खूंटी (झारखंड) : झारखंड जैसे सांस्कृतिक और आदिवासी विरासत से समृद्ध राज्य में आज भी अंधविश्वास पर आधारित डायन जैसी अमानवीय कुप्रथा जड़ें जमाए हुए है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, हर तीसरे दिन एक महिला डायन करार देकर मार दी जाती है। वर्ष 2001 से 2020 तक झारखंड में डायन के नाम पर 590 लोगों की हत्याएं दर्ज की गई हैं, जबकि सिविल संगठनों के अनुमान में यह आंकड़ा 1800 से अधिक है।
खूंटी में डायन प्रथा की भयावहता : संपत्ति विवाद और महिला विरोध
खूंटी जिला, डायन प्रथा से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। JSLPS के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में 650 महिलाएं और 11 पुरुष डायन-कुप्रथा का शिकार बने। इनमें से अधिकांश घटनाएं संपत्ति विवाद या पारिवारिक झगड़ों से जुड़ी थीं। कई महिलाएं अभी भी न्याय की आस में कोर्ट के चक्कर काट रही हैं।
पीड़ितों की आपबीती
विधवा महिला को डायन बताकर घर से निकाला गया – पति की मौत के बाद जमीन पर कब्जा करने के लिए उसे बदनाम किया गया।
बीमार सास की मौत के बाद महिला पर डायन का आरोप – उसकी फसलें नष्ट की गईं, मानसिक प्रताड़ना दी गई।
मिर्गी से पीड़ित बच्ची की मौत का ठीकरा महिला पर फोड़ा गया – गांव वालों ने उसे बुरी तरह पीटा और गांव छोड़ने को मजबूर किया।
पद्मश्री छुटनी महतो : डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन की अग्रदूत
सरायकेला-खरसावां जिले की छुटनी महतो की कहानी झकझोर देने वाली है। 1995 में उन्हें डायन करार देकर सामाजिक बहिष्कार, दुष्कर्म का प्रयास, मल-मूत्र पिलाने की कोशिश और शारीरिक हिंसा का शिकार बनाया गया। उन्होंने इस सामाजिक कलंक के खिलाफ लड़ाई छेड़ी और आज 100 से अधिक महिलाओं को बचा चुकी हैं। उनके कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।
डायन-शिकार : केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि लैंगिक और सामाजिक अन्याय
डायन प्रथा अंधविश्वास, पितृसत्तात्मक सोच, संपत्ति विवाद, और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का मिला-जुला परिणाम है। पीड़ितों में ज़्यादातर विधवाएं, निःसंतान महिलाएं और अकेली रहने वाली महिलाएं होती हैं, जिन्हें कमजोर समझकर निशाना बनाया जाता है।
कानूनी स्थिति और BNS 2023 के प्रावधान
प्रमुख कानूनी पहल:
झारखंड डायन प्रथा उन्मूलन अधिनियम, 2001 : डायन-ब्रांडिंग और हिंसा पर सख्त प्रावधान।
2022 का प्रस्तावित विधेयक : डायन के नाम पर हत्या, प्रताड़ना और सामाजिक बहिष्कार को IPC की धाराओं के तहत कवर करता है।
भारत की नई दंड संहिता (BNS 2023) के तहत
धारा 103 – डायन के नाम पर हत्या = मृत्युदंड / आजीवन कारावास + जुर्माना
धारा 324 व 351 – प्रताड़ना के मामलों में 7–10 वर्ष की सजा
धारा 111 – सामूहिक हिंसा के मामलों में आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक का प्रावधान
जागरूकता और पुनर्वास की सरकारी पहल
- गरिमा परियोजना (JSLPS + CIP Ranchi)
2,600+ पीड़ितों को बचाया गया
253 महिलाओं को मनोवैज्ञानिक परामर्श
385 महिलाओं को SHGs से जोड़ा गया
- प्रोजेक्ट सुरक्षा (Jhalsa)
ग्रामीण क्षेत्रों में विधिक जागरूकता
वैज्ञानिक इलाज के लिए प्रेरणा
आगे की राह : समाज और शासन दोनों की जिम्मेदारी
समाधान के मुख्य स्तंभ
-ग्रामीण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार
-कानून का सख्ती से पालन और त्वरित न्याय
-महिलाओं का सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण
-अंधविश्वास के खिलाफ निरंतर जागरूकता अभियान
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