फीचर डेस्क : सनातन धर्म में नवरात्र के आरंभ से पहले का दिन महालया विशेष महत्व रखता है। बुधवार को पूरे देश में महालया का त्योहार मनाया जा रहा है। इस दिन की धार्मिक मान्यता है कि देवी दुर्गा का आगमन धरती पर होता है। इसे ‘सर्व पितृ अमावस्या’ भी कहा जाता है, जब श्रद्धालु माता दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना करते हैं।
दुर्गोत्सव की शुरुआत
महालया के साथ दुर्गोत्सव की शुरुआत हो जाती है। अगले दिन से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो जाएगा, जिसमें पहले दिन कलश स्थापना कर मां दुर्गा के पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ का आह्वान किया जाएगा।
मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती की ओर प्रस्थान करती हैं और संध्या में पृथ्वी लोक आती हैं, जहां वे नौ दिनों तक अलग-अलग रूप में धरतीवासियों पर कृपा बरसाती हैं।
सुबह में गूंजा चंडीपठ
महालया पर सुबह से ही देवी के स्त्रोत गूंजने लगे। या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता… के ओजस्वी स्वरों से श्रद्धालु भक्ति से सराबोर हो जाते हैं। विभिन्न देवी मंदिरों में पुरोहित मां का आह्वान करते हैं और मां के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं।
नेत्रदान की बंगाली परंपरा
बांग्ला परंपरा के अनुसार, महालया पर नेत्र दान की परंपरा है, जहां मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमा के मुखमंडल पर पहली बार रंग चढ़ाते हैं। यह समय मूर्तिकारों के लिए अत्यधिक भावुक और उत्साह से भरा होता है, क्योंकि वे अपनी कला के माध्यम से प्रतिमा को जीवंत रूप देते हैं।
पूर्वजों को तर्पण
आज, सर्व पितृ अमावस्या पर लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और नदियों, तालाबों और घाटों पर तर्पण करते हैं। इन स्थानों पर इस दिन भारी भीड़ उमड़ी। इस दिन ही 15 दिनों तक चले श्राद्ध-तर्पण अनुष्ठान की समाप्ति हो गई।
इस प्रकार, महालया एक ऐसा अवसर है, जब भक्ति, परंपरा और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।