Chaibasa (Jharkhand) : कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा स्नातकोत्तर विभाग ने एक भव्य समारोह का आयोजन किया। शनिवार को हुए इस कार्यक्रम में आदिवासी संस्कृति की समृद्ध विरासत और उसके संरक्षण पर गहन चर्चा की गई।
भाषा और संस्कृति से ही संभव है समाज का विकास
समारोह के मुख्य अतिथि मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ. तपन कुमार खांडा थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासियों की अस्मिता और अस्तित्व को बचाने के लिए उनकी भाषा-संस्कृति, सामाजिक परंपराओं और रीति-रिवाजों से संबंधित पुस्तकों की रचना उनकी अपनी लिपि में करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अपनी भाषा और साहित्य के माध्यम से ही समाज का संपूर्ण विकास किया जा सकता है।
कार्यक्रम का आरंभ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के छात्र-छात्राओं ने पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करके किया। स्वागत भाषण देते हुए डॉ. बसंत चाकी ने विश्व आदिवासी दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला। इसके बाद छात्र-छात्राओं ने स्वागत गीत, कविता, संगीत और आदिवासी अस्तित्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
आदिवासी ही मानव की मूल संस्कृति के सृजनकर्ता हैं: डॉ. सुनील मुर्मू
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील मुर्मू ने कहा कि विश्व में आदिवासी ही मानव की मूल संस्कृति के सृजनकर्ता हैं। उनकी सभ्यता और संस्कृति प्रकृति की पोषक है और वे प्रकृति की हर गतिविधि व रहस्य से परिचित होते हैं। उन्होंने कहा कि इनकी रक्षा करना मानव समाज की रक्षा करने के समान है।
डॉ. मुर्मू ने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए विभाग के शिक्षकों और विद्यार्थियों की सराहना की। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. सुभाष चंद्र महतो ने किया। इस अवसर पर संस्कृत विभाग की सहायक अध्यापिका प्रो. दानगी सोरेन, टीआरएल विभाग के शिक्षण गोनो अल्डा, रामदेव बोयपाई, धनु मार्डी, दिकू हांसदा, वीणा कुमारी महतो, संगीता महतो समेत हो, संताली और कुड़माली विषय के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।