तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में आए लैब रिपोर्ट को लेकर आंध्र प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है। मंदिर के प्रसाद यानी लड्डू को बनाने की सामग्रियों में फिश ऑयल और गाय की चर्बी मिलने का खुलासा हुआ है। हिन्दुओं के इस पवित्र देवस्थानम के प्रसाद में जानवर की चर्बी मिलना काफी चौंकाने और ठेस पहुंचाने वाली घटना है। माना जाता है कि मंदिर का यह प्रसाद रुपी लड्डू लिए बिना, वेंकट स्वामी का दर्शन अधूरा रह जाता है। इसी तरह मंदिर और मंदिर के प्रसाद से जुड़ी कई बातें हैं, जो तिरुपति मंदिर को रहस्यमई ही नहीं बल्कि जिज्ञासा का विषय भी बनाती है।
1803 से चालू है प्रसाद देने की परंपरा
वेंकट तिरुमाला पहाड़ी की सातवीं चोटी पर स्थित, श्री वेंकटेश्वर का तिरुपति बालाजी मंदिर, देश के सबसे अमीर और पुराने तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां हर रोज हजारों श्रद्धालु आते हैं, श्री वेंकट स्वामी के दर्शन करते हैं, और प्रसाद ग्रहण कर वापस जाते हैं। यह बात जानकार आपको हैरानी होगी कि मंदिर में प्रसाद देने की ये परंपरा 200 साल पुरानी है। इसकी शुरुआत 1803 में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने की थी। पहले मंदिर में प्रसाद के तौर पर लड्डू नहीं लेकिन बूंदी बांटी जाती थी। सालों तक बूंदी को प्रसाद के रूप में बांटने के बाद साल 1940 में इस परंपरा में बदलाव किया गया।
इस बदलाव में बूंदी की जगह लड्डू ने ले ली। उसके बाद साल 1950 में टीटीडी ने प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की मात्रा तय कर दी, जिसकी लिस्ट को दित्तम कहा जाता है। साल 2001 में आखिरी बार दित्तम में बदलाव किया गया था। यह आज तक मंदिर की रसोई में लागू है। इस दित्तम के मुताबिक, मंदिर की रसोई में प्रति दिन 8 लाख लड्डू तैयार करने की क्षमता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर देश के सबसे अमीर मंदिरों में एक है। यहां हर साल भक्तगण सोना दान करते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2024 तक तिरुपति ट्रस्ट के पास 18,817 करोड़ रुपये की जमाराशि है।