खूंटी : झारखंड को ‘भोलेनाथ की भूमि’ कहा जाता है, जहां हर पत्थर और पहाड़ी में शिव का वास माना जाता है। इन्हीं आस्था स्थलों में एक है सूमीदान सरना मठ, जो खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम की सीमा पर मुरहू प्रखंड के तपिंगसरा गांव के टेवांगड़ा में है। घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे इस धार्मिक स्थल पर सदियों से स्वयंभू शिवलिंग की पूजा-अर्चना की जाती है।
स्वंयभू शिवलिंग और अर्धनारीश्वर स्वरूप की मान्यता
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस स्थल पर भगवान शिव और पार्वती अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हैं। यहां पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होने का विश्वास है। हर मंगलवार और श्रावण मास के सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
Sawan 2025 : सपने में मिले संकेत और खोदाई से प्रकट हुआ शिवलिंग
ग्रामीण बताते हैं कि 1963-64 में तपिंगसरा गांव के पतरस नामक व्यक्ति को शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि ‘मैं यहां हूं, खोदाई करो और पूजा करो’। अगले दिन खोदाई के दौरान एक पत्थर मिला, जो बाद में शिवलिंग के रूप में स्थापित हुआ। तभी से यह स्थान आस्था का केंद्र बन गया।
Sawan 2025 : कठोर साधना और 108 दिनों का जलाभिषेक
दिवंगत बिरसिंग मुंडरी का यहां गहरा योगदान रहा। उन्होंने कई बार भगवान शिव के दिव्य दर्शन किए और उपवास के साथ कठोर साधना की। उन्होंने लगातार 108 दिनों तक जलाभिषेक किया। यह मठ सरना और सनातन दोनों की आस्था का संगम बन चुका है।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
सूमीदान सरना मठ न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह क्षेत्रीय सांस्कृतिक चेतना और श्रद्धा का प्रतीक भी है। आदिवासी समुदाय का मानना है कि यहां पूजा करने से शिव की कृपा मिलती है और सुरक्षा के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।