सेंट्रल डेस्क: दुर्गापूजा के बाद बुधवार 16 अक्टूबर 2024 को शरद पूर्णिमा का पावन पर्व है। 17 अक्टूबर को भी इस पर्व को मनाया जाएगा। यह दिन विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। शरद पूर्णिमा का पर्व मुख्य रूप से ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम में शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग मंडप में मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करते हैं और घर में विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। इस दिन पूजा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसे दीवाली से पहले का सबसे शुभ समय माना जाता है।
क्या है पूजा की विधि
पूजा का समय: निशिता काल में माता लक्ष्मी की पूजा करें।
स्थान की तैयारी: शाम को मंदिर की सफाई करें और लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करें।
अर्पण: माता लक्ष्मी को फूल, अक्षत, चंदन, और कमल के फूल अर्पित करें।
दीप: देवी के सामने घी का दीपक जलाएं और मंत्र का उच्चारण करें।
मुख्य द्वार: रात के समय घर का मुख्य द्वार खोलकर रखें।
कथा का पाठ: कोजागरी पूर्णिमा की कथा का पाठ करें और लक्ष्मी जी की आरती करें।
भोग: आरती के बाद खीर और बताशे का भोग लगाएं।
कोजागरी पूजा क्यों की जाती है ?
कोजागरी पूजा का महत्व वालखिल्य ऋषि ने बताया है। कोजागरी पूजा की रात्रि में माता लक्ष्मी जागरण कर रहे भक्तों को वर देने के लिए पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने आती हैं। पंडितों के अनुसार जो भी भक्तगण दरिद्रता से घिरे हुये हैं, उन्हें इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस दिन व्रत कर रात में मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं वह न सिर्फ इस जन्म में और दूसरे जन्मों में भी ऐश्वर्य आरोग्य एवं पुत्र-पौत्रादि का आनन्द भोगता है।
पूजा का महत्व
कोजागरी पूजा का शास्त्रों में विशेष महत्व है। इस दिन रात में जागरण करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धरती पर भ्रमण करती हैं। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि आती है और दरिद्रता दूर होती है। व्रत कर रात में मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस पूजा के माध्यम से भक्त अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
क्या है मान्यता?
मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है, इसलिए खीर बनाते हैं और शाम को छत पर या खुले में खीर रखकर अगले दिन सुबह उसका सेवन करते हैं। कहा जाता है कि रातभर इसे चांदनी में रखने से इसकी तासीर बदलती है और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
कहीं आज तो कहीं कल मनाई जा रही शरद पूर्णिमा
इस बार शरद पूर्णिमा मनाने के समय को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में 16 व 17 अक्टूबर को यह पर्व मनाया जा रहा है। ऐसा क्यों है? इस सवाल पर प्रकांड पंडित जयजीव भानु बताते हैं कि शरद पूर्णिमा गुरुवार यानि 17 अक्टूबर को मनाना ज्यादा श्रेयस्कर है क्योंकि अगले दिन कार्तिक मास प्रारंभ हो रहा है। बुधवार की रात 7.48 बजे से लेकर गुरुवार की शाम 5.24 बजे तक पूर्णिमा है। रेवती नक्षत्र शाम 5.39 बजे तक है। ऐसे में शरद पूर्णिमा 17 अक्टूबर को मनाना अधिक श्रेयस्कर है।
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