नई दिल्ली: 10 नवंबर को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के प्रधान न्यायाधीश (CJI) पद से रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का पुनर्गठन किया गया है। अब नए CJI, संजीव खन्ना ने पदभार संभाल लिया है और इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में भी महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। न्यायमूर्ति ए एस ओका को भी कॉलेजियम का नया सदस्य नियुक्त किया गया है। इस बदलाव के साथ सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के चयन में बदलाव होने की संभावना है और यह बदलाव भारतीय न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को प्रभावी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का नया रूप
नए CJI संजीव खन्ना के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का आकार पांच सदस्यीय हो गया है, जिसमें न्यायमूर्ति खन्ना के अलावा न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति ए एस ओका शामिल हैं। यह कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके स्थानांतरण के मामलों पर विचार करेगा।
इसके साथ ही, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए तीन सदस्यीय कॉलेजियम का भी गठन किया गया है, जिसमें CJI संजीव खन्ना के साथ न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत सदस्य होंगे। इन बदलावों के बाद न्यायपालिका की नियुक्ति प्रक्रियाओं में और पारदर्शिता और उत्तरदायित्व आने की उम्मीद है।
संजीव खन्ना: 51वें CJI के रूप में शपथ
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जिन्हें 17 अक्टूबर 2024 को CJI के रूप में नियुक्त किया गया था, ने 10 नवंबर को औपचारिक रूप से पदभार ग्रहण किया। वे 51वें CJI के रूप में कार्यभार संभालने वाले हैं। उनका कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में सुधार और न्यायिक प्रक्रिया की गति बढ़ाने पर केंद्रित रहेगा। विशेष रूप से, उनका लक्ष्य लंबित मामलों को कम करना और न्यायिक कार्यवाही को तीव्र गति से आगे बढ़ाना है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का परिचय बेहद रोचक है। वे दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति देव राज खन्ना के पुत्र और सुप्रीम कोर्ट के दिवंगत न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना के भतीजे हैं। एक प्रतिष्ठित न्यायिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति खन्ना को भारतीय न्यायपालिका में उनका योगदान और उनके विचारशील निर्णयों के लिए जाना जाता है। दिल्ली उच्च न्यायालय में पदोन्नति से पहले वे एक कुशल वकील भी रहे हैं।
प्रमुख फैसले और कार्य
अपने करियर के दौरान, न्यायमूर्ति खन्ना ने कई ऐतिहासिक और प्रभावशाली निर्णय दिए हैं। उनके द्वारा दिए गए फैसलों में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की शुचिता बनाए रखने से लेकर, अनुच्छेद 370 को हटाने और चुनावी बॉण्ड योजना को खत्म करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने का भी फैसला किया था। उनके फैसले हमेशा भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए रहे हैं।
न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल
64 वर्षीय न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट की लंबित मामलों की सुनवाई में गति लाने के साथ-साथ, न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने का है। वे उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कई वर्षों तक कार्य कर चुके हैं, और उनका अनुभव उन्हें न्यायिक सुधारों के लिए आदर्श मार्गदर्शन प्रदान करता है।
न्यायमूर्ति खन्ना का फोकस विशेष रूप से उन मामलों पर रहेगा जिनमें काफी समय से सुनवाई लंबित है। उनका मानना है कि न्याय की प्रक्रिया में तेजी लाने से लोगों का विश्वास और अधिक मजबूत होगा। साथ ही, वे यह भी चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को उच्चतम न्यायपालिका के रूप में कार्य करते हुए, समाज में और अधिक प्रभावी भूमिका निभानी चाहिए।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पुनर्गठन और नए CJI के रूप में उनका पदभार संभालना भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह बदलाव न केवल न्यायपालिका के भीतर कार्यप्रणाली को प्रभावी बनाएगा, बल्कि इससे न्यायिक सुधारों के संदर्भ में नए दृष्टिकोण और उपाय भी सामने आएंगे। न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के लिए कई नए अवसरों और बदलावों का अवसर प्रदान करेगा, जो न्यायपालिका की दक्षता और पारदर्शिता को और बढ़ाएगा।