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जानें रक्षाबंधन का पर्व कब है? श्रावण पूर्णिमा के दिन क्या होगा शुभ मुहूर्त? जानें इस रिपोर्ट में

by Rakesh Pandey
जानें रक्षाबंधन का पर्व कब है
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धर्म कर्म डेस्क। जानें रक्षाबंधन का पर्व कब है: भाई और बहन के पवित्र रिश्तों के पर्व रक्षाबंधन में महज अब चार दिन ही बचे हैं। सावन की पूर्णिमा को रक्षाबंधन के मनाया जाता है और इसके साथ ही सावन भी समाप्त हो जाता है। इनदिनों चारों तरफ रक्षाबंधन की धूम है। बाजारों में राखियों से पूरा बाजार सज चुका है। एक से बढ़कर एक राखियां बाजार की रौनक को बढ़ा रही हैं।

जानें रक्षाबंधन का पर्व कब है

त्योहार को लेकर क्यों है संशय?

हर साल की तरह इस साल भी लोगों में हर्ष व उल्लास देखा जा रहा है। हालांकि इस बार रक्षाबंधन त्योहार को लेकर हर के मन में संशय बना हुआ है कि इसे किस दिन मनाएं। क्योंकि इस बार रक्षाबंधन के दिन भद्रा नक्षत्र का साया है। ऐसा माना जाता है कि भद्रा नक्षत्र रहने तक बहनों को अपने भाइयों को राखी नहीं बांधनी चाहिए।

जानें रक्षाबंधन का पर्व कब है

आइये जानते हैं कि रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त को लेकर हिंदू कैलेंडर क्या कहता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार सावन की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 30 अगस्त को सुबह 10: 58 मिनट से होगी। यह पूर्णिमा तिथि 31 अगस्त को सुबह 7:05 बजे तक ही रहेगी।

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हालांकि कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा के साथ ही भद्रा नक्षत्र भी शुरू हो रहा है, यानी 30 अगस्त सुबह 10:58 बजे से पूर्णिमा के साथ भद्रा भी शुरू हो रहा है, जो रात 9 : 01 बजे तक रहेगा।

किस तिथि को मनाएं रक्षाबंधन?

अगर कैलेंडर के अनुसार देखा जाए तो राखी बांधने का सही समय 30 अगस्त रात 9:01 से लेकर 31 अगस्त सुबह 7:07 मिनट तक है। लेकिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार कोई भी पर्व व त्योहार उदय तिथि के अनुसार मनाया जाता है। कैलेंडर के अनुसार उदय तिथि 31 अगस्त को पड़ रही है। ऐसे में अधिकांश लोग 31 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनायेंगे। रक्षाबंधन मनाने के समय की सही जानकारी नहीं होने के चलते बहुत लोग दोनों दिन रक्षाबंधन मनायेंगे। अक्सर यह हर वर्ष ऐसा देखा जाता है।

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बहनें कैसे रक्षा सूत्र बांधें अपने भाई को

लोग पूरी विधि विधान से राखी का पर्व मनाते हैं। विशेष रूप से वास्तु शास्त्र का बखूबी ध्यान रखा जाता है। घरों की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। रक्षाबंधन के दिन बहन और भाई दोनों ही राखी बांधने तक उपवास रखते हैं। सुबह स्नान-ध्यान कर नये वस्त्र धारण करने के बाद बहनों को मन्दिर या घरों में स्थापित इष्टदेव की आराधना करनी चाहिए। उन्हें प्रसाद चढ़ाकर विधिवत पूजा करनी चाहिए।

उसके बाद पूजा की थाली में स्वास्तिक बनाना चाहिए। अक्षत, रोली, आरती और मिष्ठान को रखकर भाई को पूरब या उत्तर दिशा में मुख करके भाई के सिर पर एक कपड़ा रखना चाहिए। उसके बाद बहनें भाई के माथे पर तिलक कर आरती करें। आरती उतारने के बाद भाई की दाहिनी कलाई में राखी बांधना चाहिए।

मिठाई खिलाकर भाई की लंबी आयु की कामना करनी चाहिए। वहीं दूसरी तरफ भाई अपने बहन को आजीवन रक्षा करने का प्रण करते हैं। बहन को आकर्षक उपहार देते हैं।

रक्षाबंधन की क्या है मान्यताएं?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन पर्व का संबंध सदियों से है जो चला आ रहा है। रक्षाबंधन का संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार के समय से मिलता है। भगवान वामन ने असुर राजा बलि से तीन पग में तीनों लोक भिक्षा में मांगी। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को पाताल लोक में रहने का वरदान मांग लिया।

भगवान विष्णु भी राजा बलि को मना नहीं कर सके। ऐसे में भगवान विष्णु पाताल लोक चले गए और लंबे समय तक वे बैकुंठ नहीं लौटे। माता लक्ष्मी की चिंता होने लगी। तब महर्षि नारद ने राजा बलि को अपना भाई बनाने की सलाह दी। माता लक्ष्मी एक गरीब स्त्री का रूप धारण कर राजा बलि के पास पाताल लोक पहुंची। वहां राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर उनको अपना भाई बना लिया।

उसके बाद अपने भाई बलि से उपहार वस भगवान विष्णु को पाताल लोक से बाहर ले जाने का वचन ले ली। उस दिन सावन की पूर्णिमा तिथि थी। उसके बाद से रक्षाबंधन का पर्व लोकप्रिय हो गया। रक्षाबंधन को लेकर अन्य कई मान्यताएं मिलती है।

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