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अरविंद विद्रोही लिखित पुस्तक ‘जलती रहे मशाल’ का हुआ लोकार्पण

by The Photon News Desk
Arvind Vidrohi
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जमशेदपुर/Arvind Vidrohi: स्वतंत्र भारत में शोषितों और पीड़ितों की आवाज बन अनगिनत प्रयास करने वाले जनवादी कवि अरविंद विद्रोही के बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘जलती रहे मशाल’ का लोकार्पण रविवार को गोलमुरी स्थित भोजपुरी भवन में हुआ। सिंहभूम जिला भोजपुरी साहित्य परिषद, जमशेदपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पुस्तक का लोकार्पण मुख्य अतिथि एवं अर्का जैन यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर डॉ अंगद तिवारी, विशिष्ट अतिथि डॉ अशोक अविचल व साहित्यकार दिनेश्वर प्रसाद सिंह दिनेश ने किया।

अतिथियों ने पुस्तक से जुड़ी कई कहानियां विस्तार से बताईं। डॉ अशोक अविचल ने कहा कि हम भारतीय आने पूर्वजों को नहीं भूलते। डॉ अंगद तिवारी ने कहा कि यह पुस्तक एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार की कहानी हैं और परिवार के संघर्षों का दस्तावेज है। इस पुस्तक को पढ़ने से पता चलता हैं कि देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल सेनानियों और उनके परिवार ने देश के लिए कितने कष्ट उठाए।

बाबा भासी राय का परिवार आज भी समाज में कैसे सक्रिय और पहचान बनाए हुए है और कैसे संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रहा है, पुस्तक में इसका जीवंत वर्णन है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिनेश्वर प्रसाद सिंह दिनेश ने अरविंद विद्रोही और उनके पूर्वजों के योगदान की चर्चा की। संध्या सिन्हा ने लेखक के जीवन पर प्रकाश डाला। स्वागत भाषण अरविंद विद्रोही के पुत्र और पत्रकार सत्येंद्र कुमार ने दिया। कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार उदय प्रताप हयात ने किया। लोकार्पण के मौके पर वरिष्ठ पत्रकार कवि कुमार कौशल व जयप्रकाश राय शहर के अनगिनत साहित्यकार व गणमान्य मौजूद थे।

Arvind Vidrohi के परदादा भी थे स्वतंत्रता सेनानी

81 वर्षीय अरविंद विद्रोही अपने परिवार की चौथी पीढ़ी हैं, जिन्होंने सर्वहारा व वंचित वर्ग के लिए लगातार लड़ाई लड़ी। अरविंद विद्रोही के पिता स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ राय शर्मा, दादा दुर्गा प्रसाद राय व परदादा भाषी राय ने भी आजादी की लड़ाई में योगदान दिया। बिहार के गोपालगंज जिले के हथुआ प्रखंड कार्यालय के सामने स्थित स्वतंत्रता सेनानियों के शिलालेख पर भी स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ राय शर्मा का नाम अंकित है।

पुस्तक ‘जलती रहे मशाल’ में 62 संस्मरण आलेख शामिल हैं, जिनके माध्यम से हम शर्मा परिवार के सैकड़ों सालों के पारिवारिक इतिहास को पढ़ते हुए आजादी की कहानियों व आजादी के बाद के भारत को महसूस कर सकते हैं। पुस्तक के आलेख बड़ी सहजता से क्रांति की सोच रखने वाले नायकों की विचारधारा से हमें रूबरू कराते हैं। अरविंद विद्रोही ने पुस्तक को दक्षिण बिहार के सुप्रसिद्ध पत्रकार स्वर्गीय ब्रह्मदेव सिंह शर्मा को समर्पित किया है।

अरविंद बताते हैं कि ब्रह्मदेव शर्मा ने उन्हें एक दिन कहा था कि तीन पुश्तों से आपके परिवार ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष किया है। वह संघर्ष इतिहास के पन्नों में अंकित होना चाहिए। किताब के माध्यम से संघर्ष की कहानियों को अंकित किया गया है, ताकि आगे भी इससे प्रेरणा मिलती रहे। संस्मरणों को याद करते हुए अरविंद विद्रोही भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के साथ किए गए पत्राचार व राजेंद्र बाबू द्वारा उनकी पढ़ाई में सहायता करने में किस्से को बड़े ही गर्व से बयान करते हैं।

ज्ञात हो कि अरविंद विद्रोही सिंहभूम जिला भोजपुरी साहित्य के अध्यक्ष भी हैं। वहीं, उन्होंने राजनीतिक लाश, शिलालेख की टीस, नाक के नीचे नाक, दांत के नीचे दांत, लकीर जैसी अनगिनत कृतियों के माध्यम से साहित्य की समृद्ध विरासत समाज को सौंपी है।

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