जमशेदपुर। मानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा एस्टेट में चल रहे श्री शिवकथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन (Shivkatha Day 6) रविवार को कथा वाचक स्वामी वृजनंदन शास्त्री महाराज ने ओम्कारेश्वर विश्वनाथ महाकाल प्रसंग की कथा का विस्तार से वर्णन किया। कहा कि भगवान शिव को सबसे प्रिय रूद्राक्ष हैं। रुद्राक्ष धारण करने से कई लाभ मिलते हैं, क्योंकि रुद्राक्ष को भगवान शिव का वरदान ही कहा जाता है। रुद्राक्ष का शाब्दिक अर्थ भी यही है-रुद्र और अक्ष अर्थात रुद्राक्ष। यह शरीर, मन और आत्मा के लाभ के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। रुद्राक्ष मानव शरीर के अंदर के साथ-साथ शरीर के बाहर की वायु में भी जीवाणुओं का नाश करता है।
(Shivkatha Day 6) महाराज ने अपनी सुमधुर वाणी से भगवान शिव की महिमा का गुणागान करते हुए आगे कहा कि स्वार्थ छोड़कर निःस्वार्थ भाव से जल, तन और धन का दान करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और संपूर्ण अभिष्टो को प्राप्त कर लेता है। इसमें संशय नहीं है। महाराज श्री ने आगे कहा कि परमानंद उसे कहते हैं, जिसके बाद किसी भी आनंद की अनुभूति व्यक्ति को नहीं हो। आनंद सभी दे सकते है, लेकिन परमानंद भगवान शिव ही दे सकते हैं।
(Shivkatha Day 6) शिव व्रत से दुखाें का हाेता है नाश:
शिव के व्रत रखने से दुखों का नाश होता है। मोक्ष भी कोई भी देवता नहीं दे सकते, लेकिन भगवान शिव मोक्ष भी दे सकते है। शिव का ज्ञान होने पर ही शिव ज्ञान की प्राप्ति होगी तभी मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। कथा वाचक ने कहा कि भगवान शिव सारे संसार से प्रेम करते है। शिव ही निरंकार है। नौ प्रकार के शब्द हर व्यक्ति के अंदर चलते हैं और किसी भी व्यक्ति को पता नहीं चलता, बाहर के शब्द ही लोग सुनते हैं। सौ-सौ बार जन्म लेने के बाद भी अज्ञानता के साथ मनुष्य अंदर के नौ शब्दों को नहीं सुन पाता है। देवी-देवता भी शिव की आराधना करते हैं।
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