जमशेदपुर : झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की पहली उम्मीदवार सूची जारी होने के बाद पार्टी में नेताओं व कार्यकर्ताओं में असंतोष के साथ ही इस्तीफे का दौर शुरू हो गया है। जमशेदपुर के पोटका विधानसभा क्षेत्र की वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक मेनका सरदार ने शनिवार की शाम, सूची जारी होने के तुरंत बाद, अपने पद से इस्तीफा दे दिया। रविवार को खरसावां विधानसभा सीट से टिकट की प्रबल दावेदारी कर रहे गणेश महाली ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को लिखे पत्र में कहा है कि “पार्टी अब पहले जैसी नहीं रही, बाहर से आये लोगों की मनमानी चल रही है”।
इसके साथ ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा को एक और बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रवीन्द्र राय भी भाजपा से अलग होने का अंतिम निर्णय ले चुके हैं। ऐसी खबरें हैं कि रवीन्द्र राय रविवार को रांची स्थित अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस संबंध में आधिकारिक घोषणा करेंगे। भाजपा के प्रदेश कार्यालय के सूत्रों के अनुसार, उम्मीद जताई जा रही है कि रवीन्द्र राय पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक सकते हैं।
जब रवीन्द्र राय से इस मुद्दे पर बात की गई, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वे प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही अपनी बात सामने रखेंगे। हालांकि, उन्होंने इतना जरूर कहा कि भाजपा अब सिर्फ नाम की पार्टी रह गई है और इसमें पहले जैसा संस्कार और चरित्र नहीं बचा है। उन्होंने यह भी कहा कि परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें किसी बड़े निर्णय पर पहुंचना ही होगा।
रवीन्द्र राय के समर्थकों का मानना है कि मौजूदा भाजपा में संस्कार और चरित्र वाले नेताओं के लिए अब कोई जगह नहीं बची है। उनका मानना है कि पार्टी अब पूरी तरह से परिवारवाद में उलझ चुकी है, जहां नेता अपनी पत्नी, बेटे, बहू और भाइयों को टिकट दिलाने में लगे हैं। इसी क्रम में अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को पोटका से, मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को जगन्नाथपुर से, रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू को जमशेदपुर पूर्वी से और ढुलू महतो के भाई शत्रुघ्न महतो को बाघमारा से टिकट दिया गया है। चंपाई सोरेन ने खुद सरायकेला से और अपने बेटे बाबूलाल को घाटशिला से टिकट दिलवा दिया है।
राय के समर्थक सवाल उठाते हैं कि ऐसे में आम कार्यकर्ताओं का क्या होगा? वे कहां जाएंगे? आखिर पार्टी में रायशुमारी क्यों कराई गई थी, जब नेताओं ने पहले ही अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाने का निर्णय कर लिया था? कार्यकर्ताओं के साथ यह सरासर अन्याय है, और पार्टी का नाम अब “भारतीय जनता पार्टी” की बजाय “पत्नी, बहू, बेटा, भाई को टिकट दिलाओ पार्टी” होना चाहिए।
जानकार बताते हैं कि अनुसार, रवीन्द्र राय ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। 2014 में, जब वे झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे, पार्टी को विधानसभा चुनाव में 37 सीटों पर जीत मिली थी। हाल ही में, वे धनबाद-बोकारो क्षेत्र में पार्टी की परिवर्तन यात्रा के प्रभारी थे।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पार्टी में यह स्थिति बनी रही, तो भाजपा के उम्मीदवारों के जीतने की संभावना कम हो जाएगी। रवीन्द्र राय जैसे नेता का पार्टी से जाना भाजपा के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है, और इसका प्रभाव पार्टी के समर्पित वोट बैंक पर भी पड़ सकता है। फिलहाल, पार्टी में बढ़ते असंतोष से भाजपा की चुनावी संभावनाओं को गहरा धक्का लग सकता है।