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मेल-फिमेल ट्रांसजेंडर्स को एक दूसरे से शादी करने का अधिकार : सीजेआई

by Rakesh Pandey
Supreme Court
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सेंट्रल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट में आज समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग पर फैसला पढ़ते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने एक महत्वपूर्ण प्रस्तावना पेश की है। उन्होंने कहा कि अगर कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है, तो ऐसे विवाह को मान्यता दी जाएगी। उनका तर्क यह है कि ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का पूरा अधिकार है। सीजेआई चंद्रडूड़ ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मौलिक आधार के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, लेकिन मेल-फिमेल ट्रांसजेंडर्स को एक दूसरे से शादी करने का अधिकार है।

ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन

समलैंगिक शादी के प्रस्तावना को खारिज करते हुए कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी दी है। बता दें ट्रांसजेंडर मेल और फीमेल को हेट्रोसेक्सुअल कपल के रूप में शादी करने की अनुमति दी गई है। सीजेआई बोले, यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी heterosexual (विपरीत लिंग वाले) व्यक्ति से शादी करना चाहता है तो ऐसी शादी को मान्यता दी जाएगी, क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी, ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है।

अनुमति नहीं दिया गया तो ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन

ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है और ट्रांसजेंडर महिला और ट्रांसजेंडर पुरुष भी शादी कर सकते हैं और अगर अनुमति नहीं दी गई तो यह ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन होगा। सीजेआई ने कहा कि इस प्रकार अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा आवश्यकता को पूरा करने के लिए विवाह कर सकता है, लेकिन समलैंगिक व्यक्ति को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

क्या है ट्रांसजेंडर अधिनियम?

ट्रांसजेंडर अधिनियम, 2019 भारत का एक कानून है जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को सुरक्षित करता है। यह कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान और सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है। यह कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार सहित सभी क्षेत्रों में समान अवसरों का भी अधिकार देता है।

लिंग पहचान की कानूनी मान्यता प्रदान करता है अधिनियम

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को “लिंग पहचान” की कानूनी मान्यता प्रदान करता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी पसंद के आधार पर आधिकारिक दस्तावेजों में अपना लिंग बदलने का अधिकार देता है। यह अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार सहित सभी क्षेत्रों में समान अवसरों का अधिकार देता है। साथ ही यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को रोकता है।

समलैंगिक लोगों के तरफ सीजेआई का रुख

सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो। सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया गया है। सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर ‘गरिमा गृह’ बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए।

समलैंगिक लोगों के लिए कमेटी बनाए सरकार

सुप्रियो चक्रवर्ती समेत अन्य की ओर से दायर 20 याचिकाओं में विषमलैंगिक की तर्ज पर दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच विवाह को कानूनी मान्यता देकर सभी अधिकार मुहैया कराने की मांग है, यानी संपत्ति, विरासत, गोद लेने की प्रक्रिया समेत हर एक हक विषमलैंगिक जोड़े जैसा हो। कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार समलैंगिक लोगों के अधिकार के लिए एक कमेटी बनाए। यह कमेटी राशन कार्ड में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।

अलग – अलग कैटेगरी के ऊपर तुषार मेहता ने दिया था बयान

केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा था कि कोर्ट एक ही कानून के तहत अलग श्रेणी के लोगों के लिए अलग नजरिया नहीं रख सकता। हमें नई परिभाषा के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि LGBTQIA+ में ‘प्लस’ के क्या मायने हैं, ये नहीं बताया गया है। उन्होंने पूछा, इस प्लस में लोगों के कम से कम 72 शेड्स और कैटेगरी हैं। अगर ये कोर्ट गैर-परिभाषित श्रेणियों को मान्यता देता है तो फैसले का असर 160 कानूनों पर होगा, हम इसे कैसे सुचारु बनाएंगे? कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी भी लिंग के तहत पहचाने जाने से इनकार करते हैं। उन्होंने कहा, कानून उनकी पहचान किस तरह करेगा? पुरुष या महिला के तौर पर? एक कैटेगरी ऐसी है, जो कहती है कि लिंग मूड स्विंग (मन बदलने) पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में उनका लिंग क्या होगा, कोई नहीं जानता । मेहता ने कहा कि असल सवाल ये है कि इस मामले में ये कौन तय करेगा कि एक वैध शादी क्या और किसके बीच है। मेहता ने दलील दी कि क्या ये मामला पहले संसद या राज्यों की विधानसभाओं में नहीं जाना चाहिए।

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थाने में समलैंगिक समुदाय का उत्पीड़न करना गलत

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि समलैंगिक समुदाय को सिर्फ उनकी यौन पहचान के लिए थाने पर बुलाने का कोई आधिकार नहीं है। पुलिस समलैंगिक व्यक्तों को उनके मूल परिवार में वापस लाने के लिए दबाव नहीं डालें। समलैंगिक समुदाय का उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। समलैंगिक समुदाय के सदस्यों को विशेष या असामान्य रूप से देखकर उनके साथ उत्पीड़न करना या उनके परिवारों को अधिक कठिनाइयों का सामना कराना गलत है। उनकी पहचान और अधिकारों का सही से सम्मान किया जाए। किसी भी विषमलैंगिक व्यक्ति को उनकी यौन पहचान के आधार पर उत्पीड़न किया जाना गलत है।

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