नई दिल्ली: झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अहम सुनवाई हुई। यह याचिका भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने दाखिल की है।
सुनवाई मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अनजारिया की पीठ के समक्ष हुई। याचिकाकर्ता बाबूलाल मरांडी और डीजीपी अनुराग गुप्ता की ओर से उनके वकीलों ने पक्ष रखा।
सिब्बल की व्यस्तता के कारण टली सुनवाई
राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल उपस्थित होने वाले थे, लेकिन किसी अन्य अदालत में व्यस्त होने के कारण उन्होंने बहस के लिए समय मांगा। कोर्ट ने यह आग्रह स्वीकार कर मामले को एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
प्रकाश सिंह केस का हवाला
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने प्रकाश सिंह की ओर से एक हस्तक्षेप याचिका (IA) दाखिल करते हुए दलील दी कि डीजीपी की नियुक्ति प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के पुराने दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ है। भूषण ने मांग की कि डीजीपी की नियुक्ति भी उसी तरह पारदर्शी होनी चाहिए, जैसे CBI निदेशक की नियुक्ति होती है।
क्या हैं बाबूलाल मरांडी की याचिका के आरोप?
बाबूलाल मरांडी द्वारा दायर याचिका में झारखंड सरकार पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका के मुताबिक, जिस अधिकारी को पहले प्रभारी डीजीपी नियुक्त किया गया था, उसी को बाद में स्थायी डीजीपी बना दिया गया। यह भी कहा गया है कि यह वही अधिकारी हैं जिन्हें विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग द्वारा हटाया गया था, लेकिन चुनाव के बाद उन्हें फिर से नियुक्त कर दिया गया।
याचिका में यह भी उल्लेख है कि अनुराग गुप्ता की नियुक्ति UPSC पैनल की सिफारिशों की अवहेलना करते हुए की गई और इससे पहले के डीजीपी को अनुचित रूप से पद से हटाया गया।
प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई शर्तों का पालन न करने के कारण यह नियुक्ति न्यायालय की अवमानना के दायरे में आती है।
अनुराग गुप्ता और केंद्र सरकार का पक्ष
डीजीपी अनुराग गुप्ता की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक या कानूनी कार्रवाई लंबित नहीं है और उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप की गई है। वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने बाबूलाल मरांडी के तर्कों का समर्थन किया और झारखंड सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए।
कोर्ट ने इस मामले में अन्य संबंधित राज्यों को भी नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है।