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Delhi : दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को एडमिशन में हो रही परेशानी, आधार कार्ड की कमी बनी बड़ी बाधा

by Rakesh Pandey
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नयी दिल्ली : दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनके पास आधार कार्ड या बैंक खाता जैसे जरूरी दस्तावेज नहीं हैं। हालांकि, उनके पास संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से शरणार्थी कार्ड है, लेकिन इसके बावजूद भी वे दाखिला नहीं पा रहे हैं।

क्या है रिपोर्ट

सोफिया मैथ्यू की इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 9 वर्षीय उमर फारूक के पिता ने बताया कि वह 2019 से अपने बेटे को स्कूल में दाखिला दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। उनके अलावा, कई अन्य रोहिंग्या बच्चे भी इसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।

शिक्षा निदेशालय का दावा

शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों का कहना है कि इन बच्चों का दाखिला संभव है। उन्होंने 28 जुलाई, 2017 के एक सर्कुलर का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों को केंद्र सरकार की नीति के तहत शरणार्थी बच्चों को दाखिला देने की अनुमति है। अधिकारियों ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार द्वारा जारी दस्तावेज निवास प्रमाण के रूप में मान्य हैं और आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। उनके अनुसार, अब तक कम से कम पांच देशों के लगभग 1,000 शरणार्थी बच्चों का दाखिला हो चुका है।

स्थानीय स्थिति

खजूरी खास की रोहिंग्या बस्ती के एक निवासी अहमद ने बताया कि इलाके के लगभग 30 बच्चों का चार स्कूलों में नामांकन हो चुका है, जबकि 18 बच्चे अभी भी स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। चित्रकार असमत उल्लाह भी अपनी 6 और 7 साल की बेटियों को दाखिला दिलाने के लिए इलाके के सभी चार सरकारी स्कूलों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक सफलता नहीं मिल पाई है।

रोहिंग्या कौन हैं?

रोहिंग्या एक राज्यविहीन जातीय समूह है, जो म्यांमार के राखीन राज्य में मुख्य रूप से इस्लाम धर्म का पालन करता है। 2017 में म्यांमार में हुए रोहिंग्या नरसंहार के बाद 740,000 से अधिक लोग बांग्लादेश भाग गए थे। रोहिंग्या को म्यांमार के 1982 के राष्ट्रीयता कानून के तहत नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, जिससे उनकी स्वतंत्रता, शिक्षा और सिविल सेवा नौकरियों तक पहुंच में गंभीर बाधाएं हैं।

यह समस्या न केवल रोहिंग्या बच्चों के शैक्षिक अधिकारों पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि दस्तावेजों की कमी के कारण कितने बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी सर्कुलर के बावजूद, इन बच्चों को दाखिला दिलाने की प्रक्रिया में कई अड़चनें आ रही हैं।

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