सेंट्रल डेस्क। 24 सितंबर को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर चर्चा की कि “क्या पतियों पर अपनी पत्नियों के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाने (मैरिटल रेप) के लिए केस चलाया जाना चाहिए या नहीं”। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश के मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ विचार कर रही है, इसमें न्यायमूर्ति JB पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
सरकार का जवाब
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रतिनिधित्व किया और कहा कि केंद्र 7 दिनों के अंदर इस विचार पर अपना जवाब देगी। DY चंद्रचूड़ ने इस मामले की जरुरत को देखते हुए अगली सुनवाई अगले सप्ताह के लिए निर्धारित की है।
क्या है केस?
साल 2022 में एक महिला द्वारा पति पर जबरन शारीरिक संबंध बनाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई। जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था। जहां जस्टिस राजीव शकधर ने “वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को रद्द करने का समर्थन दिया था”। वहीं, सी हरि शंकर का कहना था “कि पति को मिली छूट असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है”।
कर्नाटक हाईकोर्ट मामला
कर्नाटक हाईकोर्ट में एक पति ने पत्नी की तरफ से लगाए मैरिटल रेप के आरोपों पर हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। जिस पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति पर लगाए गए रेप के आरोपों को समाप्त करने से इनकार कर दिया था। कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम नागप्रसन्ना बेंच ने इस केस में कहा था कि “तथ्यों के आधार पर इस तरह के यौन हमले/दुष्कर्म के लिए पति को पूरी छूट नहीं दी जा सकती है”।
वर्तमान में, वैवाहिक बलात्कार को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 के तहत अपराध के रूप में शामिल नहीं किया गया है, जिस कारण कानूनी सुधार की मांग बढ़ रही है, हालंकि अभी सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना बाकी है।
भारत में वैवाहिक बलात्कार
वैवाहिक बलात्कार से तात्पर्य पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाने से है और इसे घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न के रूप में देखा जाता है। हालांकि, इसे कानूनी रूप से अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, जिससे महिलाओं के अधिकारों के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं।