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भगवान शिव के कावड़ यात्रा का क्या है इतिहास ? कब से शुरू हुआ कावड़ यात्रा? इसका क्या महत्व है? कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है? आइये जाने इस रिपोर्ट में

by Rakesh Pandey
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कावड़ यात्रा 2023 : भगवान शिव का महान महीना सावन की शुरुआत हो चुका है। बाबा भोले के दर्शन के लिए देश भर से भक्त कावड़ में जल भरकर बाबा के धाम को चल दिये है। चारों तरफ भगवान शिव के भजन बजना शुरू हो गया है। कावड़ यात्रा को लेकर बाजार में नये बाबा के वस्त्र भी खरीद रहे है। 4 जुलाई से शुरू हुए सावन महीने 31 अगस्त तक पूरे दो महीने रहेगा इस दौरान करोड़ों लोग बाबा भोले पर जल अर्पण करेंगे।
जानकारी के लिए आइये आपको आज कावड़ यात्रा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेंगे,

-क्या है कावड़ यात्रा की इतिहास?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान ने शिव ने समुद्र से निकले विष को धारण किया था , उस दौरान उनका कंठ नीला रंग का हो गया था। इसको लेकर सभी देवता उन्हें शांत व प्रसन्न करने के लिए उन्हें जल का अभिषेक किया। उस समय से ही भगवान शिव को जलाभिषेक किया जाता आ रहा है।

सबसे पहले कावड़ यात्रा की शुरूआत किसने की थी,? कावड़ यात्रा का प्रचलन कब से ज्यादा हुआ?
सबसे पहले जानेंगे कावड़ का अर्थ क्या होता है। जैसा कि प्रतीत होता है कि कावड़ शब्द कंधे से जुड़ा हुआ है। ऐसे में कावड़ का पूरा अर्थ कंधे पर जल लेकर भगवान शिव को अर्पण करना होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कावड़ यात्रा की शुरूआत से जुड़ी कई रोचक तथ्य है। कावड़ यात्रा की सबसे पहले शुरुआत भगवान शिव के महान भक्त भगवान परशुराम ने की थी। उन्होंने यह यात्रा श्रावण महीने में की थी। उस समय से कावड़ यात्रा अभी तक चला आ रहा है।

हालांकि पहले कावड़ यात्रा साधु संतो द्वारा की जाती थी। वहीं अब भगवान शिव के सभी भक्त कावड़ यात्रा में शामिल होते है। आधुनिक युग सबसे पहले कावड़ यात्रा 60 दशक से ज्यादा प्रचलित होने लगा। भगवान शिव की कावड़ यात्रा की विशेषता है की महिला ,पुरुष, बच्चे , बूढ़े सभी अपने शरीर के सामर्थ्य के अनुसार कावड़ यात्रा कर सकते है।

कावड़ यात्रा के इतिहास से जुड़े और भी कई तथ्य है।

कावड़ यात्रा की शुरूआत त्रेता युग में श्रवण कुमार ने की थी। अपने माता पिता की इच्छा पूरी करने के लिए कावड़ का इस्तेमाल किया था। जिस पर कावड़ के दोनों तरफ माता और पिता को बैठाकर उतराखंड स्थित गंगा में स्नान कराया था। वे लौटते समय कावड़ पर गंगा जल भरकर भगवान शिव को अर्पित किया था।
इसके साथ ही कावड़ यात्रा से जुड़े एक और तथ्य लोकप्रिय है। त्रेता युग में भगवान राम ने भी कांवड़िया बनकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था।

:कावड़ यात्रा का क्या महत्व है?

कांवड़ यात्रा भगवान शंकर के पावन महिना सावन में की जाती है। कांवड़ यात्रा को पावन व कठिन भी माना जाता है। मानयताओं के अनुसार जो भी भक्त सच्चे मन से सावन महीने में कांवड़ में जल भरकर बाबा को अर्पित करता है , उसकी सभी कामनाएं पूरी हो जाती है। कांवड़ यात्रा पूरे देश भर में होती है।विशेष रूप से उतर भारत में ज्यादा कांवड़ यात्रा ज्यादा प्रचलित है।

उतर भारत स्थित भक्त विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद मां गंगा से जल भरकर भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। देश के उतरी भाग में भक्त गौ मुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार में स्नान कर कांवड़ में जल भरकर भगवान शिव को अर्पित करते है। वहीं पूर्वी भारत में लाखों की संख्या में भक्त बिहार के भागलपुर स्थित सुलतानगंज से मां गंगा में स्नान ध्यान कर कांवड़ में जल भरते है। उसके बाद बाबा धाम के लिए 115 किलोमीटर की कठिन यात्रा करते है।

कांवड़ यात्रा में रखना पड़ता है विशेष ध्यान

कांवड़ यात्रा को पावन होने के साथ कठिन भी माना जाता है। क्योंकि कांवड़ यात्रा के दौरान भक्त को तन मन धन सभी तरह से उसे पवित्र होना पड़ता है, तभी भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है। इसके नियम का अवश्य पालन करना पड़ता है।
कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों के मांस, मदिरा तथा किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन को ग्रहण करना पूर्णता वर्जित माना जाता है। साथ ही अपने कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है। हमेशा शुद्ध स्थान पर रखा जाता है। इसके अलावे बिना स्नान ध्यान किये कांवड़ को नहीं छूना चाहिए।

– कांवड़ यात्रा के प्रकार:

ऐसे तो अधिकांश भक्त सामान्य कांवड़ यात्रा करते है। हालांकि भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग तरीके से कांवड़ यात्रा करते है।

सामान्य कावड़ यात्रा

सामान्य कावड़ यात्रा वैसी यात्रा है, जिसमें सभी तरह के भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए करते हैं। इस यात्रा के दौरान भक्तों को ज्यादा कष्ट नहीं होती इस यात्रा के दौरान भक्त बीच में विश्राम करके यात्रा को पूरी करते हैं। इस दौरान जवान महिला बच्चे सभी तरह के भक्त इस यात्रा में शामिल होते हैं।

डाक कावड़ यात्रा: डाक कावड़ यात्रा अत्यंत ही कठिन माना जाता है । इस यात्रा के दौरान भक्त सबसे पहले स्नान ध्यान कर गंगा से जल भरकर कठिन यात्रा करता हैं । इस यात्रा का नियम ऐसा है की भक्तों को 24 घंटे के अंदर ही भगवान शिव को जल अर्पण करना पड़ता है । यात्रा के बीच में भक्तों को कहीं रुकना नहीं होता है । साथी ही अपने शरीर को यात्रा के अंतिम प्रक्रिया तक शुद्ध रखना पड़ता है।

खड़ी कांवड़ यात्रा : खड़ी कावड़ यात्रा ऐसी यात्रा है, जिसे अधिकांश भक्त पसंत करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है की इस यात्रा से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। इस यात्रा के दौरान भक्तों को बीच में रुकना नहीं होता है ,अगर किसी कारणवश भक्त को रूकना पड़े तो उस स्थिति में उसके सहयोगी सहयोग करते है। उसके कांवड़ को अपने कंधे पर लेकर उसको हिलाते रहते हैं, जब तक की भक्त अपने को सामान्य महसूस ना करें। इसी प्रकार से यात्रा निरंतर जारी रहता है।

दांडी कांवड़ यात्रा : दांडी कावड़ यात्रा बहुत कठिन यात्रा मानी जाती है भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त इस प्रकार की दांडी कावड़ यात्रा को पसंद करते हैं। इस यात्रा के दौरान भक्त लगातार भगवान शिव के धाम तक अपने को दंड देते हुए स्थिति में लगातार धाम तक जाता है। इस यात्रा में 1 महीने भी लग जाता है।

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-कैसे बनती है कांवड़?

कांवड़ देश के उतरी क्षेत्र में ज्यादा बनाया जाता है।उतराखंड स्थित हरिद्वार में ज्यादा बनाई जाती है।
कांवड़ बनाने में बांस का उपयोग ज्यादा होता है। कांवड़ को खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। ताकि कांवड़ आकर्षक दिखे। इसमें रंगीन कपड़े, डमरू, त्रिशूल, घुंघरू, मंदिर, भगवान शिव, नंदी, रंग बिरेंगे फूल से सजाया जाता है। कांवड़ के दोनों तरफ जल भरने के लिए छोटे छोटे जार होता है।पूरे कांवड़ को खूबसूरत जड़ी वाले धागो से सजाया जाता है।

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