Home » जन्मदिन विशेष : सावित्री बाई फुले जिसने वंचित समाज के शिक्षा के अधिकार के लिए किया संघर्ष, जानें

जन्मदिन विशेष : सावित्री बाई फुले जिसने वंचित समाज के शिक्षा के अधिकार के लिए किया संघर्ष, जानें

by Rakesh Pandey
Savitribai Phule
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

 

स्पेशल डेस्क, मुंबई: आज हम आपको एक महान और प्रेरणादायक महिला के जन्मदिन पर उनकी कहानी बताएंगे जिन्हें अपने समय में समाज के लिए अनमोल योगदान के लिए जाना जाता है। Savitribai Phule को भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन का सूरज कहा जाता है। उन्होंने विशेष रूप से वंचित समाज की महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। इस व्यक्तित्व में हमें एक महान योद्धा और शिक्षा के प्रति समर्पित महिला की मिसाल मिलती है।

मात्र नौ वर्ष की आयु में हुआ विवाह

Savitribai Phule का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नांदगाव गांव में हुआ था। सावित्रीबाई के पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। वर्ष 1840 में 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह एक्टिविस्ट और समाज-सुधारक ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था।

बाल्यकाल से ही Savitribai Phule शिक्षा में रुचि लेनी शुरू की और इसी रुचि के साथ Savitribai Phule अपने जीवन को एक नए मोड़ पर ले लिया। उनके माता-पिता ने ही उन्हें शिक्षित बनाने का प्रयास किया और इसका असर उनके जीवन के बड़े पहलुओं में दिखाई दिया।

 

Savitribai Phule

विवाह के बाद सीखा पढ़ना-लिखना:Savitribai Phule

Savitribai Phule ने विवाह के बाद अपने पति के सहयोग से लिखना-पढ़ना सीखा। अंततः दोनों ने मिलकर वर्ष 1848 में पुणे में भिडेवाड़ा नामक स्थान पर लड़कियों के लिये भारत का पहला विद्यालय खोला। बाल्यकाल से ही उन्होंने शिक्षा में रुचि लेना शुरू किया और इसी रुचि के साथ उन्होंने अपने जीवन को एक नए मोड़ पर ले लिया।

शिक्षित हो स्त्री शक्ति को किया जागरूक

Savitribai Phule की शिक्षा में प्रेरणा लेकर उन्होंने भारतीय समाज में स्त्रीशक्ति को जागरूक करने का कार्य किया। उन्होंने विशेष रूप से वंचित वर्ग की महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष किया और उन्हें समाज में जगह बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।

फुले सोसायटी

Savitribai Phule ने 1853 में महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर ‘फुले सोसायटी’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वंचित वर्ग के लोगों को शिक्षित बनाना था। ‘फुले सोसायटी’ का गठन करने के बाद, सावित्री बाई फुले ने अपनी पूरी शक्ति से वंचित वर्ग के लोगों को शिक्षित बनाने में अपना योगदान दिया। Savitribai Phule ने समाज में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों की शुरुआत की, जिससे वर्गवाद और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों में एक नई सोच का निर्माण हुआ।

एक अनूठा युगल जिसने बदल दिया समाज का चेहरा

महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी Savitribai Phule ने समाज में साक्षरता के प्रति अपने अनूठे संकल्प के लिए प्रसिद्ध हुए हैं। उनका मानना था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे महिलाएं और दबे-कुचले वर्ग सशक्त बन सकते हैं और समाज के अन्य वर्गों के साथ बराबरी से खड़े होने की उम्मीद कर सकते हैं।

उन्होंने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की और शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का कार्य किया। Savitribai Phule को आधुनिक भारत में एक ऐसी महिला के रूप में भी श्रेय दिया जाता है जिन्होंने ऐसे समय में मुखर हो आवाज उठाई जब महिलाओं को दबाया जा रहा था। फुले ने स्वयं की आवाज़ को बुलंद किया और महिला अधिकारों के लिये संघर्ष किया।

शिक्षा के अधिकार में पक्षपात के खिलाफ जंग की Savitribai Phule ने

Savitribai Phule ने शिक्षा के क्षेत्र में अधिकार और सुविधाओं के पक्षपात के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने समाज को उन विचारों से परिचित किया जिनसे उनके समय में बहुल वर्ग की महिलाएं अधिकारहीन थीं। उन्होंने विशेष रूप से स्त्रीयों को शिक्षा में समाहित करने के लिए अपने जीवन की कई योजनाएं बनाईं और संचालित कीं।

शिक्षा के माध्यम से समर्थ समाज निर्माण

Savitribai Phule ने सामाजिक बदलाव के लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण माध्यम माना और उन्होंने इसे एक सशक्त समाज की नींव माना। उनकी दृष्टि में, शिक्षित और समर्थ नागरिक समाज में समर्थ समाज निर्माण करने में सफल हो सकता है, जिससे समाज में एकता, समानता, और न्याय की भावना स्थापित हो।

आदर्श महिला और शिक्षा के प्रति उनका समर्पण

फुले को आदर्श महिला के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने केवल शिक्षा के क्षेत्र में नहीं बल्कि समाज में भी परिवर्तन लाने के लिए अपना योगदान दिया। Savitribai Phule ने समाज में विद्या, समर्थन, और समानता की भावना को बढ़ावा दिलाने के प्रयास में अपना पूरा जीवन लगा दिया। एक सशक्त और जागरूक समाज बनाने का संकल्प किया।

प्लेग मरीजों की सेवा करते हुए त्यागा जीवन

10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण Savitribai Phule का निधन हो गया। गौरतलब है कि प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। प्लेग से प्रभावित एक बच्चे की सेवा करने के कारण वह भी प्लेग से प्रभावित हुईं और इसी कारण से उनकी मृत्यु हो गई।

 

READ ALSO: नये साल में 70,000 रुपये पर पहुंच सकता है सोना, जानें इसमें इंवेस्टमेंट कितना है सुरक्षित?

Related Articles