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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई चिंता, न्यायपालिका की भूमिका पर उठाए सवाल

उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लेकर कहा कि इस तरह के निर्देश कार्यपालिका के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं और न्यायपालिका को "सुपर संसद" बनने की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।

by Reeta Rai Sagar
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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को विधेयकों पर समय सीमा में हस्ताक्षर करने के निर्देश को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि इस तरह के निर्देश कार्यपालिका के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं और न्यायपालिका को “सुपर संसद” बनने की दिशा में अग्रसर कर सकते हैं।

धनखड़ ने कहा, हाल ही में आए फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम किस दिशा में जा रहे हैं? यह बेहद संवेदनशील विषय है। यह मामला सिर्फ पुनर्विचार याचिका का नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की बुनियाद से जुड़ा है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उपराष्ट्रपति की प्रतिक्रिया
यह टिप्पणी उपराष्ट्रपति ने 8 अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के संदर्भ में की जिसमें तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में अदालत ने राज्यों से भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति द्वारा समयबद्ध निर्णय लेने की आवश्यकता पर बल दिया था।

धनखड़ ने कहा, क्या अब हमारे पास ऐसे जज होंगे जो कानून निर्माण करेंगे, कार्यपालिका के कार्य करेंगे और सुपर संसद की तरह काम करेंगे, जबकि उनके ऊपर कोई जवाबदेही नहीं होगी? क्या संविधान ने उन्हें यह अधिकार दिया है?

उन्होंने आगे कहा, “अनुच्छेद 145(3) के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को केवल संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। लेकिन यहां न्यायाधीशों ने राष्ट्रपति को आदेशात्मक निर्देश जारी किया है, जो संविधान की आत्मा के खिलाफ है।”

अनुच्छेद 142 और 145(3) को लेकर उठाए सवाल
उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 145(3) में संशोधन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “आठ में से पांच जजों का निर्णय बहुमत है, लेकिन क्या यह लोकतांत्रिक व्याख्या का उचित तरीका है?”
धनखड़ ने अनुच्छेद 142 को लेकर भी तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “अनुच्छेद 142 एक परमाणु हथियार बन चुका है जो न्यायपालिका के पास 24×7 उपलब्ध है और इसे लोकतांत्रिक शक्तियों के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा रहा है।”

दिल्ली उच्च न्यायालय के जज के घर नकदी मिलने पर प्रतिक्रिया
धनखड़ ने हाल ही में दिल्ली में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर कथित नकदी मिलने की घटना पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “14-15 मार्च की रात यह घटना हुई, लेकिन सात दिन तक कोई जानकारी नहीं मिली। क्या यह देरी स्वीकार्य है? क्या इससे न्यायिक जवाबदेही पर सवाल नहीं उठते? उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी ने संलिप्तता को संकेतित किया है, लेकिन अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है क्योंकि कानून के अनुसार न्यायाधीशों के खिलाफ सीधे एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।

न्यायिक जवाबदेही की मांग
उपराष्ट्रपति ने कहा, राष्ट्र आज बेचैनी और असमंजस की स्थिति में है क्योंकि एक ऐसा संस्थान, जिस पर लोगों का उच्चतम सम्मान रहा है, अब सवालों के घेरे में है। उन्होंने फिर दोहराया कि न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करना अत्यावश्यक है और इसके लिए संवैधानिक एवं कानूनी सुधारों की आवश्यकता है।

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