नयी दिल्ली. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अक्सर अपने तल्ख तेवरों के लिए चर्चित रहीं TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने एक बार फिर नई बहस छेड़ दी है। सांसद की ओर से की गई एक टिप्पणी बाद दिल्ली से गुजरात तक वैचारिक बवाल मचा है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद ने यह बयान किसी मंच पर भाषण में नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय में दिया है। TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा है कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और एक साथ परिवार के सात सदस्यों की हत्या जैसी घटना मानवता के खिलाफ अपराध थी। इस मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी।
गुजरात सरकार की कार्य प्रणाली पर TMC सांसद ने उठाए गंभीर सवाल
TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने गुजरात सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये। आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार इस भयानक मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करने में नाकाम रही।
किन-किन लोगों ने दायर की है बिलकिस बानो दुष्कर्म मामले में याचिका
दुष्कर्म और हत्या के इस बहुचर्चित मामले में बिल्किस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य की ओर जनहित याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इसमें दोषियों को सजा में छूट देने के फैसले को चुनौती दी गई है। TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इस छूट के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।
TMC सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा गया
दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देते हुए TMC सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य सरकार महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में नाकाम रही है। दावा किया कि राज्य सरकार ने कानून के विपरीत दोषियों की समय पूर्व रिहाई सुनिश्चित करने का निर्णय लिया। अधिवक्ता जयसिंह ने कहा कि यह दलील दी जाती है कि बिलकिस बानो के खिलाफ हुए अपराध को गुजरात में मौजूद स्थिति से अलग करके नहीं देखा जा सकता।ये अपराध वर्ष 2002 के दंगों की पृष्ठभूमि में थे, जब बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई थी…।”
TMC सांसद महुआ मोइत्रा की अधिवक्ता ने क्या कहा
TMC सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि ”बिलकिस बानो के साथ जो हुआ, वह क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक था। दलील दी कि उसके साथ जो हुआ, वह मानवता के खिलाफ अपराध था, क्योंकि यह व्यापक सांप्रदायिक हिंसा के बीच हुआ था, जो एक समुदाय को निशाना बनाकर की गई थी। अधिवक्ता ने अपने क्लाइंट महुआ मोइत्रा के इस मामले में हस्तक्षेप करने के अधिकार को जायज ठहराया। कहा कि TMC सांसद ने जनहित में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। वह ‘बिजीबॉडी’ नहीं हैं, जैसा कि दोषियों ने दलील दी है। अधिवक्ता ने कहा कि ”याचिकाकर्ता संसद सदस्य होने के नाते एक सार्वजनिक व्यक्तित्व हैं। उन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली है। एक जिम्मेदार व्यक्ति और भारत के नागरिक के रूप में उसके पास याचिका दायर करने का अधिकार है।
कोर्ट में क्यों दिया गया संविधान के अनुच्छेद का हवाला
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि TMC सांसद महुआ मोइत्रा धार्मिक और भाषायी सीमाओं से परे भारत के लोगों के बीच सद्भाव और सामान्य भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 51 ए (ई) के तहत अपने मौलिक कर्तव्य का निर्वहन कर रही हैं। याचिकाकर्ता कोई ‘बिजीबॉडी’ या तमाशबीन नहीं है।”
महुआ मोइत्रा के पक्ष में इन्होंने पेश की अपनी दलील
भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी मीरान चड्ढा बोरवंकर और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि बिलकिस बानो ने स्वीकार किया है कि अदालत का रुख करने वाले अन्य लोगों ने उन्हें आत्मविश्वास दिया है।
उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि छूट देने की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता होनी चाहिए। यह मेरे आग्रहों में से एक है… सजा माफी की खबर मीडिया के माध्यम से पहुंची। जिससे बिलकिस स्तब्ध रह गईं। आरटीआई (सूचना का अधिकार) अधिनियम के तहत राज्य को सार्वजनिक महत्व के मामलों को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करने का आदेश है। इस पर भी विचार करना होगा।
दोषियों के जुर्माना न भरने पर कोर्ट में उठे सवाल
ग्रोवर ने अदालत में बहस के दौरान यह भी कहा कि दोषियों द्वारा जुर्माना न चुकाना उन्हें सजा में मिली छूट को अवैध बनाता है, क्योंकि यह नहीं माना जा सकता कि उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है।
उन्होंने कहा कि यह एक स्वीकृत स्थिति है कि किसी ने भी जुर्माना नहीं भरा है। न्यायालय के फैसले के अनुसार जुर्माना न चुकाने पर कुल 34 साल की सजा काटनी होगी।”
इस मामले में दोषी पक्ष की ओर से कोर्ट में क्या दी गई दलील
मामले के दोषियों ने बुधवार को शीर्ष अदालत से कहा था कि उनकी सजा को चुनौती देने वाली कई लोगों की जनहित याचिकाओं पर विचार करने से ‘समस्याओं का पिटारा’ खुल जाएगा और एक खतरनाक मिसाल कायम होगी।
गुजरात सरकार की तरफ से पेश अधिवक्ता ने क्या कहा
गुजरात सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा था कि सजा में छूट को लेकर किसी तीसरे पक्ष को कुछ कहने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह मामला अदालत और आरोपी के बीच का है। सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को स्पष्ट किया था कि समाज के विरोध और आक्रोश का उसके फैसलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।वह केवल कानून के अनुसार चलेगी।
कुछ ऐसा था पूरा मामला
वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। पीड़िता तब 21 साल की थीं। पांच महीने की गर्भवती थीं। मामले के 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को जेल से रिहा कर दिया गया था।