स्पेशल डेस्क : जिउतिया (जीवित्पुत्रिका) व्रत हिन्दू समुदाय में एक महत्वपूर्ण परंपरागत धार्मिक त्योहार है जो माताओं के लिए उनके बच्चों के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करता है। वहीं महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी जीवित्पुत्रिका का व्रत करते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की आठवीं या नवमी तिथियों को मनाया जाता है। इस दौरान महिलाएं अपनी संतान की सलामती के लिए निर्जला व्रत रहती हैं।
इस व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है इसके अगले दिन महिलाएं व्रत करती और उसके अगले दिन व्रत को तोड़ती है। मान्यता है कि व्रत के अगले दिन महिलाएं जितना देरी से व्रत तोड़ेंगी उनकी संतान के लिए उतना अच्छा रहेगा यही वजह है कि इसे खर जिउतिया भी कहते हैं।
जिउतिया व्रत पूजा विधि :
जिउतिया व्रत का पालन करने वाली माताएं तय की तिथि पर उद्यापन करती हैं। पूजा की शुरुआत दोपहर के बाद की तिथि में की जाती है। माताएं विशेष ध्यान देती हैं कि वे पूरी शुद्धता और सजीवता के साथ इस पूजा को करें।
पूजा का आयोजन नीत और स्वच्छ स्थान पर किया जाता है। माताएं नए या साफ कपड़े पहनती हैं और सजावट के लिए सुंदर फूलों, फलों, और मिठाईयों का इस्तेमाल करती हैं। पूजा का मुख्य अंश देवी और देवताओं को फल, फूल, और मिठाई की अर्पण के रूप में होता है।
इस व्रत पूजा के लिए शुभ मुहूर्त :
जिउतिया व्रत की पूजा और उपवास के लिए निश्चित समय होता है, जो स्थानीय पंचांग (हिन्दू कैलेंडर) के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकता है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि साल 2023 के 6 अक्टूबर को सुबह 6:34 बजे से शुरू होकर अगले दिन यानी 7 अक्टूबर सुबह 8:08 बजे समाप्त होगी। व्रत का पारण 7 अक्टूबर सुबह 8:08 के बाद से किया जा सकता है।
पूजा की शुरुआत सुबह की पहली किरनों के साथ होती है और उपवास भक्तों के लिए सूर्यास्त के समय खोला जाता है। जिउतिया व्रत के दिन व्रती महिलाएं उपवासी होती हैं, और व्रत के बाद ही अन्य ग्रहण करती हैं।
माताएं अपने परिवार के लिए संकल्प लेती हैं कि उनके बच्चे सदैव स्वस्थ और सुरक्षित रहें। जिउतिया व्रत का महत्व उनके आत्म-विश्वास को मजबूत करता है, और यह उन्हें एक मातृका के रूप में उनके बच्चों के प्रति उनकी दिव्य भावनाओं की गहरी भावना करने का मौका देता है।
नहाए खाए कैसे करें :
इस दिन महिलाएं सुबह-सुबह उठकर शुद्धता से स्नान करके, बेहतरीन होगा अगर आप गंगा स्नान करें, और पूजा करती हैं। स्नान के बाद महिलाएं पूजा का संकल्प लेती हैं और नहाए खाए के दिन एक बारी भोजन करना होता है।
व्रत का पूरा नियम:
जीवित्पुत्रिका के नाम से प्रचलित यह पवन व्रत नहाए खाए से शुरू होकर फिर व्रत और पारण के बाद पूरा होता है। इस व्रत में महिलाएं अन जल का त्याग कर अपने संतान की लंबी आयु, सुख में जीवन और रोग रहित संतान की कामना करती हैं।
जिउतिया व्रत हिन्दू संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो माताओं के प्रति उनके भावनाओं की गहरी भावना को दर्शाता है। यह व्रत माताओं के प्रेम और ममता का प्रतीक होता है और उनके बच्चों के लिए उनकी अद्भुत भावनाओं की मान्यता करता है। इसके अलावा, जिउतिया व्रत पूजा विधि के माध्यम से धार्मिक तात्पर्य और ध्यान की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और व्रती को शांति और समृद्धि की कामना करने का मौका देता है।
इसलिए, जिउतिया व्रत एक मां के प्रति उनके संकल्प को मजबूत करने और उनके बच्चों के लिए उनकी प्रार्थनाओं को मान्यता दिलाने का महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हमारे समाज में मातृका की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता है।