इंफाल: मणिपुर हिंसा पर राजनीति भी खूब हो रही है। इस क्रम में हिंसा के विरोध में मणिपुर के एन बीरेन सिंह सरकार को बड़ा झटका लगा है। पूर्वोत्तर में एनडीए के सहयोगी दल कुकी पीपुल्स एलायंस (KPA) ने सत्तारूढ़ पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ते हुए अपना समर्थन सरकार से वापस ले लिया है। इसके साथ ही यह पार्टी एनडीए गठबंधन से भी अलग हो गयी है।
विदित हो कि मणिपुर विधानसभा में KPA के दो विधायक हैं। ऐसे में एन बीरेन सिंह सरकार अब खतरे में पड़ती नजर आ रही है। कुकी पीपुल्स पार्टी के कई नेताओं ने पहले भी कहा था कि मणिपुर सरकार, कुकी समुदाय के साथ भेदभाव कर रही है।
हिंसा में पुलिस प्रशासन पर भी कुकी समुदाय के लोगों के साथ पक्षपाती होने का आरोप लगा चुके हैं ऐसे में यह समर्थन वापस सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। विदित हो कि KPA एनडीए की पिछले कई सालों से जुड़ी हुई थी। लेकिन मणिपुर हिंसा की आग ने उसे NDA से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया है।
राज्य में शांति बहाली के लिए भेजी गयी केंद्रीय बलों की 10 कंपनियां:
Manipur में पिछले सप्ताह हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्य में केंद्रीय बलों की 10 और कंपनियां भेजी गयी हैं। ताकि राज्य में हिंसा पर काबू पाकर शांति बहाल किया जा सके। वहीं, दूसरी तरफ नई दिल्ली में आज एक प्रमुख आदिवासी संगठन के सदस्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिल सकते हैं।
विदित हो कि शनिवार को मणिपुर के क्वाक्टा इलाके में मैतेई समुदाय के तीन लोगों की हत्या उग्रवादियों ने उनके घरों के अंदर घूस कर कर दी थी। उन्हें गालियों से भून दिया गया था। वहीं कुछ घंटों बाद, चुराचांदपुर जिले में आदिवासी कुकी समुदाय के दो लोगों की हत्या कर दी गई। इसे तीन लोगों के हत्या का जवाब माना जा रहा है हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या दोनों घटनाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं या नहीं।
जानिए क्या है पूरा मामला:
अगर Manipur हिंसा के विवाद के कारणों पर जाएं तो इसकी शुरुआत तीन मई को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद से हुई। इस दौरान दोनों समुदाय के बीच झड़पें शुरू हो गयी जो देखते ही देखते पूरे राज्य में फैल गयी। राज्य में तब से अब तक कम से कम 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। जबकि हजारों लोगो बेघर होकर विस्थापित हुए हैं औव वे कैंपों में रह रहे हैं।
अतिरिक्त सुरक्षाबल की क्यों पड़ी जरूरत:
विदित हो कि Manipur में पहले से ही केंद्रीयबल तैनात हैं। लेकिन इसे बाद भी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इसी को देखते हुए राज्य में अधिक बलों की आवश्यकता थी। इन सैनिकों को उन स्थानों पर तैनात किया जाएगा, जहां से लगातार हिंसा की खबरें आ रही हैं या जहां तनाव की स्थिति लगतार बनी हुई है। अधिकारियों की मानें तो झड़पों को पूरी तरह से रोकना है तो बफर जोन की निगरानी के लिए अधिक कर्मियों की आवश्यकता है।
सुरक्षा बलों की कुल 10 कंपनियां पहुंची हैं
अधिकारियों की ओर से बताया गया है कि पिछले दिनों हुए हिंसा को देखते हुए पांच केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, तीन सीमा सुरक्षा बल और एक-एक सशस्त्र सीमा बल और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की टीम हिंसाग्रस्त राज्य में पहुंचीं। जिन्हें राज्य के अलग अलग हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किया जा रहा है।
जानिए अभी राज्य में कितने सैनिक हैं मौजूद:
Manipur में पिछले तीन महीनों से छिड़े जातीय संघर्षों को रोकने के लिए इस पूर्वोत्तर राज्य में विभिन्न अर्धसैनिक बलों की कम से कम 125 कंपनियां, भारतीय सेना और असम राइफल्स की लगभग 164 टुकड़ियां मौजूद हैं। अगर एक कंपनी की बात करें तो इसमें लगभग 120-135 कर्मचारी होते हैं। वहीं सेना की एक टुकड़ी में करीब 55-70 जवान होते हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े पैमाने पर राज्य में जवानों को तैनात किया गया है इसके बाद भी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है।