा हैं कि त्रेतायुग के पात्र को कलयुग में पहचानने वाले मंत्री महोदय को लोकहित में राम और रावण की पहचान भी उजागर कर देनी चाहिए। सवाल पूछे जा रहे हैं कि बन्ना की नजर में अगर चम्पाई विभीषण हैं, तो फिर वह रावण किसे मानते हैं और उनकी नजर में राम कौन है।

अब बात महाभारत की। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध पुत्र मोह का परिणाम था। इसी वजह से पुत्र मोह रखने वाले को आज भी धृतराष्ट्र की संज्ञा दी जाती है। द्वापर युग की इस कहानी को अब अनायास ही कलयुग में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के साथ जोड़ा जा रहा है। अब तक चम्पाई सोरेन के झामुमो छोड़ने को लेकर जो भी बातें सामने आ रही हैं, नजदीकी लोग उसे चम्पाई के पुत्र मोह का परिणाम बता रहे हैं।

चम्पाई सोरेन व उनके पुत्र बाबूलाल सोरेन को करीब से जानने वाले बताते हैं कि चम्पाई ने पुत्र बाबूलाल की वजह से यह  कदम उठाया है। कहा जा रहा है कि चम्पाई को खेमा बदल कर फिर मुख्यमंत्री बनने का सब्जबाग उनके बेटे ने दिखाया।

पूरी पटकथा लिखने में मुख्य किरदार बाबूलाल सोरेन का रहा। सूत्र दावा करते हैं कि पिता के निर्णय से पहले ही वह विरोधी खेमे में जाकर बैठ गए। इतना ही नहीं, उन्होंने पिता पर इस बात के लिए भी दबाव डाला कि वह खेमा बदलकर दूसरी तरफ आ जाएं। इसमें बाबूलाल सोरेन की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी। वह घाटशिला या पोटका से टिकट चाह रहे थे। मौजूदा समय में इन दोनों सीटों पर जेएमएम के विधायक हैं।

ऐसे में यह सत्ताधारी दल में रहते हुए यह संभव नहीं था कि सीटिंग विधायक का टिकट काटकर बाबूलाल को सौंपने का जोखिम पार्टी उठाती। अगर झामुमो इसके लिए सहमत भी होती तो उसे पूरे चुनाव में परिवारवाद के आरोप का सामना उसे विपक्ष के साथ-साथ दल से भी करना पड़ता।

ऐसा पहली बार नहीं है, जब बाबूलाल ने चम्पाई के सामने धर्मसंकट की स्थिति पैदा की हो। पहले भी वे पिता के समक्ष असहज हालात बनाते रहे हैं।

बताया जाता है कि जब चम्पाई पहली बार परिवहन मंत्री बने थे, तो बाबूलाल ने उनके समक्ष विकट स्थिति पैदा कर दी थी। हुआ यूं कि मंत्री बनने के कुछ ही दिन बाद अपने साथियों का झुंड लेकर पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त कार्यालय आए और जिला परिवहन पदाधिकारी की कुर्सी पर बैठ गए। यह फोटो वायरल होने पर चम्पाई को सरकार और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष सफाई देनी पड़ी थी।

चम्पाई के मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर वही कहानी दोहराई गई। इस बार इस खेल में कथित दुर्योधन के साथ ‘शकुनी मामा’ भी शामिल हो गए। सूत्र दावा करते हैं कि बतौर मुख्यमंत्री चम्पाई जब अपने गांव जिलिंगगोड़ा आए, तो बाबूलाल मुख्यमंत्री की पूरी कारकेड लेकर जादूगोड़ा के रिसोर्ट पहुंच गए। मामला यहीं नहीं थमा।

मुख्यमंत्री के लिए बने एक मंच पर विभागीय सचिव स्तर के लिए पहली कतार में लगी कुर्सी पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के ठीक बगल में बाबूलाल ने अपना आसन जमा लिया। यह बात तत्कालीन अधिकारियों तक को रास नहीं आई थी, लेकिन प्रोटोकॉल होने के कारण वह किसी तरह इधर-उधर कुर्सी कर अपनी गरिमा बचाने में लगे रहे। चम्पाई सरकार के समय ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेल में भी दुर्योधन और शकुनी ने खूब मनमानी की।

आलम यहां तक पहुंच गया कि कुर्सी छोड़ते-छोड़ते तक चम्पाई को अपने गृह जिले में प्रशासनिक फेरबदल करने पर मजबूर होना पड़ा। राजनीतिक पंडित शकुनी की संज्ञा किसे दे रहे हैं, यह गंभीर चर्चा का विषय है।

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