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इन नौ औषधियों में होता है दुर्गा के नौ रूपों का वास

by The Photon News Desk
Nine Form of Durga
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Nine Form of Durga

प्रथम शैलपुत्री (हरड़)
देवी दुर्गा के प्रथम रूप को शैलपुत्री माना गया है। इन भगवती देवी को हिमावती हरड़ कहते हैं। यह आयुर्वेद प्रधान औषधि है, जो कई रोगों का नाश करती है। यह पथया, हरितिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)

मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है।

तृतीय चंद्रघंटा (चंदू सुर)

दुर्गाजी का तीसरा रूप है चंद्र घंटा, इसे चंदू सुर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी भी बनाई जाती है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिये इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, रक्त को शुद्ध करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।

चतुर्थ कुष्मांडा (पेठा)

दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं। कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करने वाला है। यह पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिये यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है।

पंचम स्कंदमाता (अलसी)

दुर्गाजी का पांचवां रूप स्कंदमाता है, इन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।

षष्टम कात्यायनी (मोइया)
नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी की उपासना का होता है। देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है, जैसे अम्बालिका, अम्बा व अम्बिका इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं, यह औषधि कफ, पित व गले के रोगों का नाश करती है।

सप्तम कालरात्रि (नागदौन)
यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है, यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी है और मन एवं मष्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।

अष्टम महागौरी (तुलसी)
नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी का है। तुलसी के रूप में महागौरी की पूजा हर घर में होती है। तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुठे, रक, अर्जक, और षट् पत्र यह रक्त को साफ कर ह्रदय रोगों का नाश करती है।

नवम सिद्धिदात्री (शतावरी)

दुर्गा मां का नवम रूप सिद्धिदात्री है। कहते हैं, ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं। दुर्गा के इस रूप को नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए बहुत लाभदायक है।
– सीमा पांडेय, स्वदेशी प्रवर्तक, जमशेदपुर

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