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नवरात्रि में कन्या पूजन का क्या महत्व है? क्या है शुभ मुहूर्त…

by Rakesh Pandey
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नवरात्रि में अष्टमी और नवमी का महत्व विशेष काफी विशेष होता है। जिन्हें ‘दुर्गा अष्टमी’ या ‘महाअष्टमी’ और ‘नवमी’ के रूप में जाना जाता है। लोग अष्टमी और नवमी को शुभ मानते हैं। वहीं, इन दिनों कन्या पूजन का भी महत्व है। आइए जानें कन्या पूजन की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त। अष्टमी को माता महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है, जिन्होंने असुरों का संहार किया था। वहीं, नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

 

जानें महाअष्टमी 2023 के शुभ मुहूर्त

 

– अष्टमी तिथि का आरंभ: 21 अक्टूबर, रात्रि 9:53 बजे

-अष्टमी तिथि का समाप्त: 22 अक्टूबर, सायं 7:58 बजे

– ब्रह्म मुहूर्त: 22 अक्टूबर, प्रातः 4:45 बजे से 5:35 बजे तक

– सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रातः 6:26 बजे से सायं 6:44 बजे तक

– कन्या पूजन: 22 अक्टूबर, प्रातः 6:26 बजे से कन्या पूजन के लिए शुभ मुहूर्त।

 

 

नवमी तिथि के शुभ मुहूर्त:

 

– ब्रह्म मुहूर्त: 23 अक्टूबर, 04:45 एएम से 05:36 एएम तक

– अभिजित मुहूर्त: 11:43 एएम से 12:28 पीएम तक

– विजय मुहूर्त: 01:58 पीएम से 02:43 पीएम तक

– गोधूलि मुहूर्त: 05:44 पीएम से 06:09 पीएम तक

– अमृत काल: 07:29 एएम से 08:59 एएम तक

– निशिता मुहूर्त: 11:40 पीएम से 12:31 एएम तक

 

कन्या पूजन मुहूर्त: 23 अक्टूबर को कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 27 मिनट से सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इसके बाद कन्या पूजन के लिए एक दूसरा शुभ मुहूर्त भी है, जो सुबह 9 बजकर 16 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।

 

 

कन्या पूजन की विधि

 

आपको बता दें कि कन्या पूजन की विधि बहुत ही महत्वपूर्ण है और यह इस प्राचीन परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। कन्या पूजन के दौरान नौ कन्याओं और एक लड़के की पूजा की जाती है, जिन्हें मां के स्वरूप और भैरव के स्वरूप में माना जाता है। यदि आपके पास नौ कन्याएं नहीं हैं, तो आप उनमें से जितनी हैं, उनका ही पूजन कर सकते हैं और बाकी कन्याओं के हिस्से का भोजन एक गाय को खिला दें।

 

कन्याओं को पूजन के लिए तैयार करने के बाद, उनके पैरों को स्वच्छ जल से धोना आवश्यक होता है। उन्हें आसन पर बिठाना चाहिए। सबको तिलक लगाएं। कन्याओं को भोजन खिलाएं और उन्हें प्रसाद के रूप में फल दें। अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा अवश्य दें। अंत में कन्याओं के चरणों को स्पर्श करें और उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करें, मानते हुए कि कन्याएं ही मां का रूप हैं।

 

दरअसल, इस पूजा का अध्ययन मान्यताओं के अनुसार, विभिन्न संख्याओं के साथ विभिन्न फल लिया जाता है। यदि आपके पास 1 कन्या है, तो आपको ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है, जबकि 2 कन्याओं के साथ भोग, 3 कन्याओं के साथ पुरुषार्थ, 4-5 कन्याओं के साथ बुद्धि और विद्या, 6 कन्याओं के साथ कार्य में सफलता, 7 कन्याओं के साथ ऐश्वर्य, 8 कन्याओं के साथ कोर्ट कचहरी में सफलता और 9 कन्याओं की पूजा से शत्रुओं पर सफलता हो सकता है।

 

संख्या के आधार पर यह भी जाना जाता है कि कन्या पूजन की विधि का किस प्रकार का फल हो सकता है, जैसे 2 वर्ष की कन्या पूजा से धन-ऐश्वर्य, 3 वर्ष की कन्या पूजा से धन-धान्य, 4 वर्ष की कन्या पूजा से परिवार का कल्याण, 5 वर्ष की कन्या पूजा से रोगों से मुक्ति, 6 वर्ष की कन्या पूजा से राजयोग, विद्या और विजय, 7 वर्ष की कन्या पूजा से ऐश्वर्य, 8 वर्ष की कन्या पूजा से कोर्ट कचहरी के मामलों में सफलता, 9 वर्ष की कन्या पूजा से शत्रुओं पर सफलता, और 10 वर्ष की कन्या पूजा से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है।

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