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Parental Abandonment Case : माता-पिता का त्याग संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन, क्या है मामला-पढ़ें

न्यायमूर्ति बत्रा ने 15 जुलाई को जारी अपने आदेश में कहा कि आयोग को प्रथम दृष्टया दुर्व्यवहार और जानबूझकर की गई उपेक्षा के पर्याप्त सबूत मिले हैं।

by Reeta Rai Sagar
Parental abandonment case highlights violation of Article 21 of Indian Constitution
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Parental Abandonment Case : हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने एक बुजुर्ग दंपति के पक्ष में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं, जिन्होंने अपने बेटे और बहू पर उत्पीड़न, उपेक्षा और संपत्ति हस्तांतरण के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया था। आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि माता-पिता का त्याग करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का भी घोर उल्लंघन है, जो हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है।

बेटे-बहू पर उत्पीड़न और संपत्ति के लिए दबाव का आरोप

शिकायत के अनुसार, पंचकूला में रहने वाले एक वृद्ध दंपति गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है और दोनों को कई ऑपरेशन कराने की आवश्यकता है। अपनी शिकायत में उन्होंने बताया कि अपने ही बेटे और बहू के साथ एक छत के नीचे रहने के बावजूद उन्हें अलग-थलग कर दिया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, जिससे उन्हें मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा। 82 वर्षीय शिकायतकर्ता और उनकी 72 वर्षीय पत्नी ने आयोग से संपर्क कर अपने बेटे और बहू द्वारा लगातार किए जा रहे उत्पीड़न और उपेक्षा के खिलाफ तत्काल हस्तक्षेप की मांग की थी।

वृद्धाश्रम जाने का दबाव, झूठे मामले भी दर्ज

शिकायतकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपियों ने उन पर उनकी आवासीय संपत्ति का स्वामित्व अपने नाम हस्तांतरित करने के लिए दबाव डाला और उन्हें वृद्धाश्रम चले जाने के लिए कहा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें परेशान करने के लिए घरेलू हिंसा का एक झूठा मामला भी दर्ज कराया गया। न्याय के लिए संघर्ष कर रहे इस दंपति ने 18 जनवरी, 2025 को पंचकूला में वरिष्ठ नागरिक न्यायाधिकरण के समक्ष माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत अपने निष्कासन को चुनौती देते हुए एक आवेदन भी दायर किया था।

आयोग ने कानून की विभिन्न धाराओं का किया उल्लेख

आयोग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कहा कि 2007 के अधिनियम की धारा चार के तहत वरिष्ठ नागरिक अपने बच्चों से भरण-पोषण का दावा करने के पूर्ण हकदार हैं। इसके साथ ही, धारा 23 के तहत यदि किसी संपत्ति को इस शर्त पर हस्तांतरित किया गया है कि देखभाल की जाएगी, और यदि वह देखभाल प्रदान नहीं की जाती है, तो ऐसी संपत्ति का हस्तांतरण अमान्य घोषित किया जा सकता है। इतना ही नहीं, अधिनियम की धारा 24 के तहत वरिष्ठ नागरिक को त्याग देना एक दंडनीय अपराध है।

सम्मान के साथ जीने का अधिकार छीना नहीं जा सकता : न्यायमूर्ति बत्रा

आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा ने इस पूरे मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इस तरह का अमानवीय व्यवहार न केवल 2007 के अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन है, बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का भी घोर उल्लंघन है, जो देश के हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। न्यायमूर्ति बत्रा ने 15 जुलाई को जारी अपने आदेश में कहा कि आयोग को प्रथम दृष्टया दुर्व्यवहार और जानबूझकर की गई उपेक्षा के पर्याप्त सबूत मिले हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि शिकायतकर्ताओं को तत्काल सुरक्षा मिलनी चाहिए और उनके अपने घर में शांतिपूर्वक रहने के अधिकार को बिना किसी देरी के सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

उपायुक्त को तत्काल कार्रवाई का निर्देश

आयोग ने पंचकूला के उपायुक्त को तत्काल बुजुर्ग दंपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, उन्हें वरिष्ठ नागरिक न्यायाधिकरण के समक्ष चल रही कार्यवाही में तेजी लाने, दंपति को आवश्यक प्रशासनिक सहायता प्रदान करने और सुनवाई की अगली तारीख से पहले आयोग को इस मामले में की गई कार्रवाई की एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी आदेश दिया गया है। आयोग के सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी पुनीत अरोड़ा ने बताया कि इस मामले की अगली सुनवाई 23 सितंबर को निर्धारित की गई है, जिस पर आयोग इस मामले में आगे की कार्रवाई पर विचार करेगा।

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