चमोली, उत्तराखंड : पुष्कर कुंभ 2025 की पावन शुरुआत उत्तराखंड के सीमावर्ती गांव माणा स्थित केशव प्रयाग में 12 वर्षों बाद हुई है। इस दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग पर आधारित आयोजन ने बदरीनाथ धाम और माणा गांव की ओर तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ को आकर्षित किया है। पुष्कर कुंभ के दौरान देशभर विशेषकर दक्षिण भारत के वैष्णव संप्रदाय के श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस दिव्य संगम स्थल पर पहुंच रहे हैं।
केशव प्रयाग में पुष्कर कुंभ 2025: 12 वर्षों बाद आया शुभ अवसर
पुष्कर कुंभ का आयोजन उस समय होता है जब बृहस्पति ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश करता है, जो कि हर 12 वर्षों में एक बार होता है। इस पवित्र अवसर पर केशव प्रयाग – जहां अलकनंदा और सरस्वती नदियों का संगम होता है – विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और स्नानों के लिए प्रसिद्ध है।
तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए तैयार की गई विशेष व्यवस्था
जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने जानकारी दी कि माणा गांव में केशव प्रयाग तक के पैदल मार्ग को तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए बेहतर बनाया गया है। इस मार्ग पर विभिन्न भाषाओं में संकेतक (साइनेज) बोर्ड लगाए गए हैं, जिससे देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। उन्होंने बताया कि तहसील प्रशासन को नियमित निगरानी करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि आयोजन की व्यवस्था सुव्यवस्थित बनी रहे।
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने वाला ऐतिहासिक आयोजन
पुष्कर कुंभ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह चमोली जिले और विशेषकर माणा गांव को धार्मिक पर्यटन के मानचित्र पर और अधिक सशक्त रूप से स्थापित करता है। यह आयोजन क्षेत्रीय आर्थिकी को भी बल देता है और स्थानीय निवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराता है।
वैष्णव संप्रदाय के लिए विशेष महत्व
यह कुंभ विशेषकर वैष्णव परंपरा के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। दक्षिण भारत से आने वाले श्रद्धालु यहां विशेष पूजा-अर्चना और पवित्र स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। वैदिक परंपराओं के अनुसार, इस संगम पर स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुष्कर कुंभ 2025 का आयोजन उत्तराखंड के माणा गांव में एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। 12 वर्षों के इंतजार के बाद एक बार फिर से यह दिव्य आयोजन हजारों श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव का अवसर प्रदान कर रहा है। सरकार और स्थानीय प्रशासन की तत्परता ने आयोजन को सफल और व्यवस्थित बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
क्यों है यह खास
माना जाता है कि माणा गांव के पास स्थित केशव प्रयाग में महर्षि वेदव्यास ने तपस्या करते हुए प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत की रचना की थी। यह भी कहा जाता है कि दक्षिण भारत के महान आचार्य रामानुजाचार्य और माध्वाचार्य को इसी जगह सरस्वती नदी के किनारे मां सरस्वती से ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
अपनी परंपराओं को बनाए रखने के लिए पुष्कर कुंभ के समय दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और आस्था के इस पवित्र पर्व में शामिल होते हैं। पुष्कर कुंभ में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं और श्रद्धालु यहां आकर आस्था की डुबकी लगाते हैं।