हेल्थ डेस्क, जमशेदपुर : झारखंड और बंगाल की विलुप्त होती सबर जनजाति की नारकीय जीवन को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने गंभीरता से लिया है। आयोग के सहायक निदेशक मीनाक्षी शर्मा ने इस संदर्भ में पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री को पत्र लिखा है और इससे संबंधित रिपोर्ट 15 दिनों में देने को कहा है।
इस मामले को लेकर रोटी बैंक चैरटेबल ट्रस्ट की ओर से बुधवार को आदित्यपुर स्थित एक होटल में संवाददाता सम्मेलन का आयोजन कर हकीकत से अवगत कराया। संवाददाता सम्मेलन में मनोज मिश्रा के अलावा अधिवक्ता सलावत महतो, रेणु सिंह, आनीमा दास, शुभश्री दत्ता, अभिजीत चंदा, ऋषि गुप्ता आदि शामिल थे।
मौलिक अधिकारों से वंचित है सबर जनजाति
पत्र में लिखा है कि मौलिक अधिकारों से वंचित झारखंड की विलुप्त होती सबर जनजाति की नारकीय जीवन के संबंध में रोटी बैंक के अध्यक्ष मनोज मिश्रा से 14 अगस्त का अभ्यावेदन जो की आयोग में अरविंद मुदगल, अवर सचिव, जनजातीय कार्य मंत्रालय, नई दिल्ली से 22 अगस्त को प्राप्त हुआ। चूंकि, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को मनोज मिश्रा से एक शिकायत प्राप्त हुई है और आयोग ने भारत के संविधान के अंतर्गत उसे प्रदत्त शक्तियों का अनुसरण करते हुए इस मामले का जांच करने का निश्चय किया है। अत: आप सूचना प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर आयोग को डाक से या वैयक्तिक रूप से उपस्थित होकर या किसी अन्य संचार साधन से संबंधित मामलों और सूचनाओं पर की गई कार्रवाई से संबंधित सूचना प्रस्तुत करें।
नियत अवधि में रिपोर्ट जमा नहीं होने पर हो सकती है कार्रवाई
पत्र में यह भी लिखा गया है कि यदि नियत अवधि में आयोग में आपका उत्तर प्राप्त नहीं होता है, तो आयोग संविधान के अंतर्गत उसे प्रदत सिविल न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है तथा वैयक्तिक रूप से या प्रतिनिधि के माध्यम से आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिए आपको समन भी जारी कर सकता है।
क्या है मामला
रोटी बैंक चैरटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष मनोज मिश्रा ने बताया कि जमशेदपुर प्रखंड के बड़ाबांकी गांव में 25 सबर परिवार रहते हैं। यह आदिम जनजाति हैं, जो अब विलुप्त होने के कगार पर है। उक्त परिवार के मासूम बच्चे, महिलाएं और पुरुषों में कुपोषण, एनिमिया के लक्षण पाए गए हैं। सबरों को पौष्टिक भोजन, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। यहां रहने वाले सभी सबर परिवार के लोगों की जांच होनी चाहिए। गांव की आंगनबाड़ी केंद्र भी नियमित रूप से नहीं खुलता है। स्वास्थ्य केंद्र में भी नियमित रूप से डॉक्टर नहीं आते हैं।
झारखंड में कुपोषण की स्थिति
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएल) के अनुसार झारखंड में सरायकेला-खरसावां में सबसे अधिक गंभीर कुपोषित बच्चे 23 प्रतिशत हैं। वहीं, खूंटी, रांची, पूर्वी सिंहभूम में 16.8 प्रतिशत हैं। गिरीडीह में 14.5 प्रतिशत, जबकि पश्चिमी सिंहभूम में 12.9 प्रतिशत, गोड्डा में 11.2 प्रतिशत, दुमका में 11 प्रतिशत और लोहरदगा में 10 प्रतिशत बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषित हैं। अति गंभीर कुपोषित बच्चों के मामले में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के कुल बच्चों में से जहां 9.1 प्रतिशत बच्चे अति गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। इसके हिसाब से राज्य में तीन लाख से अधिक बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं।
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बिहार में 8.8 प्रतिशत बच्चे कुपोषित
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएल) के अनुसार बिहार में 8.8 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। वहीं, ओडिशा में 6.1 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 7.5 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 7.1 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
किस जिले में कितने कुपोषित बच्चे
– सरायकेला-खरसावां : 23 प्रतिशत
– पूर्वी सिंहभूम : 16.8 प्रतिशत
– पश्चिमी सिंहभूम : 12.9 प्रतिशत