पटना : बिहार के पश्चिमोत्तर क्षेत्र स्थित चंपारण ने आज से 107 वर्ष पूर्व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा था। 10 अप्रैल 1917 को शुरू हुआ चंपारण सत्याग्रह भारत में महात्मा गांधी का पहला संगठित अहिंसात्मक आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की।

तीनकठिया प्रथा के खिलाफ किसानों की लड़ाई
इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में तीनकठिया प्रथा थी, जिसके तहत किसानों को अपनी एक बीघा जमीन में से तीन कट्ठे में जबरन नील की खेती करनी पड़ती थी। अंग्रेज बगान मालिक इस व्यवस्था को लागू कराकर किसानों से मुफ्त में मेहनत कराते थे, बदले में उन्हें कोई उचित मुआवजा नहीं मिलता था। यह प्रथा लगभग 135 वर्षों से चली आ रही थी, जिसने किसानों की आर्थिक स्थिति को अत्यंत दयनीय बना दिया था।
गांधीजी का भारत में पहला सत्याग्रह
इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए किसान नेता राजकुमार शुक्ला के आग्रह पर महात्मा गांधी 15 अप्रैल 1917 को पहली बार चंपारण पहुंचे। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए ब्रिटिश शासन के खिलाफ कानूनी और नैतिक आधार पर आंदोलन छेड़ा। इस आंदोलन में न कोई गोली चली, न कोई लाठी चली, न कोई जुलूस निकाला गया और न ही कोई उग्र प्रदर्शन हुआ। इसके बावजूद आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।
गांधीजी की गिरफ्तारी और ऐतिहासिक इन्कार
जब गांधीजी को गिरफ्तार किया गया, तब उन्होंने जमानत लेने से इन्कार कर दिया। यह गांधीजी की रणनीति का ही हिस्सा था कि उन्होंने कानून के भीतर रहकर न्याय की मांग की और जनता का विश्वास अर्जित किया। उनके इस रुख ने पूरे देश को प्रेरित किया और सत्याग्रह की अवधारणा को जन-जन तक पहुंचाया।
चंपारण सत्याग्रह का परिणाम : नील की खेती से आजादी
गांधीजी के नेतृत्व में चले इस आंदोलन का प्रभाव इतना व्यापक था कि ब्रिटिश सरकार को जांच समिति गठित करनी पड़ी। अंततः 4 मार्च 1918 को एक विधेयक पारित हुआ और चंपारण कृषि अधिनियम लागू किया गया, जिससे तीनकठिया प्रथा को समाप्त कर दिया गया। यह आंदोलन न केवल चंपारण के किसानों के लिए एक जीत थी, बल्कि भारत में संगठित किसान आंदोलन की भी शुरुआत थी।

चंपारण सत्याग्रह का राष्ट्रीय प्रभाव
यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर साबित हुआ। यहीं से गांधीजी ने भारत में अपने अहिंसात्मक आंदोलन की नींव रखी। यह आंदोलन भारतीय युवाओं और जनमानस के लिए एक प्रेरणा बना और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। चंपारण सत्याग्रह ने यह सिद्ध कर दिया कि बिना हथियार उठाए भी बड़ी से बड़ी सत्ता को झुकाया जा सकता है।