“अब बूढ़ा हो चुका हूं, मेरी पोती 18 वर्ष की है और उनके पास मेरे लिए समय नहीं है। तो मेरे लिए दुनिया में कोई रिश्ता है तो वो सिर्फ किताबों का रिश्ता है।”
‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल सराईकेला-खरसावां और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बुकफेस्ट में ये शब्द पुष्पेश पंत जी के हैं। भारतीय इतिहास, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और कानून के स्कॉलर और लेखक पुष्पेश पंत ने इवेंट में किताबों से अपने रिश्ते पर चर्चा की। उन्होंने अपने बचपन, जवानी और बुढ़ापे तक के सफर में किताबों की भूमिका पर कुछ अनकही बातें साझा कीं जिन्हें सुनकर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
अपने बचपन के अनुभवों से शुरुआत करते हुए पुष्पेश जी ने बुढ़ापे तक, अपनी जिंदगी का सारांश कुछ ऐसे बताया। “हमारे जीवन में किताबों के अलावा कुछ नहीं था। किताबें हमारे लिए खिड़की थी, दरवाजा थी बाहरी जीवन के लिए और किताबों के माध्यम से हमने जाना कि रेलगाड़ी होती है, जो पटरी पर सीधी चलती है, मोटरगाड़ी होती है जो पों-पों हॉर्न बजाती है।”
“मेरे पिता एक इंस्टिट्यूट में निदेशक थे। उस इंस्टिट्यूट में बिजली तो थी पर मोटर सड़क नहीं थी। तो साल में एक बार घोड़ा-पालकी लेकर जाना होता था, तो किताबें ही हमें बताती थी कि बाहर की दुनिया क्या है। ये स्थिति मेरे बचपन की थी। किशोरावस्था में किताबें मेरी एकमात्र साथी थी। मेरी मां शांतिनिकेतन की पढ़ी हुई थी तो उन्होंने तय किया कि वे अपने बच्चों को घर पर ही पढ़ाएंगी। तो मैं कभी स्कूल गया ही नहीं। बीए करने के लिए कॉलेज गया जो मैंने बहुत जल्दी पूरी कर ली। किशोरावस्था में जाना कि प्रेम क्या होता है, प्रेम में असफल होना क्या होता है, कामोत्तेजना क्या होती है, ये सारी बातें किताबों ने समझाई या नहीं समझाई या भ्रष्ट किया, तब भी किताबें साथ रही।”
“फिर मैं दिल्ली आया और सभी ने कहा कि आईएएस दे दो। उस वक्त मेरी उम्र 18 वर्ष थी, मुझे 3 साल रुकना था जब तक की आईएएस देने की सही उम्र नहीं हो जाती। फिर किताबों का ही सहारा था, रट्टा लगाया। कुल मिलकर ये हुआ कि 21 वर्ष होने से पहले ही मैं विदेश चला गया क्योंकि सिविल सर्विसेज से मेरा मोह भंग हो गया था। मुझे लगा कि मैं किताबें पढ़ना ही पसदं करूंगा।”
“अब स्थिति क्या है? अब बुढ़ापा है और मेरी अवस्था एक बार फिर उसी अकेले किशोर की या किशोरावस्था से पहले वाले लड़के की है। लड़का अब बूढ़ा हो चुका है, 55 वर्ष का हो गया है, उसकी पोती 18 वर्ष की है और उनके पास मेरे लिए समय नहीं है। तो अब भी जो मेरे लिए दुनिया में कोई रिश्ता है तो वो सिर्फ किताबों का रिश्ता है। कभी कविता का, कभी उपन्यास का रिश्ता है। तो मुझे लगता है किताबों को जितना हम अपना बनाते हैं, उससे कहीं ज्यादा किताबें हमें अपना बनाती हैं। धन्यवाद”
पुष्पेश पंत को ‘इंडिया: द कुकबुक (2011)’ के लिए जाना जाता है, जिसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कुकबुक में से एक नामित किया गया था।
दो दिवसीय बुकफेस्ट का उद्देश्य
कार्यक्रम का आगाज पुष्पेश जी की प्रेरणादायक जिंदगी से हुई और फिर इस कड़ी में अन्य लेखकों ने अपने जीवन अनुभव साझा किए। 18 और 19 अक्टूबर 2024 को आयोजित इस बुकफेस्ट का उद्देश्य कला, संस्कृति और किताबों के जरिए समाज के सभी वर्गों को लोकतंत्र में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जागरूक करना है। आयोजन की रूपरेखा तैयार करने में साहित्य कला फाउंडेशन की अहम भूमिका रही है। कार्यक्रम का आयोजन ऑटो क्लस्टर, आदित्यपुर के सभागार में किया गया है।