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बिहार में हिंदुत्व के ‘ त्रिमूर्ति ‘ का सियासी प्रभाव: महागठबंधन क्यों है चिंतित

सनातन धर्म के इस 'त्रिमूर्ति' का संदेश सिर्फ हिंदू धर्म के पक्ष में ही नहीं, बल्कि जातिवाद और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर भी बिहार की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

by Rakesh Pandey
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पटना: बिहार की सियासत में इन दिनों एक नई राजनीतिक हलचल देखने को मिल रही है। अगले विधानसभा चुनाव से महज कुछ महीनों पहले, हिंदुत्व के प्रतीक माने जाने वाले तीन प्रमुख धार्मिक गुरु– बाबा बागेश्वर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री, श्री श्री रविशंकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत का बिहार दौरा, राजनीतिक पारे को बढ़ा रहा है। बिहार की सियासत में इस समय एक नया समीकरण बनता नजर आ रहा है और इसका असर सिर्फ बीजेपी और एनडीए पर ही नहीं, बल्कि महागठबंधन पर भी दिखाई दे रहा है। आइये जानते हैं कि आखिर इस घटनाक्रम से बिहार की राजनीति में कौन सा नया मोड़ आया है और महागठबंधन क्यों परेशान है।

बिहार में हिंदुत्व का प्रचार: बाबा बागेश्वर का प्रभाव

बाबा बागेश्वर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री इन दिनों गोपालगंज में हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं, जो परंपरागत रूप से लालू प्रसाद यादव का गढ़ माना जाता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यहां बीजेपी और जेडीयू का दबदबा बढ़ा है, फिर भी यह क्षेत्र राजद का गढ़ ही माना जाता है। बाबा बागेश्वर यहां हनुमंत कथा और दिव्य दरबार आयोजित कर रहे हैं, और उनकी सभाओं में लाखों की भीड़ जुट रही है। उनकी बातों में यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया जा रहा है कि हिंदुओं को एकजुट करना उनकी प्राथमिकता है। खासतौर पर उनके द्वारा दी गई ये बातें कि “भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा” और “हिंदू घटने नहीं देंगे”, राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।

श्री श्री रविशंकर और महमूद गजनवी का विवाद

वहीं, दूसरी ओर, श्री श्री रविशंकर भी बिहार में हैं और पटना के गांधी मैदान में दो दिवसीय सत्संग कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने बिहार में महमूद गजनवी से संबंधित एक ऐतिहासिक शिवलिंग को स्थापित किया, जिसे गजनवी ने 1026 ईस्वी में खंडित किया था। इस घटना को बिहार की सियासत में महागठबंधन के लिए एक नई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इसके पीछे महमूद गजनवी का नाम जुड़ने से राज्य में धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावना जताई जा रही है। यह मामला सीधे तौर पर बीजेपी और एनडीए की राजनीति को फायदा पहुंचा सकता है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बिहार दौरा

इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी बिहार दौरे पर हैं, जहां वह मुजफ्फरपुर में संघ के कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। मोहन भागवत की उपस्थिति को बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह हिंदुत्व के मुद्दे पर पार्टी को मजबूती प्रदान कर सकता है। बिहार में बीजेपी की सियासी ताकत को मजबूत करने के लिए संघ के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है, जिससे पार्टी को व्यापक जनसमर्थन मिल सकता है।

विपक्ष क्यों है परेशान?

इस सियासी घटनाक्रम से विपक्ष, खासकर महागठबंधन के नेता परेशान नजर आ रहे हैं। राजद के नेता और विधायक इसे बीजेपी की साजिश बता रहे हैं। हालांकि, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी के विधायक मुकेश रौशन ने बाबा बागेश्वर की गिरफ्तारी की मांग की है। विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी और संघ द्वारा धार्मिक मुद्दों को बढ़ावा देने से राज्य में जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण हो सकता है, जिसका फायदा बीजेपी और एनडीए को होगा।

जेडीयू का बदलता रुख

इस बीच, जेडीयू का रुख भी बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। कुछ समय पहले तक जेडीयू हिंदू त्योहारों की छुट्टियां कम करने के कारण आलोचना का शिकार हुआ था, लेकिन अब पार्टी के नेता यह कहने लगे हैं कि हिंदू एकजुट हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू पार्टी इस मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाने की कोशिश कर रही है, ताकि वह दोनों ही पक्षों के वोटों को अपने पक्ष में कर सके।

हिंदुत्व की ‘त्रिमूर्ति’ से बिहार की सियासत में नया मोड़

इन तीन प्रमुख हिंदुत्व धर्मगुरुओं का बिहार दौरा, निश्चित तौर पर बिहार की सियासत में एक नया मोड़ ला सकता है। सनातन धर्म के इस ‘त्रिमूर्ति’ का संदेश सिर्फ हिंदू धर्म के पक्ष में ही नहीं, बल्कि जातिवाद और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर भी बिहार की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, यदि बिहार में जातीय समीकरणों की बजाय हिंदू एकता को बढ़ावा मिलता है, तो इसका सीधा फायदा बीजेपी और एनडीए को हो सकता है, क्योंकि बीजेपी का मुख्य आधार हिंदू वोट बैंक है।

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