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Guwahati News : चार दिन बाद खुले कामाख्या मंदिर के कपाट, अंबुबाची महापर्व का विधिवत समापन

by Rakesh Pandey
kamakhya temple
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Kamakhya Temple : गुवाहाटी : असम की नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर के कपाट गुरुवार सुबह चार दिवसीय धार्मिक विराम के बाद श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। यह अवसर केवल मंदिर के खुलने भर का नहीं था, बल्कि देवी कामाख्या के अंबुबाची महापर्व के विधिवत समापन का प्रतीक भी बना, जो स्त्रीत्व और मासिक धर्म की पवित्रता को सम्मान देने वाला पर्व है।

सुबह 5 बजे से खुले देवी के दर्शन

देवी कामाख्या के गर्भगृह के कपाट सुबह 5:00 बजे आम भक्तों के लिए खोले गए। इससे पूर्व, रात 3:19 बजे अंबुबाची की ‘निवृत्ति’ की औपचारिक घोषणा की गई, जो देवी के मासिक विश्राम की समाप्ति को दर्शाता है। मंदिर परिसर को वैदिक विधियों द्वारा शुद्ध किया गया, देवी को नए वस्त्र एवं आभूषण पहनाए गए, जिसके बाद भक्तों को दर्शन की अनुमति मिली।

श्रद्धालुओं का जनसैलाब

देशभर से लाखों श्रद्धालु इस महापर्व के अंतिम दिन रात से ही मंदिर परिसर में उपस्थित थे। मंदिर खुलते ही परिसर में मंत्रोच्चार, घंटियों की गूंज, धूप और पुष्पों की सुगंध से माहौल भक्तिमय हो गया। श्रद्धालु पंक्तिबद्ध होकर देवी के दर्शन करते रहे और इस विशेष अवसर का पुण्य लाभ लिया।

मासिक धर्म को सम्मान देने वाली परंपरा

कामाख्या मंदिर का अंबुबाची महापर्व हिंदू धर्म की उस अनूठी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें मासिक धर्म और स्त्री शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया को दैवीयता और शक्ति के रूप में देखा जाता है। मान्यता के अनुसार, इस दौरान देवी कामाख्या मासिक धर्म में होती हैं और मंदिर के कपाट चार दिनों तक बंद रहते हैं। इसे पृथ्वी माता के विश्राम का प्रतीक माना जाता है।

राज्यपाल ने आम श्रद्धालुओं संग किए दर्शन

इस विशेष अवसर पर असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया भी अपने परिवार सहित मंदिर पहुंचे। उन्होंने किसी विशेष वीआईपी सुविधा का उपयोग न करते हुए, आम श्रद्धालुओं की पंक्ति में खड़े होकर देवी के दर्शन किए। यह दृश्य श्रद्धालुओं के बीच चर्चा का विषय बना और इसे सरलता और समावेशिता की मिसाल बताया गया।

वीआईपी नहीं, सभी के लिए समान पंक्ति

मंदिर प्रशासन ने इस वर्ष कोई वीआईपी व्यवस्था न रखने की घोषणा की थी। सभी भक्तों – चाहे वे सामान्य हों या विशिष्ट – को एक ही पंक्ति में खड़े होकर दर्शन करना अनिवार्य किया गया। इस निर्णय को ‘आध्यात्मिक लोकतंत्र’ के उदाहरण के रूप में सराहा गया।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समरसता का संदेश

कामाख्या मंदिर का अंबुबाची महापर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सांस्कृतिक चेतना, आध्यात्मिक समरसता और स्त्रीत्व के सम्मान का उत्सव भी है। यह पर्व जीवन की उत्पत्ति को एक महापवित्र घटना के रूप में प्रतिष्ठित करता है, जहां नारीत्व को पूजा जाता है और समाज को एक समावेशी दृष्टिकोण की सीख दी जाती है।

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