करुणा
शब्द—
कुछ अजीब,
कुछ बेतुके,
कुछ ज्ञानप्रद,
कुछ घृणास्पद,
कुछ सत्य,
कुछ असत्य
जब आते हैं हृदय की गहराईयों तक,
नजरें—
प्रश्न करतीं,
शंकालु,
संदेह भरी,
अनिष्ट की संभावना से पूर्ण
जब भी पड़तीं हैं
किसी निरपराध अज्ञान पर
तो—
हृदय से उठता है–
एक चित्कार,
एक आत्मग्लानि ,
उत्पन्न होते हैं
कैसे खुंखार भाव—
कि गला घोंट दें बुराईयों का ,
अस्तित्व ही मिटा दें —
चोरी , असत्य जैसे नकारात्मक भावों का,
सत्य को क्यों नहीं समझते हैं ये लोग ,
जब भी बताना चाहा ‘सत्य’
रुप दे दिया गया उसे क्रोध का
और आज
यह सब सुनकर भी
पी गयी सब तो
“नीलकंठ” के सदृश
अश्रुओं ने असफल प्रयत्न किया
रहस्य खोलने का ,
नहीं—
मुझे रोकना है यह सब ,
नष्ट करने हैं मनोविकारों को,
शब्द कैसे भी हों सुनने हैं,
बस सुनने ही तो हैं,
नहीं कर सकती प्रतिवाद
क्यूंकि —इसे ही तो क्रोध का रुप दिया गया है ,
जो एक मनोविकार ही है,
क्रोध को दबाने से ,जो उत्पन्न होता है,
वह करुणा ही तो है ।।
डा. उमा उपाध्याय
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