सेंट्रल डेस्क : 27 अक्टूबर भारत में एक खास दिन है, क्योंकि यह देश के पहले दलित राष्ट्रपति केआर. नारायणन का जन्मदिन है। 27 अक्टूबर, 1920 को केरल के उझानूर गांव में जन्मे नारायणन की साधारण शुरुआत से लेकर देश के सबसे बड़े पद तक की यात्रा एक प्रेरणादायक कहानी है। हालांकि उनकी प्रेम कहानी ने भी लम्बी यात्रा की है, जिसके लिए उन्हें अक्सर विदेश के चक्कर काटने पड़ते थे।
केआर. नारायणन 17 जुलाई, 1997 को राष्ट्रपति बने और इस पद पर पहुंचने वाले, पहले दलित के रूप में उन्होंने इतिहास रच दिया। उन्होंने अपनी मजबूत लीडरशिप स्किल्स से पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन. शेषन के खिलाफ चुनाव जीता था। उनसे पहले दलित समुदाय से कोई भी व्यक्ति इतने बड़े पद पर नहीं पहुंचा था जिस वजह से वे कई लोगों के लिए एक आदर्श बन गए।
पढ़ाई के साथ आयुर्वेद के ज्ञानी भी
नारायणन छोटी उम्र से ही एक होनहार छात्र थे। वे अक्सर अपनी पढ़ाई में मदद के लिए सहपाठियों से किताबें उधार लेते थे। उन्होंने नैसेंट मैरी हाई स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और सम्मान के साथ ग्रेजुएशन किया। उनकी कड़ी मेहनत ने उन्हें लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में छात्रवृत्ति दिलाई, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया।
अपनी शिक्षा के अलावा, केआर. नारायणन आयुर्वेद के ज्ञानी भी थे, जो भारतीय परंपराओं से उनके जुड़ाव को दर्शाता है। उन्होंने 1943 में त्रावणकोर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में मास्टर डिग्री हासिल की, और विश्वविद्यालय में टॉप पर आने वाले पहले दलित छात्र बने।
विदेश सेवा से राजनीती में
1949 में, नारायणन भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो गए, जहां उन्होंने रंगून, टोक्यो और लंदन सहित दुनिया भर के प्रमुख दूतावासों में काम किया। उनकी डिप्लोमेसी स्किल्स ने उन्हें राजनीतिक करियर में शुरू करने में मदद की। वे 1992 में उपराष्ट्रपति बने और 25 जुलाई, 1997 से 25 जुलाई, 2002 तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
विदेश में प्रेम कहानी
नारायणन के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रंगून में शुरू हुआ, जहां उनकी मुलाकात एक विदेशी नागरिक मा टिंट टिंट से हुई। कुछ ही मुलाकातों के बाद वे एक-दूसरे को पसंद करने लगे लेकिन विदेशी महिला होने के कारण उन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से विशेष अनुमति की जरूरत थी। जिसे नेहरू जी ने आशीर्वाद के साथ पूरा किया और 8 जून, 1951 को नारायण और मा टिंट टिंट ने शादी की। शादी के बाद मा टिंट टिंट ने अपना नाम उषा रख लिया और वह भारतीय नागरिक बन गईं।
केआर. नारायणन का 9 नवंबर, 2005 को निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी कई लोगों को प्रेरित करती है। दलितों के लिए एक नेता और एक समर्पित लोक सेवक के रूप में, उन्होंने दिखाया कि कड़ी मेहनत से जीवन बदल सकता है। उनका जीवन हमें याद दिलाता है कि नेतृत्व में हर किसी को जगह मिलनी चाहिए।