नई दिल्ली: वैवाहिक गोपनीयता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के बीच संतुलन बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि तलाक जैसे वैवाहिक विवादों में पति या पत्नी द्वारा गुप्त रूप से की गई कॉल रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, बशर्ते उसकी प्रमाणिकता सिद्ध हो।
यह फैसला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनाया, जिसने 2021 के पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें एक पति को अपनी पत्नी के साथ की गई गुप्त बातचीत की रिकॉर्डिंग तलाक के मामले में पेश करने से रोका गया था।
क्या था मामला?
2017 में तलाक की अर्जी दाखिल करने वाले पति ने एक सीडी अदालत में सौंपी, जिसमें उसने पत्नी के साथ की गई बातचीत की रिकॉर्डिंग को अपने आरोपों के समर्थन में पेश किया। बठिंडा की फैमिली कोर्ट ने इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने की अनुमति दी थी, बशर्ते इसकी सत्यता जांची जाए। लेकिन हाई कोर्ट ने इसे निजता का उल्लंघन मानते हुए खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण: धारा 122 और अनुच्छेद 21 का संदर्भ
शीर्ष अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 का हवाला देते हुए कहा कि यह धारा पति-पत्नी के बीच गोपनीय बातचीत को उजागर करने पर प्रतिबंध लगाती है, लेकिन यह निजता के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 21) से संबंधित नहीं है।
पीठ ने कहा- “हम नहीं मानते कि इस मामले में किसी भी तरह की गोपनीयता का उल्लंघन हुआ है। धारा 122 निजता को नहीं, बल्कि निष्पक्ष सुनवाई, साक्ष्य प्रस्तुत करने और अपने पक्ष को सिद्ध करने के अधिकार को मान्यता देती है।”
न्यायालय की टिप्पणी: ‘जासूसी टूटी हुई शादी की निशानी’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जासूसी किसी मुकदमे का कारण नहीं, बल्कि टूटी हुई शादी का लक्षण है, यदि पति-पत्नी के रिश्ते इस हद तक पहुंच जाएं कि एक-दूसरे की बातचीत गुप्त रूप से रिकॉर्ड की जा रही हो, तो वह विवाह पहले से ही टूट चुका है।
फैसले के दूरगामी प्रभाव: आधुनिक तकनीक और वैवाहिक अधिकारों की टकराहट
शीर्ष अदालत ने बठिंडा फैमिली कोर्ट का 2020 का आदेश बहाल कर दिया, जिससे अब पति अपनी रिकॉर्डिंग को अदालत में प्रमाणित कर साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।
यह निर्णय न केवल तलाक के मामलों में तकनीकी सबूतों की वैधता को स्पष्ट करता है, बल्कि वैवाहिक गोपनीयता बनाम निष्पक्ष सुनवाई जैसे जटिल मुद्दों पर भी नई दृष्टि प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता के अधिकार की आड़ में वैध साक्ष्य को रोका नहीं जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में वैवाहिक विवादों में तकनीकी सबूतों की स्वीकार्यता को लेकर मील का पत्थर साबित होगा। अब डिजिटल सबूत, जैसेकि कॉल रिकॉर्डिंग, भी साक्ष्य के तौर पर अदालत में पेश किए जा सकेंगे, बशर्ते वे सत्य और वैध हों।
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