रांची/जमशेदपुर : झारखंड में कुछ संवैधानिक संस्थाओं के रिक्त पदों के कारण जनता को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आरटीआई के तहत सूचना प्राप्त करने, महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराने और भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई करने के लिए राज्य में कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। ये सभी मुद्दे राज्य में महत्वपूर्ण आयोगों की सदस्य और चेयरपर्सन की नियुक्ति में देरी के कारण उत्पन्न हुए हैं।
आयोगों के कामकाज में विघ्न
राज्य में कई आयोगों की स्थिति संकटपूर्ण है क्योंकि इनकी अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्तियाँ लम्बे समय से नहीं हुई हैं। सबसे बड़ी समस्या सूचना आयोग में है, जहां मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों के पद खाली पड़े हैं। राज्य में सूचना आयुक्त के पद 30 नवंबर 2019 से खाली हैं, जबकि मई 2020 से राज्य सूचना आयोग में कोई सूचना आयुक्त नहीं है, जिससे कामकाज ठप पड़ा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर संज्ञान लिया और तल्ख टिप्पणी की। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि सूचना आयुक्त के पद की बहाली में विलंब एक गंभीर मुद्दा है, और इसकी नियुक्ति में त्वरित कदम उठाने के लिए राज्य को दो हफ्ते का समय दिया गया।
विपक्ष और सरकार का आरोप-प्रत्यारोप
इस मामले में विपक्ष और सरकार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार जानबूझकर नियुक्तियाँ लटका रही है, जबकि सरकार का कहना है कि विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीति कर रहा है। बीजेपी ने दावा किया कि जब बाबूलाल मरांडी का मामला स्पीकर के ट्रिब्यूनल में था, तब उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद सौंपा जाना चाहिए था, लेकिन विपक्ष ने इसे लटकाया, जिससे नियुक्तियाँ नहीं हो पाईं।
लंबित आवेदन और पेंडिंग मामलों की स्थिति
इस राजनीतिक विघ्न का सीधा असर जनता के मामलों पर पड़ा है। वर्तमान में आरटीआई के तहत हियरिंग के लिए 7657 पेंडिंग अपील हैं और नए अपील की संख्या 8427 तक पहुँच चुकी है। वहीं, कंप्लेंट एप्लीकेशन्स की संख्या 71 है। कुल मिलाकर, 16,000 से ज्यादा आवेदन पेंडिंग हैं, जिनकी सुनवाई नहीं हो पा रही है।
हर महीने 450 से 500 नई याचिकाएँ आयोग में आती हैं, और हर दिन लगभग 70 से 80 याचिकाएँ प्राप्त होती हैं, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त की मंजूरी के बिना इन पर कोई आगे की कार्रवाई नहीं हो सकती।
आयोगों की स्थिति और सरकार की जिम्मेदारी
झारखंड में आयोगों के इस संकट ने सरकार की कार्यप्रणाली और विपक्षी दलों के बीच तल्खी को उजागर किया है। जहाँ एक ओर सरकार विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रही है, वहीं विपक्ष का कहना है कि सरकार इस मुद्दे को राजनीति से जोड़े हुए है। इस स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि झारखंड में प्रशासनिक ढांचा और संविधानिक संस्थाएँ संकट में हैं, और उन्हें शीघ्र पुनः सक्रिय करने की आवश्यकता है।