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samakaaleen stree katha saahity : chinta aur chetana : स्त्री कथा साहित्य देह की नहीं, देश की बात करता है : प्रो. अरुण होता

जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुई संगोष्ठी

by Rakesh Pandey
Sahitya Kala Foundation
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  • -हिंदी के अलावा इंग्लिश, ओड़िया व मैथिली के ख्यातिलब्ध साहित्यकारों ने की शिरकत

जमशेदपुर : हिंदी के प्रख्यात आलोचक और लेखक प्रो. अरुण होता ने कहा कि हिंदी का समकालीन स्त्री कथा साहित्य देह की नहीं, देश की बात करता है। यह अपनी विषय वस्तु का चयन अपने आसपास और वैश्विक परिवेश को ध्यान में रखकर करता है। प्रो. होता गुरुवार को जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज जमशेदपुर तथा साहित्य कला फाउंडेशन, झारखंड के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “समकालीन स्त्री कथा साहित्य : चिंता और चेतना” विषय पर व्याख्यान को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में स्वागत भाषण कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमर सिंह ने दिया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि स्त्री वर्जनाओं के लिए नहीं बनी है।

स्त्री को सृष्टि की जननी बताते हुए उसे शारीरिक और मानसिक रूप से पुरुष की अपेक्षा श्रेष्ठ बताया। उसके प्रति सम्मान और संवेदनापूर्ण दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के तौर पर पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. अरुण होता ने कहा कि यह गर्व का विषय है कि बाजारीकरण, उदारीकरण,औद्योगीकरण के इस दौर में विकास, उन्नति – उन्नयन के नारे खूब लगे, लेकिन परिवर्तित परिस्थितियों में स्त्री की विभिन्न स्तरीय दशा की ओर सर्वप्रथम हिंदी साहित्य ने अपनी चेतना को जागृत किया। इस जागृति में स्त्री कथाकारों ने अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है और उनकी कथाओं का दायरा देश और विश्वव्यापी है। प्रो. होता ने विमर्शपरक रचनाओं पर बल दिया और विभिन्न भाषाओं के रचनाकारों का उदाहरण देते हुए कहा कि स्त्री विमर्श मात्र स्त्री देह का विमर्श नहीं है,बल्कि इसका फलक अत्यन्त विस्तृत है।

स्त्री रचनाकारों की रचनाओं में मौजूद विविधता को उजागर करते हुए उन कथाओं में उद्घाटित पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि मुद्दों पर बात की। उन्होंने समकालीन स्त्री कथाकारों की कहानियों का उदाहरण देते हुए उनके विविध विषयों की महत्ता पर भी चर्चा की। डॉ. विजय शर्मा की कहानी का उदाहरण देते हुए उसमें वर्णित दंगाई – सांप्रदायिक वातावरण का मनुष्यता पर पड़ते प्रभाव और केवल बेटे में ही वारिस तलाशने की परंपरागत प्रवृति को वर्तमान संदर्भों से जोड़ते हुए बेहतर तरीके से अभिव्यक्त किया है।

उन्होंने अवधारणा एवं अनुभव आधारित कथा-साहित्य की विशेषताओं से अवगत कराया और समाज के सुदृढ़ीकरण में स्त्री कथाकारों की भूमिका एवं उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार और सिने आलोचक डॉ. विजय शर्मा, कोल्हान विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. भारती कुमारी व आइक्यूएसी सेल की इंचार्ज डॉ. नीता सिन्हा मौजूद रहीं। संचालन डॉ. प्रियंका सिंह ने किया। इस दौरान साहित्य कला फाउंडेशन की चीफ ट्रस्टी डॉ. क्षमा त्रिपाठी भी मौजूद रहीं। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रुचिका तिवारी ने किया।

इन्होंने की शिरकत

जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सत्यप्रिय महलिक, एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. एके झा, करीम सिटी कॉलेज के डॉ. सुभाष गुप्ता, जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी की डॉ. पुष्पा कुमारी, डॉ. राजीव कुमार, डॉ. ब्रजेश मिश्र, डॉ. अंतरा कुमारी, डॉ. अशोक कुमार रवानी, डॉ. मंगला श्रीवास्तव, प्रो.ब्रजेश कुमार, डॉ. सुधीर सुमन, डॉ. राकेश पांडे, डॉ. पुष्पा, शोभा देवी, करीम सिटी कॉलेज की डॉ. नेहा तिवारी तथा विभिन्न विभागों के अध्यक्ष एवं शिक्षक उपस्थित थे।

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