Ranchi: झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) द्वारा आयोजित पहली और दूसरी संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा से जुड़े चर्चित मेरिट घोटाले में अब भी न्यायिक प्रक्रिया बाधित है। इसकी प्रमुख वजह अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया में हो रही देरी है। बताया जा रहा है कि उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग जानबूझकर इस मामले को लटकाए हुए है और परीक्षकों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति का प्रस्ताव सरकार को नहीं भेज रहा है।
सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जब इस देरी की जानकारी हुई, तो उन्होंने इस पर गंभीरता दिखाई है। यह मामला अब एक बार फिर सुर्खियों में है क्योंकि सीबीआई बार-बार लगभग दो दर्जन परीक्षकों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की मांग कर रही है, लेकिन यह फाइल तकनीकी शिक्षा विभाग के पास अटकी हुई है।
अधिकांश परीक्षक कॉलेजों के प्रोफेसर और लेक्चरर, इसलिए विभागीय मंजूरी जरूरी
इन परीक्षकों में से अधिकांश राज्य के कॉलेजों में प्रोफेसर और लेक्चरर के पद पर कार्यरत हैं। ऐसे में अभियोजन की स्वीकृति उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के माध्यम से सरकार को भेजी जानी है, जिसके बाद विधि विभाग की राय लेकर अंतिम स्वीकृति दी जाएगी। जबकि जेपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्य और परीक्षा नियंत्रक सहित अन्य सरकारी कर्मियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति सरकार पहले ही सीधे दे चुकी है।
चर्चित मेरिट घोटाला: जिनके नाम शामिल, वे आज भी पदों पर
जेपीएससी की पहली और दूसरी सिविल सेवा परीक्षा राज्य के इतिहास का सबसे बड़ा मेरिट घोटाला माना जाता है। इसमें हुई धांधलियों के कारण न केवल आयोग की साख पर प्रश्नचिह्न लगे, बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों में कई बड़े अधिकारी जेल तक जा चुके हैं। इनमें तत्कालीन अध्यक्ष दिलीप प्रसाद, प्रो. शांति देवी, डॉ. गोपाल प्रसाद सिंह, राधा गोविंद सिंह और परीक्षा नियंत्रक एलिस उषा रानी जैसे नाम शामिल हैं। सभी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।
पहले इस मामले की जांच एसीबी ने की थी, जिसमें कई अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं में नंबरों की हेराफेरी कर उन्हें अवैध रूप से पास कराने का खुलासा हुआ। इसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया, जिसने अपनी चार्जशीट भी अदालत में दायर कर दी। लेकिन अभियोजन की स्वीकृति न मिलने के कारण अदालती प्रक्रिया अब भी लंबित है।
जिनका चयन हुआ, उनमें हैं राजनीतिकों के रिश्तेदार
इस विवादित परीक्षा के माध्यम से कई प्रभावशाली नामों का चयन हुआ, जिनमें राजनीतिक हस्तियों के करीबी रिश्तेदार शामिल हैं। इनमें प्रशांत कुमार लायक, चिंटु दोराई बुरू, विकास पांडेय, राधा प्रेम किशोर, मौसमी नागेश, मुकेश कुमार महतो, अरविंद कुमार सिंह, विजय आशीष कुजूर, विनोद राम, हरिशंकर सिंह मुंडा, कुंदन कुमार सिंह, लाल मोहन नाथ शाहदेव, प्रकाश कुमार, कुमारी गीतांजलि, संगीता कुमारी, रजनीश कुमार आदि प्रमुख हैं।
हैरानी की बात यह है कि अदालत से कोई निर्णय आए बिना ही इन अधिकारियों को लगातार प्रोन्नतियां दी जा रही हैं। जानकार बताते हैं कि इनमें से कुछ अधिकारी अब सेवानिवृत्त होने की कगार पर हैं, जिससे सरकार की नियत और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं।
सरकार की चुप्पी और कार्रवाई की रफ्तार बनी चिंता का विषय
वर्षों से लंबित इस गंभीर भ्रष्टाचार मामले में राज्य सरकार की निष्क्रियता और तकनीकी शिक्षा विभाग की उदासीनता से सीबीआई की कार्रवाई पर भी ब्रेक लग गया है। यह स्थिति राज्य की न्यायिक प्रक्रिया और पारदर्शिता को कठघरे में खड़ा करती है।
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