रबीन्द्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ और प्रेमचंद की ‘गोदान’ जैसी पुस्तकों का अनुवाद कर चुकीं जोबा मुर्मू ने लिटरेचर फेस्टिवल ‘छाप’ में शिरकत की। किताब, साहित्य और कला विषय पर केंद्रित इस आयोजन में जोबा ने किताबों से अपने प्रेम की कहानी बताई। उन्होंने बताया कैसे बचपन में उपन्यास पढ़ने के लिए मां से डांट पड़ जाती थी और कैसे उनके लिखने और पढ़ने के शौक को उनके पिताजी ने आगे बढ़ाया।
जोबा मुर्मू, संथाली समाज का जाना-माना चेहरा हैं, जिनका रुतबा लेखकों में बहुत ऊंचा है। लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान उन्होंने बताया कि 1985 में कॉलेज के दौरान उन्होंने अपनी पहली कविता पब्लिश की थी। आइये जाने किताबों संग जोबा मुर्मू के रिश्ते को उन्हीं के शब्दों में।
“सभी को जोहार। बहुत छोटी उम्र से ही मैं किताबों में रुचि रखती थी। जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, तब मेरे पिताजी भी काफी कुछ लिखा करते थे, वे भी एक राइटर हैं। उनकी कविताओं को मैं पढ़ा करती थी। धीरे धीरे मुझे पढ़ने का नशा चढ़ गया, जितने भी उपन्यास या कहानी की किताबें मिलती थी, मैं सब कुछ पढ़ती थी। नौबत यहां तक भी आ गयी कि मैं अपने भैया के टेबल ड्रावर से किताबें चुराकर पढ़ने लगी। मेरे लिए ये मायने नहीं रखता था कि मैं क्या पढ़ रही हूं, बस मैं पढ़ती थी, चाहे वो उपन्यास हो, मनोहर कहानियां हो या सच्ची कहानियां। जब मैं दसवीं में आई तो भी मैंने गेस पेपर के बीच में उपन्यास रखकर पढ़ती थी।”
“मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं हैं, पर उन्हें पता चल जाता था जब मैं स्कूल की किताबें छोड़ कहानी किताबें पढ़ा करती थी। इसके लिए मुझे काफी डांट पड़ चुकी है। मेरे पढ़ने के शौक को देखते हुए मेरे पिताजी ने लाइब्रेरी से धार्मिक पुस्तक लाकर दी। मैं हफ्ते भर के अंदर रामायण, महाभारत, कृष्णा लीला आदि सब पढ़कर खत्म कर देती थी।”
“जब मैं इंटरमीडिएट में आई तो उस वक्त 1985 में मेरी पहली कविता छपी। यह कविता वहां की ‘किवाड़ आडंग’ नाम की मैगजीन में छपी थी। मेरी उस कविता को काफी सराहना मिली थी, जिसके बाद मैंने लिखना शुरू किया। अब तक मेरी दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मैंने रबीन्द्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ और ‘अतिथि’, प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां और ‘गोदान’ का अनुवाद कर चुकी हूं। आगे भी मैं लिखती और पढ़ती रहूंगी। मैं कई संस्थाओं से जुड़ी हुई हूं और जितना भी वक्त मिलता है, मैं लिखने में बिताती हूं।”
जोबा मुर्मू का परिचय
जोबा मुर्मू एक संथाली लेखिका और अनुवादक हैं। उनके लघु कहानी संग्रह ओलोन बाहा (द रिटेन फ्लावर, 2014) ने 2017 में साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार (बाल साहित्य पुरस्कार) जीता था। ‘सेरेंग अंजले’ (2015) रबीन्द्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का उनका अनुवाद था। इसके अगले वर्ष अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ से जोबा मुर्मू को साहित्य में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। साहित्य में उनकी सेवाओं के लिए, उन्हें 2020 में रवींद्रनाथ टैगोर पुरस्कार से नवाजा गया। जोबा मुर्मू ने दो संथाली फीचर फिल्म, ‘तोरे सुतम’ (द डिवाइन थ्रेड, 2015), और ‘सेगेन साकम’ (द न्यू लीफ, 2018) की पटकथा और गीत भी लिखे हैं।
दो दिवसीय इवेंट का उद्देश्य
‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल सराईकेला-खरसावां और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ऑटो क्लस्टर, आदित्यपुर के सभागार में आयोजित किया गया है। यह दो दिवसीय बुकफेस्ट राज्य के युवाओं को साहित्य, कला और संस्कृति से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है। 18 और 19 अक्टूबर 2024 को आयोजित इस बुकफेस्ट का उद्देश्य कला, संस्कृति और किताबों के जरिए समाज के सभी वर्गों को लोकतंत्र में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जागरूक करना है।