नई दिल्ली: करीब 19 साल पहले 2006 में हुई मुंबई ट्रेन विस्फोट की घटना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। हालांकि, इस बार की सुनवाई में अदालत ने साफ कर दिया कि इन आरोपियों को वापस जेल नहीं भेजा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में दी गई यह दलील
मामला न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है। उन्होंने कहा कि वह आरोपियों की रिहाई को चुनौती नहीं दे रहे, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के कानूनी निष्कर्षों पर रोक जरूरी है क्योंकि यह मकोका के अन्य मुकदमों को प्रभावित कर सकता है।
ताकि मिसाल नहीं बने यह मामला
पीठ ने कहा कि हमें बताया गया है कि सभी आरोपी रिहा हो चुके हैं और उन्हें जेल लौटाने का सवाल नहीं है। लेकिन यह आदेश किसी अन्य मामले में मिसाल नहीं बनेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के फैसले को पढ़कर किसी अन्य केस में न मिसाल माना जाए, इसलिए विवादित फैसले पर रोक लगाई जाती है।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला और उसकी वजह
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को विशेष मकोका अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें 5 आरोपियों को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।
हाई कोर्ट ने इन विंदुओं को उठाया
गवाहों के बयानों और कथित बरामदगी को अदालत ने अविश्वसनीय माना।
अभियोजन पक्ष कथित अपराध में इस्तेमाल बम के प्रकार को भी रिकॉर्ड पर नहीं ला सका।
इकबालिया बयानों पर भी कोर्ट ने संदेह जताया।
पीठ की टिप्पणी
अभियोजन पक्ष का केस कमजोर है। यह विश्वास करना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया।
हमले का बैकग्राउंड: 11 जुलाई 2006 के मुंबई ब्लास्ट
11 जुलाई 2006 को मुंबई लोकल ट्रेन नेटवर्क की पश्चिमी लाइन पर 7 बम धमाके हुए थे।
इस आतंकी हमले में 180 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे।
मामले में मकोका अदालत ने 2015 में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था।