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संसद सर्वोच्च, चुने हुए प्रतिनिधि ही ‘अंतिम मालिक’– उपराष्ट्रपति धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक की भूमिका को एक “परमाणु शक्ति” के रूप में बताया जो चुनावों के दौरान प्रकट होती है।

by Reeta Rai Sagar
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New Delhi: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका की शक्तियों को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा है कि “संसद सर्वोच्च है” और देश के चुने हुए जनप्रतिनिधि ही “संवैधानिक सामग्री के अंतिम मालिक” हैं। उन्होंने यह बयान मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए दिया।
धनखड़ ने कहा कि हर संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा कही गई बात राष्ट्रीय हित से प्रेरित होती है। उन्होंने कहा, “संविधान की आत्मा, उसका सार, उसका अमृत उसके प्रस्तावना में समाहित है और प्रस्तावना में क्या लिखा है– ‘हम भारत के लोग’। इसका अर्थ है कि देश की सर्वोच्च शक्ति जनता के पास है। उनसे ऊपर कोई नहीं है।”

संसद की सर्वोच्चता पर जोर
उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि भारत की जनता ने संविधान के तहत अपने प्रतिनिधियों को चुनकर उनकी इच्छाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त करने का अधिकार दिया है। उन्होंने कहा, “चुने हुए जनप्रतिनिधि चुनावों के माध्यम से जनता के प्रति जवाबदेह हैं। और इसी के चलते वे संविधान की रक्षा के लिए उत्तरदायी हैं। संविधान में कहीं भी संसद से ऊपर किसी अन्य प्राधिकरण की कल्पना नहीं की गई है।”

धनखड़ ने कहा कि “संविधान जनता के लिए है और उसके रक्षक चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं। वे ही यह तय करते हैं कि संविधान की सामग्री क्या होगी। संसद सर्वोच्च है।” उन्होंने लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक की भूमिका को एक “परमाणु शक्ति” के रूप में बताया जो चुनावों के दौरान प्रकट होती है।

न्यायपालिका पर सवाल, अनुच्छेद 142 को बताया ‘परमाणु मिसाइल’
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय करने वाले फैसले पर भी उपराष्ट्रपति ने असहमति जताई। उन्होंने कहा, “ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें। यह किस आधार पर किया जा रहा है?”
उन्होंने अनुच्छेद 142 का उल्लेख करते हुए कहा, “यह अनुच्छेद अब लोकतांत्रिक शक्तियों के विरुद्ध एक ‘परमाणु मिसाइल’ बन चुका है, जो न्यायपालिका के पास 24×7 उपलब्ध है।”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि से संबंधित एक निर्णय में अनुच्छेद 142 का उपयोग किया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “संविधान के तहत आपका एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है, वह भी पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा।”

विपक्ष ने जताई आपत्ति, कहा – संविधान सर्वोच्च
उपराष्ट्रपति की इस टिप्पणी पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। राजद नेता और राज्यसभा सांसद ने कहा, “उपराष्ट्रपति एक सम्मानित संवैधानिक पद पर हैं, लेकिन मैं उनसे निवेदन करूंगा कि वे संविधान सभा की बहसों को पुनः पढ़ें, जहां न्यायपालिका और विधायिका के बीच संतुलन को लेकर विस्तार से चर्चा हुई थी।”

कपिल सिब्बल ने धनखड़ की बात से जताई असहमति
राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने भी धनखड़ की बात से असहमति जताई। उन्होंने कहा, “संसद को कानून बनाने की संपूर्ण शक्ति है, लेकिन संविधान की व्याख्या और न्याय करना सुप्रीम कोर्ट का दायित्व है।” सिब्बल ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गई हर बात संविधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय हित के अनुरूप है।”

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