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क्या चुनौतियां होंगी फडणवीस सरकार की, जब राज्य पर है इतना बड़ा कर्ज

राज्य का राजस्व जस का तस है, लेकिन राज्य पर कर्ज 7.82 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस हिसाब से आने वाले दिनों में वेतन देना भी मुश्किल हो सकता है।

by Reeta Rai Sagar
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मुंबईः महाराष्ट्र में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे देवेंद्र फडणवीस ने आज सुबह सिद्धिविनायक मंदिर और मुंबा देवी माता के दर्शन किए। आज शाम 5.30 बजे वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औऱ कैबिनेट मंत्रियों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।

लेकिन क्या सरकार चलाना आसान होगा फडणवीस के लिए, किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, कैसा होगा सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले फडणवीस का हाल। क्यों कि केवल बहुमत के आधार पर सरकार नहीं चलाई जाती, वो भी तब जब सरकार गठबंधन की हो। साझेदारी की असुरक्षा के साथ-साथ विपक्ष हर पल गठबंधन की सरकार की क्षमता को परखेंगे।

अब वक्त चुनावी वादों को पूरा करने का
महायुति को प्रचंड बहुमत दिलाने में फडणवीस और शिंदे दोनों की ही अहम भूमिका है। लेकिन अब बारी चुनावी वादों को पूरा करने की होगी। लाडली बहना योजना जैसी योजनाओं को वास्तविक पटल पर लाना होगा। चुनाव के दौरान इस राशि को 1500 से 2100 करने के वादे को पूरा करना होगा। इसके साथ ही किसान सम्मान निधि की राशि को भी 12 हजार से बढ़ाकर 15 हजार करने का वादा किया गया था। किसानों की कर्ज माफी से लेकर वृद्धा पेंशन तक की योजनाओं में देय राशि को बढ़ाए जाने की बात की गई थी, अब इन पर अमल करने की बारी है। विशेषज्ञ का कहना है कि राज्य का राजस्व जस का तस है, लेकिन राज्य पर कर्ज 7.82 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस हिसाब से आने वाले दिनों में वेतन देना भी मुश्किल हो सकता है।

बीएमसी चुनाव हर हाल में जीतना ही होगा
महाराष्ट्र में बीएमसी का चुनाव जो जीतता है, शक्ति उसी के हाथों होती है। एकनाथ शिंदे ने इसी कारण से बीएमसी चुनाव त क मुख्यमंत्री बनाए रहने की गुजारिश की थी, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने इस बात से इंकार कर दिया। 3 दशक से शिवेसना का बीएमसी पर राज है, लेकिन अब शिवसेना में बंटवारा हो चुका है, इस बात का फायदा यूबीटी (उद्धव ठाकरे) को मिल सकता है। ऐसे में अगर फडणवीस को अपनी पकड़ मजबूत करनी है, तो बीएमसी का चुनाव हर हाल में जीतना होगा।

सरकार मिलजुल कर चलाना ही एकमात्र विकल्प
चूंकि महाराष्ट्र में सरकार गठबंधन से बन रही है यानि कुर्सी के पायों को टिकाए रखना भी वर्तमान सरकार के लिए एक चुनौती होगी। दूसरी ओर राजनीतिक शक्ति को साझा करने में भी समझदारी दिखानी होगी। देवेंद्र फडणवीस को अपने अन्य सहयोगियों के साथ पूरी सतर्कता के साथ डील करना होगा। सीएम की कुर्सी के लिए शिंदे पहले ही शिवसेना से बैर कर बैठे है और अजित पवार ने तो अपनों को ही दगा दे दिया, ऐसे में फडणवीस के लिए बेहतर होगा कि वे आपसी सहमति से सरकार चलाएं।

महाराष्ट्र के प्रोजेक्ट्स को गुजरात जाने से रोकना
बीते दिनों वेदांता और टाटा जैसी बड़ी कंपनियों ने महाराष्ट्र छोड़कर गुजरात का रूख कर लिया। इस बात को विधानसभा चुनाव के दौरान मुद्दा भी बनाया गया था। वेदांता जैसी दिग्गज कंपनी ने चिप फैक्ट्री प्रोजेक्ट को गुजरात में लगाने का डिसीजन लिया, जो कि 1.53 लाख करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट थी। तो वहीं टाटा एयरबस सी 295 ने भी परिवहन विमान की योजना को गुजरात में शुरू किया, जो कि 22000 करोड़ रुपये की परियोजना थी। ऐसे में फडणवीस के शासन में आने के बाद यदि कोई प्रोजेक्ट गुजरात जाता है, तो उन्हें जवाब देना मुश्किल हो सकता है।

मराठाओं की सियासी ताकत
महाराष्ट्र की राजनीति में हर पार्टी मराठा कार्ड खेलती है और मराठा समुदाय सियासी ताकत भी रखता है। राज्य में मराठा आरक्षण एक ज्वलंत मुद्दा है। मराठा आरक्षण आंदोलन चलाने वाले जरांगे पाटील को सबसे अधिक दिक्कत देवेंद्र फडणवीस से ही रही है। ऐसे में शिंदे को तोड़ने की कोशिश की जा सकती है।
इन सबके अलावा छोटे व्यवसायी, रोजगार के अवसर, आर्थिक विकास, नौकरियां और बेहतर कानून व्यवस्था पर बारीकी से काम करना फड़णवीस सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

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