देशभर के प्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक और वक्ता द्वारा शब्दों की जादूगरी से ‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल का शानदार आगाज हो चुका है। कार्यक्रम में ‘मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार’ से सम्मानित यतीश कुमार भी मौजूद रहे। इनॉगरल इवेंट में यतीश कुमार ने जमशेदपुर शहर से अपने रिश्ते और किताबों की उनकी जिंदगी में अहमियत पर बात की। उन्होंने किताबों से फासला रखने और फिर उसके करीब जाने के अपने दिलचस्प अनुभव साझा किए।
यतीश ने कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाने के प्रति धन्यवाद ज्ञापन के साथ शुरुआत की। “मैं कई कार्यक्रमों का हिस्सा रह चुका हूं, पर किताब पर केंद्रित कोई फेस्टिवल हो, यह पहली बार देख रहा हूं।”
उन्होंने जमशेदपुर शहर से अपने रिश्ते की गहराई कुछ इस तरह समझाई। “मेरा राब्ता इस शहर से इस तरह से है, जिस किताब पर मैं कल बात करूंगा। उस किताब का एक चैप्टर यहां के आरआईटी जमशेदपुर को समर्पित है। मेरे भाई ने इसी जगह से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और जब मैं दसवीं में था तो मैं आरआईटी के हॉस्टल में छुपकर दसवीं परीक्षा की तैयारी करता था।”
9 साल पहले तक किताबों से बनाई रखी थी दूरी
कुछ साल पहले तक, यतीश खुद को किताब पढ़ने से दूर रखते थे। इसकी खास वजह थी। उन्होंने कहा, “2015 तक मैं सोचता था कि अगर मैं किताब पढूंगा तो बिगड़ जाऊंगा। मेरी जो मूल विचार प्रक्रिया है वो बिगड़ जाएगी। ये सारे बहाने पाल के रखे थे, लेकिन जब वो पल आता है जब आपको असलियत का एहसास होता है, तब आपको किताब की महत्ता समझ आती है। आदमी साहित्य में आता क्यों है? ये प्रश्न पहले आता है किताब इसके बाद, क्योंकि साहित्य में आने का मतलब ये है कि आप बेहतर मनुष्य बनें। अगर हम नित-प्रतिदिन कुछ बेहतर करना चाहते हैं, जुनून जगाना चाहते हैं, तो किताब से बेहतर कोई माध्यम नहीं है। साहित्य में रहने के लिए किताब के साथ रहने का दूसरा कोई माध्यम नहीं है।”
यतीश कुमार, 1996 बैच के भारतीय रेलवे मैकेनिकल इंजीनियर्स सेवा (आईआरएसएमई) के अधिकारी हैं, जो पिछले दो दशकों से साहित्य और सामाजिक सेवा में लगे हुए हैं। सरकारी अधिकारी होने के बावजूद उन्होंने किताबों के प्रति अपने लगाव को कभी आड़े नहीं आने दिया। आज भी वे नियमित रूप से दो घंटे किताब पढ़ते हैं। उन्होंने मंच पर इस बारे में बताते हुए कहा कि किताब उनके लिए कितनी जरूरी है।
“मैं दो घंटे रोज किताब पढ़ता हूं। सरकारी अधिकारी हूं लेकिन साढ़े पांच से साढ़े सात। लगभग 50 पन्ने मेरे टारगेट होते हैं और इस तरह से बहुत सारी चीजों को मैं समझ पता हूं, जो समय है, काल है, काल की जो चाल है, उसकी ढाल है, पूरा विश्वपटल है, हर चीज को किताब के माध्यम से ही समझा जाता है। कई लोग मुझसे प्रश्न पूछते हैं कि मैं एक हफ्ते में पूरी किताब कैसे पढ़ लेता हूं, तो मेरा उत्तर होता है – जैसे सांस है, इसके बिना आप जिंदा नहीं रह सकते, वैसे मेरे लिए किताब है, इसके बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता हूं।”
कौन हैं यतीश कुमार?
यतीश कुमार ने प्रसिद्ध उपन्यासों, कहानियों और यात्रा वृतांतों में अपनी अनूठी काव्य शैली से अपनी अलग पहचान बनाई है। उनका पहला कविता संग्रह ‘अंतस की कुरचन’ 2021 में प्रकाशित हुआ, उसके बाद उनका दूसरा ‘आविर्भाव’ जनवरी 2023 में प्रकाशित हुआ, जिसे पाठकों और आलोचकों से भरपूर प्रशंसा मिली। ‘अंतस की खुरचन’ को भारत सरकार द्वारा 2021 में ‘मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उनके हालिया संस्मरण ‘बोरसी भर आँच’ ने अपनी कथात्मकता और विषयगत ईमानदारी के लिए युवाओं के बीच काफी लोकप्रियता हासिल की है। अब तक इस संस्मरण के चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल सराईकेला-खरसावां और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ऑटो क्लस्टर, आदित्यपुर के सभागार में आयोजित किया गया है। यह दो दिवसीय बुकफेस्ट राज्य के युवाओं को साहित्य, कला और संस्कृति से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है। 18 और 19 अक्टूबर 2024 को आयोजित इस बुकफेस्ट का उद्देश्य कला, संस्कृति और किताबों के जरिए समाज के सभी वर्गों को लोकतंत्र में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जागरूक करना है।