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Shree Ganesh Chaturthi : ‘श्री गणेश’ का नाम लेकर क्यों करते हैं शुभ कार्य? जानें क्या है वास्तविक कहानी

by Rakesh Pandey
Shree Ganesh Chaturthi
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जमशेदपुर : Shree Ganesh Chaturthi : आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वे सभी भगवान की पूजा कर सकें। इसलिए कहा गया है कि अगर आप के पास समय का अभाव है, तो केवल भगवान श्री गणेश की पूजा कर लें। आप के लिए वह ही बहुत है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है। माना जाता है कि अगल विघ्नहर्ता की पूजा हो गयी तो किसी काम में में विघ्न पड़ेगा ही नहीं। इसके साथ यह भी मान्यता है कि अगर विघ्नहर्ता की पूजा हो गयी तो आप को और किसी देवी-देवताओं की पूजा करने की कोई आवश्कता ही नहीं है। पंडितों का मानना है कि भगवान गणेश थोड़े ही पूजा में शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और वे सारे बिगड़े काम को बना देते हैं। भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं इसीलिए उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। भगवान गणेश की पूजा सभी देवी-देवताओं में पहले की जाती है।

Shree Ganesh Chaturthi : भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया

भगवान शिव  द्वारा मिले वरदान के कारण भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। इसके अलावा भगवान गणेश जल तत्व के देवता हैं और सभी देवी-देवताओं का इसमें वास माना गया है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजे जाने को लेकर एक विवाद पैदा हो गया था तो इस बात की जानकरी नारद जी को लगी तो उन्होंने सभी से कहा कि इसका निवारण देवादी देव महादेव के पास है। नारद जी की बात को सुनकर सभी देवता तुरंत ही कैलाश पहुंचे और उन लोगों ने इस समस्याओं को भागवान शिव को बताया और इसका हल करने की प्रार्थना की।

भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना सुन एक योजना बनाई। कैलाशपति ने एक प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें सभी देवताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। प्रतियोगिता के मुताबिक, सभी देवगणों को अपने वाहन पर बैठकर पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाना था। उन्होंने कहा कि इस प्रतियोगिता में जो भी सर्वप्रथम ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाकर भगवान शिव के पास पहुंचेगा, वहीं सर्वप्रथम पूजनीय माना जाएगा।

सभी देवगण तत्काल अपने वाहनों पर सवार हुए और ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने निकल पड़े। भगवान गणेश वहीं, पर बैठे रहे। कुछ समय बीत जाने के बाद उन्होंने अपने वाहन चूहे पर बैठकर पिता शिव- और माता पार्वती की सात परिक्रमा लगाईं और उनके सम्मुख हाथ जोड़कर उनकी प्रार्थना की। भगवान गणेश के ऐसा करने से भगवान शिव काफी प्रसन्न हो गए। कुछ समय बीत जाने के बाद जब सभी देवगण वहां पहुंचे तो देवों के देव महादेव ने भगवान गणेश को प्रतियोगिता में विजयी घोषित कर दिया।

इसके बाद सभी देवता विचार करते हुए भोलेनाथ से इसका कारण पूछा तो नीलकंठ (भगवान शंकर) ने कहा कि पूरे ब्रह्माण्ड और समस्त लोक में सर्वोच्च स्थान माता-पिता को दिया गया है और गणेश ने मेरी और पार्वती का परक्रिमा कर लिया।
शिव जी की इस बात को सुनकर सभी देवगण उनसे सहमत हो गए, जिसके बाद से भगवान श्री गणेश को सर्वप्रथम पूज्यनीय माना जाने लगा। तब से आज तक प्रत्येक शुभ कार्य व उत्सव से पूर्व गणेश वंदन को शुभकारी माना जाता है। मान्यता है कि भगवान गणेश जी का पूजन सभी कष्टों को दूर कर खुशहाली लाता है।

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