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Ratan Tata: टाटा स्टील में मिला मकसद, यहीं बने कंपनी के चेयरमैन, जमशेदपुर में कैसे बीते रतन टाटा के 6 साल

जमशेदपुर शहर भी उन्हीं जमशेदजी के नाम पर पड़ा, जिसे लोग टाटा के नाम से भी जानते हैं। यहां रतन टाटा ने अपने करियर की महत्वपूर्ण शुरुआत की थी। कैसा था जमशेदपुर में रतन टाटा का अनुभव और कैसे उन्होंने टाटा कंपनी के मजदूरों और यहां के लोगों के लिए काम किया, इसपर खुद रतन टाटा ने एक इंटरव्यू दिया था।

by Priya Shandilya
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आज इतिहास के पन्नों में एक और नाम जुड़ गया है ‘रतन टाटा’ का। 86 की उम्र में रतन टाटा ने दुनिया को अपना आखिरी सलाम कर दिया है। उनका जाना देश और दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है, जिसका खालीपन कभी नहीं भरा जा सकता है। वे टाटा संस के मानद चेयरमैन थे और पूरी जिंदगी परोपकार में लगाया।

टाटा ग्रुप को जमशेदजी नसरवानजी टाटा ने खड़ा किया था, वह आज जिस मुकाम पर है, उसमें रतन टाटा का काफी बड़ा योगदान रहा। जमशेदपुर शहर भी उन्हीं जमशेदजी के नाम पर पड़ा, जिसे लोग टाटा के नाम से भी जानते हैं। यहां रतन टाटा ने अपने करियर की महत्वपूर्ण शुरुआत की थी। कैसा था जमशेदपुर में रतन टाटा का अनुभव और कैसे उन्होंने टाटा कंपनी के मजदूरों और यहां के लोगों के लिए काम किया, इसपर खुद रतन टाटा ने एक इंटरव्यू दिया था।

कॉलेज के दिनों से लेकर जमशेदपुर में इंटर्नशिप करने तक का सफर कुछ इस तरह सुनाया…

‘कॉलेज के बाद, मुझे लॉस एंजेलिस (एलए) में एक आर्किटेक्चर फर्म में नौकरी मिल गई, जहां मैंने 2 साल तक काम किया। एलए में ही मुझे प्यार हुआ और शादी भी करने वाला था। लेकिन उसी समय मैंने कुछ समय के लिए घर वापस आने का फैसला किया क्योंकि मैं अपनी दादी से दूर था, जिनकी तबीयत लगभग 7 वर्षों से ठीक नहीं थी। इसलिए मैं उनसे मिलने वापस आया और सोचा कि जिससे मैं शादी करना चाहता हूं वह मेरे साथ भारत आएगी। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण उसके माता-पिता (रतन टाटा की प्रेमिका के माता-पिता), उसके इस कदम से सहमत नहीं थे और रिश्ता टूट गया।’

’फिर मैंने अपनी दादी के साथ कुछ समय बिताया। मुझे खुशी है कि उनके निधन से पहले मैंने उनके साथ समय गुजारा, क्योंकि ठीक उसके बाद, मैं इंटर्नशिप के लिए टाटा मोटर्स चला गया।’ हालांकि, टाटा मोटर्स में काम करते हुए रतन टाटा खुश नहीं थे। रतन कहते हैं, ’यह समय की बर्बादी थी – मुझे एक विभाग से दूसरे विभाग में ले जाया गया और परिवार के सदस्य के रूप में देखा जाने लगा था। इसलिए किसी ने मुझे नहीं बताया कि क्या करना है। मैं वहां कंपनी और लोगों के काम आ सकूं इसके लिए वहां 6 महीने बिताए।’

’टाटा स्टील में जाने के बाद ही मुझे सही काम मिला और मेरी दिलचस्पी बढ़ी। मैंने फ्लोर से शुरुआत की और उस वक्त मुझे वहां काम करने वालों की दुर्दशा समझ आई। इसलिए सालों बाद, जब हमने टाटा स्टील में लोगों की संख्या 78,000 से घटाकर 40,000 कर दिया, तो हमने रिटायरमेंट तक उन्हें उनका वर्तमान वेतन देना सुनिश्चित किया – जो हमारी सेवा करते हैं उनकी सेवा करना हमारे डीएनए में है।’

जमशेदपुर में रतन टाटा ने उस वक्त 6 साल बिताए और इस दौरान उन्हें आर्किटेक्चर का शौक चढ़ा। वे कहते हैं, ’मुझे मेरी मां और मेरे लिए घर डिजाइन करना अच्छा लगता था, लेकिन इसके अलावा, मेरा जीवन व्यवसाय के लिए समर्पित था।’

टाटा ग्रुप के चेयरमैन बनने पर हुई थी आलोचना

1991 में जहांगीर रतनजी दादाभोय टाटा (जेआरडी टाटा) ने टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और रतन टाटा को चेयरमैन नियुक्त किया। रतन टाटा का अध्यक्ष पद के लिए चुना जाना, कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। इसपर बात करते हुए रतन टाटा ने कहा, ’पहले तो किसी ने कुछ नहीं कहा पर बाद में कड़ी आलोचना हुई थी। इस पद के लिए दूसरे प्रत्याशी भी थे, जो इस बात पर जोर दे रहे थे कि जेआरडी ने गलत निर्णय लिया है। मैं इससे पहले भी गुजर चुका हूं, इसलिए मैंने वही किया जो मुझे सबसे अच्छा पता था- सम्मानजनक चुप्पी बनाए रखी और खुद को साबित करने पर ध्यान केंद्रित किया।’ ’आलोचना व्यक्तिगत थी – जेआरडी को नेपोटिज्म के साथ जोड़ा गया और मुझे गलत निर्णय बताया गया। उस वक्त मैं स्क्रूटिनी में था लेकिन मैंने जो समय टाटा स्टील में काम करते हुए बिताया वह बहुत फायदेमंद रहा।’

’मुझे याद है कि जब मुझे अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तो मैं जेआरडी के साथ उनके कार्यालय तक गया, जहां उन्होंने अपने सचिव से कहा कि उन्हें (जीआरडी को) बाहर जाना होगा। मैंने कहा, ‘नहीं, J, बाहर मत जाओ, जब तक आप यहां काम करना चाहें, आप यहीं रहिए, यह आपका कार्यालय है।’ इसपर जेआरडी ने कहा, ‘तुम कहां बैठोगे?’ मैंने कहा- हॉल के नीचे कार्यालय में और यह ठीक है।’

रतन टाटा, जेआरडी टाटा को तहे दिल से मानते थे। उनके लिए जेआरडी एक गुरु ही नहीं बल्कि पिता और भाई सामान थे। टाटा संस के चेयरमैन बनने के बाद रतन टाटा ने अपना जीवन पूरी तरह से कंपनी को समर्पित कर दिया। वे कहते हैं, ’मेरा जीवन कंपनी को आगे बढ़ाने में लग गया। जब मुझे चेयरमैन नियुक्त किया गया था, तो यह माना गया था कि मेरे सरनेम ने मुझे यह पद दिलाया है, लेकिन मेरा ध्यान कुछ बड़ा बनाने और वापस देने पर था, जो शुरू से ही टाटा के डीएनए में रहा है।’

रतन टाटा ने अपने परोपकारी जीवन का परिचय कई बार उदाहरणों के साथ पेश किया है। चाहे वो अस्पताल हो, कर्ज में डूबे देश को किया गया डोनेशन हो, या फिर कोरोना के वक्त अपने फाइव स्टार होटल को क्वारंटीन के इस्तेमाल के लिए देना हो, रतन टाटा हमेशा लोगों की प्रेरणा रहे हैं। जमशेदपुर और आसपास के गांव की हालत उन दिनों कुछ अच्छी नहीं थी। इसपर रतन टाटा ने बताया, ’जमशेदपुर में, उस वक्त हमारे कंपनी के कर्मचारी फल फूल रहे थे, लेकिन आसपास के गांववाले दुर्दशा में थे। उनके जीवन की गुणवत्ता को ऊपर उठाना भी हमारा लक्ष्य बन गया। इस तरह की चीजें स्वाभाविक रूप से हमारे पास आईं।’

रतन टाटा की संवेदशीलता ने दिया नैनो कार को जन्म!

आज देश में लोग मर्सिडीज, सैंट्रो, मारुती समेत कई अलग-अलग कार लेकर घूमते हैं। लाखों रूपए की ये गाड़ियां हर किसी के बस की बात नहीं थी। पर टाटा ग्रुप की नैनो कार ऐसी कार बनी जिसके लिए महज एक लाख रूपए खर्च कर लोग परिवार समेत इसमें घूम सकते थे। नैनो को शुरू करने का आईडिया कैसे आया इसपर रतन टाटा ने इंटरव्यू में अपने अनुभव साझा किए, ’मुझे बंबई की भारी बारिश में एक बाइक पर 4 लोगों के परिवार को देखना याद है – मैं इन परिवारों के लिए और अधिक करना चाहता था जो विकल्प के अभाव में अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे। जब हमने नैनो लॉन्च की, तब हमारी लागत अधिक थी, लेकिन मैंने एक वादा किया था और हमने उसे पूरा किया। पीछे मुड़कर देखें तो मुझे कार और इसे आगे बढ़ाने के फैसले पर गर्व है।’

मर के भी अमर हो गए रतन टाटा

रतन टाटा की इस परोपकार की भावना ने आज उन्हें दुनिया में अमर कर दिया है। उनकी दरियादिली, उनकी इंसानियत, उनका प्रेम, उनका समर्पण इस कदर लोगों के जेहन में है कि आने वाले कई सालों तक रतन टाटा लोगों के लिए प्रेरणा बनकर रहेंगे। उनके कई किस्से हैं जिन्हें बताना मुश्किल है, पर उन्हें याद कर रतन टाटा को अपनी श्रद्दांजलि देना बिलकुल मुमकिन है। 9 अक्टूबर 2024 देर रात उनके निधन के बाद देश में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया है। बेशक, लोग उनके अच्छे कामों को याद कर रहे हैं, पर उनका जाना हर किसी के आंखों में आंसू छोड़ गया है।

(साभार: ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे)

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